दिल्ली के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के हजारों पद खाली हैं. बावजूद इसके, दिल्ली सरकार ने कोर्ट से जुड़े हुए काम के निपटारे के लिए 176 शिक्षकों को तैनात कर दिया है. सरकार के इस रवैये से स्कूलों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है. हाई कोर्ट ने इस मुद्दे को बेहद गंभीरता से लेते हुए दायर याचिका को सुनकर सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.
याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि जब स्कूलों में पहले से ही शिक्षकों के पद खाली हैं तो फिर शिक्षकों को बाकी के और कामों में लगाने से बच्चे कैसे बेहतर शिक्षा ले सकते हैं. कोर्ट ने मामले की सुनवाई की तारीख 8 दिसंबर तय की है.
याचिका दायर करने वाली सोशल ज्युरिस्ट एनजीओ ने अवमानना याचिका में आरोप लगाया है कि दिल्ली सरकार 2001 में दिए गए हाईकोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर रही है. आदेश में कहा गया था कि बच्चों की पढ़ाई को ध्यान में रखते हुए राजधानी के सभी स्कूलों में हर साल की शुरुआत में यह सुनिश्चित किया जाएगा कि किसी भी शिक्षक का पद खाली न रहे.
याचिका में कोर्ट को बताया गया है कि राजधानी के दिल्ली सरकार और एमसीडी के स्कूलों में विकलांग बच्चों के लिए विशेष शिक्षकों समेत शिक्षकों के करीब 26,031 पद खाली हैं. दिल्ली सरकार ने हाल ही में नौ हजार शिक्षकों के लिए वैकेंसी निकाली थी, फिर भी आधे से ज्यादा पदों पर अभी भर्तियां बाकी हैं.
फिलहाल दिल्ली के सरकारी स्कूलों मे 80 प्रतिशत स्कूलों में प्रिंसिपल के पद रिक्त हैं तो दिल्ली सरकार के स्कूलों में स्नातकोत्तर शिक्षकों के 7463 और प्रशिक्षित स्नातक शिक्षकों के 13623 पद रिक्त हैं. उन्होंने कहा कि शिक्षकों की भर्ती न होने के कारण 1,011 स्कूलों में पढ़ रहे 15,40,691 छात्रों की शिक्षा बुरी तरह से प्रभावित हो रही है. याचिका मे आरोप लगाया गया है कि शिक्षकों की कमी के बावजूद 176 शिक्षण स्टाफ की ड्यूटी पिछले कई वर्षों से कोर्ट के काम में लगा रखी है जबकि उनकी हाजिरी शिक्षण कार्य के लिए लगती है.