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तमिलनाडु: सूखे से लड़ने के लिए सहेजा बारिश का पानी, आज लहलहा रही है फसल

जानें पानी की एक-एक बूंद को बचाकर जल संरक्षण की मिसाल कायम कर सालों के सूखे को दूर करने वाले कोका कोला इंडिया के आनंदा फाउंडेशन के बारे में.

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करिसलपट्टी गांव के एक खेत में बना फार्म पौंड चेक डेम
करिसलपट्टी गांव के एक खेत में बना फार्म पौंड चेक डेम

बीता दिसंबर तमिलनाडु के लिए बारिश की सौगात लेकर आया था, जहां 2011, 2012 और 2013 में लगातार तीन साल तक सूखा पड़ा. चेन्‍नई में हुई भारी बारिश ने यहां बहुत तबाही मचाई थी और यहां से लगभग 700 किमी दूर तिरुनेलवेली में भी सामान्य से तीन गुना बारिश हुई थी.

शायद बरसात का यह पानी बह कर निकल गया होता और बेहद गर्म रहने वाले इस शहर को फिर से सूखे की मार झेलनी पड़ती, अगर यहां कई छोटी-बड़ी पहलों के जरिए बरसाती पानी को संरक्षित नहीं किया गया होता. जल संरक्षण की जिन पहलों ने राज्य की सूरत बदल डाली है उन्हीं में से एक है कोका कोला इंडिया के आनंदा फाउंडेशन और उसके क्रियान्वयन साझेदार टीवीएस के श्रीनिवासन सर्विस ट्रस्ट का वॉटर शेड डेवलपमेट प्रोजेक्ट.

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कैसे बचाई बूंद-बूंद :
प्रमुख रूप से कृषि पर निर्भर रहने वाले तिरुनेलवेली जिले में अक्तूबर से दिसंबर के बीच औसतन 27 इंच बरसात होती है. आगे आने वाले बेहद गर्म महीनों के लिए बरसाती जल को संरक्षित करना बेहद जरूरी हो जाता है. इसी के मद्देनजर आनंदा फाउंडेशन ने तिरुनेलवेली के तीन गांवों- तिरुविनालपुडी, उलगनकुलम और करिसलपट्टी में खेतों की सिंचाई के लिए 1,500 हेक्टेयर में 21 पोखर (फार्म पौंड) और 7 चेक डेम या रोक बांध बनाए हैं. इनकी मदद से बरसाती जल का संरक्षण तो हो ही रहा है, इलाके के भूजल स्तर में भी इजाफा हो रहा है.

आनंदा फाउंडेशन की प्रोजेक्ट मैनेजर पार्वती कृष्णन कहती हैं, 'सभी चेक डेम एक दूसरे के प्रवाह के नीचे की ओर इस तरह से बने हैं जिससे कि बरसात का थोड़ा सा पानी भी बहकर नहीं निकल सके और पूरा का पूरा इन चेक डेम्स में जमा हो जाए.'

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कैसे थे पहले हालात:
जल संरक्षण से होने वाले लाभ स्पष्ट नजर आते हैं. पानी की कमी के कारण यहां के किसान डेढ़ साल पहले तक अपने खेतों के केवल वे फसलें ही ले पाते थे जिनमें ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती. लेकिन अब वे सालभर विभिन्न प्रकार की फसलें ले रहे हैं.
श्रीनिवासन सर्विस ट्रस्ट के चेयरमैन अशोक जोशी कहते हैं, 'पानी की कमी से परेशान किसान खेती-किसानी छोड़ रहे थे और रोजगार की तलाश में दूर-दराज के शहरों में जाकर बसने लगे थे. लेकिन अब इस चलन में कमी आ रही है.'
इस बात की तस्दीक करते हैं 23 वर्षीय किसान चिन्नातोरई, जो बीसीए करने के बावजूद खेती करने लगे. वे कहते हैं, 'खेती में मुझे पहले ही साल डेढ़ लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा हुआ. अपने गांव में रहने और खेती के पारिवारिक काम से जुड़े रहने का संतोष अलग है.'

आगे भी जारी है प्रयास:
आनंदा फाउंडेशन और श्रीनिवासन सर्विस ट्रस्ट तिरुनेलवेली जिले में खेतों की मिट्टी को उपजाऊ बनाने और महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए भी काम कर रहा है.

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