लोकतंत्र में चुनी हुईं सरकारों का काम यूं तो जनहित में फैसले लेना होता है, लेकिन कई बार फैसलें सियासी वजहों से भी होते हैं और जिसका सीधा असर देखने को मिल जाता है. उत्तर प्रदेश में इसी तर्ज पर अब छुट्टियां वोटबैंक की सियासत की भेंट चढ़ती नजर आ रही हैं , जिसका सीधा असर सरकारी कामकाज से लेकर स्कूली बच्चों तक पर पड़ रहा है. एक सेशन में 220 दिन स्कूल खुलने चाहिए, लेकिन पिछले तीन सेशन से 190 दिन ही स्कूल खुल रहे हैं.
अखिलेश सरकार के फैसलों के तहत जहां छह दिसंबर के अंबेडकर परिनिर्वाण दिवस और 17 अप्रैल को पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की जयंती पर छुट्टी की जाने लगी है. वहीं अब नौ मई को महाराणा प्रताप जयंती पर छुट्टी है. ये हाल तब है जब इतनी छुट्टियां की घोषणा करने पर रोक लगाने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में जनहित याचिका दायर की जा चुकी है.
सरकार जिस तरह से फैसले ले रही है, उससे लगता नहीं कि सरकार को छुट्टियां से पढ़ाई पर पड़ने वाले असर की कोई चिंता है.
दरअसल, द काउंसिल ऑफ इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन (सीआइएससीई) और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद (सीबीएसई) के आदेश हैं कि एक एजुकेशन सेशन में 220 दिन स्कूल खुलने चाहिए, लेकिन पिछले तीन एजुकेशन सेशन से 190 दिन ही स्कूल खुल रहे हैं. इस बार भी कॉन्वेंट व पब्लिक स्कूलों में नया सेशन एक अप्रैल से शुरू हो चुका है. इस सेश न में एक अप्रैल के स्कूल खुलने के बाद दो, तीन व पांच को छुट्टी पड़ गई. इसके बाद से लगातार छुट्टी जारी है.
एक अप्रैल से लेकर 10 मई तक चालीस दिनों के भीतर सिर्फ 22 दिन ही स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाई हुई है. वहीं बीते दिनों भूकंप के झटकों के कारण भी स्कूलों में सरकारी आदेश पर ताला पड़ा.
अगर प्राकृतिक आपदा को छोड़ दें, तब भी लगातार अवकाश पड़ने के चलते कोर्स पूरा करवाना जहां टीचर्स के लिए मुश्किल होगा और बच्चों पर कम समय के चलते ज्यादा प्रेशर पड़ेगा.