अपनी लेखनी की ताकत से भारत में अंग्रेजी शासन की नींद उड़ा देने वाले स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म आज 1890 में 26 अक्टूबर को हुआ था.
गणेश शंकर की गिनती ऐसे पत्रकारों में थी जिनके लिए लिखना एक मिशन था. ये देश की आजादी से जुड़ा था. वो अंग्रेजों की परवाह नहीं करते थे. अंग्रेजी राज की कलई खोलकर रख देते थे. यही वजह थी कि अंग्रेज उनसे भयभीत रहते थे. उन्हें निडर, निष्पक्ष, समाज-सेवी, स्वतंत्रता प्रेमी पत्रकार माना जाता है. आज भी उनका सम्मान किया जाता है.
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- महज 16 साल की उम्र में 'हमारी आत्मोसर्गता' नाम की एक किताब लिखी.
- उन्होंने कानपुर के करेंसी ऑफिस में नौकरी की लेकिन अंग्रेज अधिकारियों से अनबन की स्थिति में वहां से इस्तीफा दे दिया.
- उन्होंने प्रताप अखबार की शुरुआत की जिसमें भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल जैसे कई क्रांतिकारियों के लेख छापे.
- अंग्रेजों के खिलाफ लगातार समाचार पत्रों में लिखने की वजह से उन्हें कई महीने जेल में काटने पड़े.
- गणेशशंकर विद्यार्थी एक ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जो कलम और वाणी के साथ-साथ महात्मा गांधी के अहिंसक विचार का समर्थन और क्रांतिकारियों को समान रूप से देश की आजादी में सक्रिय सहयोग प्रदान करते रहे.
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उन्होंने प्रेमचन्द की तरह पहले उर्दू में लिखना शुरू किया फिर उसके बाद हिंदी में पत्रकारिता की. उनके अधिकांश निबंध त्याग और बलिदान संबंधी विषयों पर आधारित हैं. वो बहुत अच्छे वक्ता भी थे.
- कलम की ताकत हमेशा से ही तलवार से अधिक रही है, और गणेश ऐसे पत्रकार साबित हुए जिन्होंने अपनी कलम से सत्ता तक की राह बदल दी.
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- 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह को फांसी लगने के बाद ब्रिटिश कारिंदों ने कानपुर में हिंदू-मुसलमान दंगे करवा दिए. लोगों को बचाने और दंगे शांत करवाने के लिए शहर की गलियों में जा घुसे विद्यार्थी को 25 मार्च को कुछ दंगाइयों ने चौबेगोला मोहल्ले में पीठ में छुरा घोंपकर मार डाला.
उनकी मौत पर गांधी ने कहा था, 'मुझे जब उनकी याद आती है तो उनसे ईर्ष्या होती है. इस देश में दूसरा गणेश शंकर क्यों नहीं पैदा होता है?