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देश के पहले हिन्दी इंजीनियरिंग कोर्स में खोजे नहीं मिल रहे छात्र...

मध्यप्रदेश सरकार द्वारा पूर्णत: हिंदी में शुरू किए गए इंजीनयरिंग कोर्स में नहीं मिल रहे स्टूडेंट. इसी अकादमिक सत्र से है कोर्स के शुरू होने की तैयारी...

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ABVHV (PC-Indian Express)
ABVHV (PC-Indian Express)

कहा जाता है कि भारत में इंजीनियरिंग कॉलेज खुलने से पहले स्टूडेंट्स मिल जाते हैं. देश की बढ़ती जनसंख्या ऐसे में कॉलेज और संस्थानों के लिए वरदान साबित होती है लेकिन भोपाल के अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय की बात ही जुदा है. यहां इंजीनियरिंग (अभियांत्रिकी) की पढ़ाई पूरी तरह हिन्दी में कराई जाएगी. यह कोर्स इस अकादमिक सत्र से शुरू होने की संभावना है.
ऐसा हो सकता है कि आपने इस कोर्स के बारे में सुना हो या फिर न भी सुना हो लेकिन इस कोर्स की शुरुआत के लिए संस्थान के स्टाफ पूरी कोशिश कर रहे हैं. वे पहले साल के सिलेबस को फाइनल करने और इंजीनयरिंग की पढ़ाई में इस्तेमाल किए जाने वाले सही हिन्दी शब्दों का चयन कर रहे हैं.

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दिक्कतें हैं कि रुक ही नहीं रही...
यूनिवर्सिटी ने इसके बाबत ट्रांसलेटरों के आवेदन मंगाए थे लेकिन सब्जेक्ट का पता चलते ही अधिकांश ट्रांसलेटर पीछे हट गए. वे कहते हैं कि ट्रांसलेशन तो आसान है, मगर अंग्रेजी के पूरे शब्दकोश को हिन्दी में कन्वर्ट करना बहुत मुश्किल है.

बीजेपी के ड्रीम प्लान का मामला है...
गौरतलब है कि यह मध्यप्रदेश में सत्तासीन भाजपा सरकार का पेट प्रोजेक्ट है. हिन्दी के माध्यम से वे स्टूडेंट्स में राष्ट्रवाद और भाषा प्रेम को संप्रेषित करना चाहते हैं. अब यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है कि कितने स्टूडेंट्स यहां दाखिला लेंगे.

शुरुआती रिस्पॉन्स तो सकारात्मक नहीं दिखते...
आज भले ही सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन इस कोर्स को लेकर खासी उत्साहित हो लेकिन इस कोर्स में दाखिला लेने के लिए एक भी स्टूडेंट तैयार नहीं है. स्टूडेंट्स का मानना है कि इस कोर्स के पूरा होने के बाद उन्हें रोजगार की दिक्कतें आएंगी. सूत्रों का कहना है कि कुल 90 सीट जो कि नगर(सिविल), वैद्युत(इलेक्ट्रिकल) और यांत्रिक(मैकेनिकल) स्ट्रीम के लिए महज दर्जन भर स्टूडेंट्स ने अप्लाई किया है.

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विश्वविद्यालय अथॉरिटी आश्वस्त है...
अथॉरिटी का कहना है कि एक स्टूडेंट के दाखिला लेने पर भी वे कोर्स को इस वर्ष शुरू कर देंगे. उनका कहना है कि वे धारा के विपरीत तैर रहे हैं. इस मामले में वाइस चांसलर प्रोफेसर मोहनलाल छीपा कहते हैं कि अंग्रेजी को भी देश के भीतर जड़ जमाने में 250 साल लग गए.

यूनिवर्सिटी पर सवाल खड़ा करने वाले एंटी हिंदू हैं...
विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि मध्यप्रदेश में 80 फीसद स्टूडेंट ग्रामीण इलाकों से आते हैं और वे हिन्दी माध्यम में अधिक सहज हैं. वे स्टूडेंट्स को ऑनलाइन डिक्शनरी प्रोवाइड कराएंगे और विश्वविद्यालय की तैयारियों को कठघरे में खड़ा करने वाले हिन्दू विरोधी मंशा के लोग है.
इसके अलावा जब स्टूडेंट्स ने उनसे कोर्स के (AICTE) अप्रूवल की बात पूछी तो अथॉरिटी का कहना है कि इसे AICTE अप्रूवल की कोई जरूरत नहीं. यह कोर्स राज्य संस्था के अधीन है.

आगे हैं कई अड़चनें...
ऐसा नहीं है कि AICTE का अप्रूवल ही एक मात्र दिक्कत है. कोर्स को शुरू होने में 1 सपताह से भी कम समय बचा है और कोई आधिकारिर शिक्षक बहाल नहीं हो सका है. राज्य सरकार ने इसके बाबत पिछले वर्ष तीन शिक्षक बहाल किए थे मगर अब वे संबंधित कॉलेज लौट चुके हैं.

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कोई उचित ठौर-ठिकाना नहीं...
स्टूडेंट्स की कमी, शिक्षकों का रवैया और पहचान का संकट तो है ही. इसके अलावा अब तक यह भी तय नहीं हो पाया है कि क्लासेस कहां चलेंगी. संस्थान की नींव साल 2013 में भोपाल के बाहरी हिस्से में रखी गई थी. फिलवक्त क्लासेस पुराने विधानसभा के दो कमरों में चल रही हैं और प्रशासन भोज यूनिवर्सिटी कैंपस में स्थित पतंजलि भवन से काम कर रहा है. इंजीनियरिंग के लिए कोई निर्धारित स्थान नहीं है.

आखिर वाइस चांसलर का क्या कहना है?
इस पूरे मामले में वाइस चांसलर का कहना है क्लासेस पतंजलि भवन में चलेंगी. वाइस चांसलर का मानना है कि इस पढ़ाई के बाद स्टूडेंट नौकरी मांगने के बजाय बांटने वाली श्रेणी में आ जाएंगे. वे इन कोर्सेस के माध्यम से सोच-समझ रखने वाले लोग पैदा करना चाहते हैं. साथ ही वे कहते हैं कि ऐसी ब्रिटिश परंपरा रही है कि वे पढ़ाई को नौकरी से जोड़ कर देखते रहे हैं. वे इस व्यवस्था को ध्वस्त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
भाषा के सवाल पर वाइस चांसलर कहते हैं कि आप पानी में बिना उतरे तैरना भी तो नहीं सीखते. स्टूडेंट्स धीरे-धीरे खुद को सहज महसूस करने लगेंगे.

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