राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने यहां आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान यह खेद जताया कि देश में शोध के प्रति 'आम उदासीनता' पाई जाती है. उन्होंने कहा कि विश्वस्तरीय शैक्षिक संस्थानों के अभाव में भारत दुनिया के शीर्ष देशों में जगह बनाने की अभिलाषा नहीं कर सकता है.
यहां राजभवन में देबरंजन मुखर्जी स्मारक व्याख्यान में राष्ट्रपति ने कहा, 'विश्वस्तरीय शैक्षिक संस्थानों के अभाव में भारत विश्व के शीर्ष देशों में जगह बनाने की अभिलाषा नहीं कर सकता, न ही अंतरराष्ट्रीय भद्रलोक के सर्वोच्च आसन पर बैठ सकता है.'
अन्य 'ब्रिक्स' राष्ट्रों से भारत की तुलना करते हुए प्रणब ने कहा, 'शोध एवं विकास (आर एंड डी) पर हमारा जोर न के बराबर है। शोध के प्रति आमतौर से उदासीनता पाई जाती है. ब्रिक्स देशों में, ब्राजील और चीन शोध कार्य में बहुत आगे हैं.'
राष्ट्रपति ने कहा कि यह सही है कि हाल के दिनों में उच्च शिक्षा के आधारभूत ढांचे के क्षेत्र में काफी काम हुआ है. आज देश में 712 विश्वविद्यालय, 3,6000 कॉलेज हैं. लेकिन, कुछ दिन पहले तक एक भी भारतीय संस्थान शीर्ष 200 की सूची में नहीं थे.
राष्ट्रपति ने कहा, 'बुनियादी समस्या यह नहीं है कि हमारे उच्च शिक्षा संस्थान योग्यता में कम हैं. समस्या इसकी तकनीकी प्रक्रियाएं हैं, हम अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों को अपनी प्रासंगिक जानकारियां ही नहीं देते.'
उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि अब संस्थान रैंकिंग के मुद्दे को अधिक गंभीरता से ले रहे हैं. इसी का नतीजा है कि पहली बार शीर्ष 200 संस्थानों में दो भारतीय संस्थानों को भी जगह मिली है.
राष्ट्रपति ने उम्मीद जताई कि इस सूची में और भी अधिक भारतीय संस्थान अपनी जगह बनाएंगे.
विचारों के आदान-प्रदान पर जोर देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि किसी एक जगह के शिक्षकों और विद्यार्थियों का अन्य जगहों के शिक्षकों और विद्यार्थियों से मिलना-जुलना नियमित रूप से होते रहना चाहिए. नए विचारों को काम में आने वाले उत्पादों में बदलने में समर्थन किया जाना चाहिए. उच्च शिक्षा संस्थानों को जमीनी स्तर के उद्यमियों के साथ मिलकर ऊष्मायन केंद्रों की स्थापना करनी चाहिए.
यह व्याख्यान बांग्ला भाषा-साहित्य के विद्वान स्वर्गीय देबरंजन मुखर्जी की स्मृति में आयोजित होता है.
इनपुट: IANS