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जब जला दिए जाते हैं विक्टिम, फॉरेंसिक डिपार्टमेंट ऐसे करता है काम

हैदराबाद के बाहरी इलाके शादनगर में अंडरपास के पास युवती की जली हुई लाश मिलने के बाद से पूरे देश में उसके लिए न्याय की आवाज उठा रही है. आइए- फॉरेंसिक विशेषज्ञ से जानते हैं कि क्या होती है फॉरेंसिक जांच और पुलिस की फॉरेंसिक टीमें कैसे करती हैं ऐसी वारदातों की तहकीकात.

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प्रतीकात्मक चित्र
प्रतीकात्मक चित्र

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  • फॉरेंसिक रिपोर्ट कैसे होती है तैयार
  • सबूत मिलने की क्या गुंजाइश होती है
  • क्या मिलेगा देश की इस बेटी को न्याय ?

एक बार फिर कुछ दरिंदों ने मिलकर देश की  बेटी को खत्म कर दिया. 28 नवंबर की सुबह पशु चिकित्सक की जली हुई लाश हैदराबाद के बाहरी इलाके शादनगर में अंडरपास के पास मिली. ऐसा बताया जा रहा है युवती का रेप हुआ है. रेप होने के बाद उसे मार दिया गया है और बाद में जला दिया गया.

इस घटना के बाद aajtak.in ने फॉरेंसिक डिपार्टमेंट में काम कर रहे अरुण शर्मा से खास बातचीत  करते हुए पता लगाया कि ऐसे मामलों में फॉरेंसिक डिपार्टमेंट कैसे काम करता है. कैसे बॉडी की जांच की जाती है. जानिए- कैसे तैयार होती है फॉरेंसिक रिपोर्ट.

पुलिस कुछ यूं करेगी जांच

यूपी पुलिस में फॉरेंसिक एक्सपर्ट वैज्ञानिक अरुण शर्मा ने बताया कि ऐसे मामलों में सबसे पहले फ्लेम जोन यानी वारदात की उस जगह की स्टडी होती है जहां विक्‍टिम जला है. फिर दूसरे नंबर पर उसके हीट जोन का अध्ययन किया जाता है. वहां के स्मोक जोन के बाद डिग्री ऑफ बर्न देखा जाता है. पीड़ित व्यक्ति कितने प्रतिशत जला है, ये भी जांच में शामिल किया जाता है.

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अरुण शर्मा ने बताया कि इसमें ये देखा भी जाता है कि जलाने के लिए किस माध्यम यानी किस चीज का इस्तेमाल किया गया है. मृतक किस हालत में पाया गया, उसने खुद को बचाने के लिए कितना संघर्ष किया, जांच में इसका भी पता लगाया जाता है. इसके अलावा वारदात की जगह से मिलने वाली चीजों की फॉरेंसिक जांच से काफी हद तक घटनाक्रम की गुत्थी सुलझ जाती है. फॉरेंसिक लैब में जांच के लिए भेजी जाने वाली चीजों से भी वारदात में शामिल व्यक्तियों की पहचान संभव हो सकती है.

क्या है फॉरेंसिक जांच?

इस फील्ड में काम करने वाले प्रोफेशनल फॉरेंसिक साइंस साइंटिस्ट कहलाते हैं. ये प्रोफेशनल नई तकनीकों का इस्तेमाल कर सबूतों की जांच करते हैं और अपराधियों को पकड़ने में मदद करते हैं. ये क्राइम लैबोरेटरी आधारित जॉब  है, जिसमें सबूतों की समीक्षा (Analysis) करनी होती है.

क्या था घटनाक्रम?

आपको बता दें, युवती सुबह ड्यूटी के लिए के लिए निकली थी और शाम को घर लौटते समय उसकी स्कूटी पंक्चर हो गई. जिसके बाद उसने इस बारे में अपनी बहन को बताया और कहा कि मुझे घर आने में देरी हो जाएगी.  ऐसे में बहन ने सलाह दी कि अगर आपको कोई मदद मिलती है तो ठीक है वरना आप टोल प्लाजा पर अपनी स्कूटी लगा दीजिए और कैब लेकर घर आ जाइए.

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जिसके बाद वो फोन पर कहती है कि कुछ लोग उसकी मदद के लिए बोल रहे हैं. फिर वो फोन रख देती है. कुछ समय बाद बहन फोन लगाती है तो उनका फोन स्विच ऑफ आता है.

जिसके बाद सुबह 28 नवंबर को 8 बजे एक जली हुई डेड बॉडी हैदराबाद हाइवे के नीचे मिलती है. जिसके बाद से ही हैदराबाद की इस बेटी को न्याय दिलाने की मुहिम शुरू हो गई है. .

मौका-ए-वारदात से जुटाए जाते हैं सुराग

फॉरेंसिक वैज्ञानिक अपराध स्थल से एकत्र किए जाने वाले प्रभावित व्यक्ति के शारीरिक सुरागों और सबूतों का विश्लेषण करते हैं. संदिग्ध व्यक्ति से संबंधित सबूतों से उसकी तुलना करते हैं और न्यायालय में विशेषज्ञ प्रमाण प्रस्तुत करते हैं. इन सबूतों में रक्त के चिह्न, लार, शरीर का अन्य कोई तरल पदार्थ, बाल, उंगलियों के निशान, जूते और टायरों के निशान, विस्फोटक, जहर, रक्त और पेशाब के ऊतक आदि सम्मिलित हो सकते हैं.

उनकी विशेषज्ञता इन सबूतों के प्रयोग से तथ्य निर्धारण करने में ही निहित होती है. उन्हें अपनी जांच की रिपोर्ट तैयार करनी पड़ती है. सबूत देने के लिए अदालत में पेश होना पड़ता है. वे अदालत में स्वीकार्य वैज्ञानिक सबूत उपलब्ध कराने के लिए पुलिस के साथ मिलकर काम करते हैं.

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