देश में जिस तरह से बाल शोषण और बच्चों की हत्याओं के केसों में इजाफा दर्ज हुआ है, ऐसे में ये जरूरी हो जाता है कि आप अपने बच्चों को गुड टच और बैड टच का फर्क सिखाएं.
दिल्ली के स्कूलों और कॉरपोरेट हाउसेज के साथ बतौर कंसलटेंट साइकोलॉजिस्ट काम कर रहीं सीमा तनेजा ने कुछ प्वाइंट्स दिए हैं, जिन्हें फॉलो करके आप बच्चे को ऐसी स्थितियों में पढ़ने से बचा सकते हैं-
किस उम्र में बताएं क्या सही-क्या गलत
हर बच्चे की ग्रोथ अलग होती है. वैसे इस तरह की बातें सिखाने के लिए कोई खास उम्र निश्चित नहीं है. बस ये ध्यान रखना जरूरी है कि उसे ये सब तब समझाएं जब वह इन्हें समझने के लायक हो जाए. आप चाहें तो कम उम्र से शुरुआत कर सकते हैं. दो या तीन साल की उम्र से ही, बच्चे को खेल-खेल में या बातों-बातों में बताएं कि कहां टच करना सही है और कहां गलत.
गुड और बैड टच के बीच लाइन
ये काफी मुश्किल होता है कि बच्चे को वो बॉडी पार्ट्स बताएं, जहां अगर कोई प्यार से भी टच करे तो उसे रोका जाए. इसके लिए पेरेंट्स बॉडी के उन पार्ट्स के लिए किसी नाम का प्रयोग करें जिससे बच्चा उसे पहचान पाए. जैसे बच्चे को बताएं कि जिन पार्ट्स को कवर करने के लिए आप स्विमसूट पहनते हैं उन्हें पेरेंट्स के अलावा और कोई नहीं छू सकता. इससे वे शरीर के भागों में भेद करना सीखेंगे.
अक्सर ऐसा देखा गया है कि बाल शोषण करने वाले लोग बच्चों को प्यार से अपने पास बुलाते हैं. जिससे बच्चा समझ नहीं पाता कि उसका शोषण हो रहा है कि वो व्यक्ति उन्हें प्यार कर रहा है.
बच्चे से हर बात करें
बच्चे के साथ फ्रेंडली होना बहुत जरूरी है. अक्सर बच्चे अपने माता-पिता से ऐसी बातें छिपाते हैं, कहते हुए डरते हैं. लेकिन आपका बच्चे से फ्रेंडली बिहेव होगा तो वो आपसे सब कुछ कह सकेंगे. बच्चे के बदले व्यवहार के प्रति भी सचेत रहें.
बैड टच हो तो क्या करे बच्चा
बच्चे को सिखाएं कि नो का मतलब है नो. बच्चे को बताएं कि किसी भी सूरत में वे बॉडी पॉर्ट्स को टच करने के लिए नो ही कहेंगे. अगर इसके बावजूद भी बच्चे के साथ ऐसा हो, तो वे डरे नहीं और मदद के लिए चिल्लाएं. उन्हें बताएं कि उनकी एक आवाज पर कितने लोग उनकी मदद के लिए पहुंच जाएंगे. बच्चे को ये भी बताएं कि वे परिस्थिति को देखें-समझें और किसी सेफ जगह पहुंचकर चिल्लाएं या अलार्म बजाएं. वे हवां से तेजी से भाग सकते हैं.