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हरगोविंद खुराना पर बना आज का डूडल, जिन्होंने दुनिया को बताई ये बातें

गूगल अपने डूडल के जरिए दुनिया भर की महान हस्तियों को याद करता है. आज सर्च इंजन गूगल ने भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. हरगोविंद खुराना की 96वें जन्मदिन पर डूडल के जरिए याद किया है.

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Dr Hargobind Khurana
Dr Hargobind Khurana

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गूगल अपने डूडल के जरिए दुनिया भर की महान हस्तियों को याद करता है. इसी क्रम में गूगल ने आज भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. हरगोविंद खुराना को उनके 96वें जन्मदिन पर डूडल समर्पित किया है. 

जानें उनके बारे में कुछ बातें..

- डॉ. हरगोविंद खुराना एक भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक थे, जिन्हें साल 1968 में प्रोटीन संश्लेषण में न्यूक्लिटाइड की भूमिका का प्रदर्शन करने के लिए चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया. उन्हें यह पुरस्कार साझा तौर पर दो और अमेरिकी वैज्ञानिकों के साथ दिया गया था.

- उनका जन्म अविभाजित भारत के रायपुर (जिला मुल्तान, पंजाब) में 9 जनवरी, 1922 को हुआ था.

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- उनके पिता एक पटवारी थे. अपने माता-पिता के चार पुत्रों में हरगोविंद सबसे छोटे थे. गरीबी के बावजूद हरगोविंद के पिता ने अपने बच्चो की पढ़ाई पर ध्यान दिया जिसके कारण खुराना ने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया.

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- वे जब मात्र 12 साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया और ऐसी परिस्थिति में उनके बड़े भाई ने उनकी पढ़ाई-लिखाई का सारी जिम्मेदारी उठाई.

- उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूल में ही हुई.

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- उन्होंने मुल्तान के डी.ए.वी. हाई स्कूल में भी पढ़ाई की. वे बचपन से ही एक होशियार और समझदार छात्रों में गिने जाते थे.

- उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से साल 1943 में बी.एस.सी (आनर्स) और साल 1945 में एम.एस.सी (ऑनर्स) की डिग्री हासिल की.

- हैरानी की बात ये थी कि उच्च शिक्षा के बाद भी भारत में डॉ. खुराना को कोई योग्य काम नहीं मिला. इसलिए साल 1949 में वे वापस इंग्लैंड चले गए और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में लार्ड टाड के साथ कार्य किया.

- साल 1950 से 1952 तक कैम्ब्रिज में रहे. इसके बाद उन्होंने प्रख्यात विश्वविद्यालयों में पढ़ने और पढ़ाने दोनों का काम किया.

- साल 1960 में उन्हें ‘Professor Institute of Public Service’ स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया और उन्हें ‘Merck Award’ से भी सम्मानित किया गया.

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- इसके बाद साल 1960 में डॉ. खुराना University of Wisconsin के Institute of Science Research में प्रोफेसर पद पर नियुक्त हुए.

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- साल 1960 में ही डॉ. खुराना ने नीरबर्ग की इस खोज की पुष्टि की.  इसके अनुसार डी.एन.ए. अणु के घुमावदार ‘सोपान’ पर चार विभिन्न प्रकार के न्यूक्लिओटाइड्स के विन्यास का तरीका नई कोशिका की रासायनिक संरचना और कार्य को निर्धारित करता है. डी.एन.ए. के एक तंतु पर इच्छित अमीनोअम्ल उत्पादित करने के लिए न्यूक्लिओटाइड्स के 64 संभावित संयोजन पढ़े गए हैं.

-  डॉ खुराना ने जीन इंजीनियरिंग (बायो टेक्नोलॉजी) विषय की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जेनेटिक कोड की भाषा समझने और उसकी प्रोटीन संश्लेषण में भूमिका प्रतिपादित करने के लिए नोबल पुरस्कार दिया गया.

- 1966 का वो साल था जब उन्होंने अमरीकी नागरिकता ग्रहण कर ली.

- 9 नवंबर 2011 में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.

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