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पढ़ने की खातिर बेच डाली थीं किताबें: सब्यसाची

माता-पिता फैशन डिजाइनिंग पढऩे के सख्त खिलाफ थे. इसलिए कॉलेज में एडमिशन लेना ही उनके लिए काफी मशक्कत भरा था.

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Sabyasachi
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दक्षिण मुंबई के काला घोड़ा में एंटीक बनावट वाला एक भव्य शोरूम है. मुगल काल के किसी राजा के महल जैसा. लकड़ी के मोटे नक्काशीदार खंभों, हल्की पीली रौशनी और राजा रवि वर्मा के पुराने चित्रों के बीच नीली शर्ट और ग्रे पैंट में 40 साल के डिजाइनर सब्यसाची मुखर्जी एक मॉडल को समझा रहे हैं कि शादी का दिन एक लड़की की जिंदगी का सबसे हसीन दिन क्यों होता है, क्योंकि यह जिंदगी में सिर्फ एक बार आता है. इसलिए बहुत सोच कर फैसला करना.

ऐसा ही एक दिन था, जब सब्यसाची ने एक अहम फैसला किया था. कोलकाता के एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे सब्यसाची के पिता सुकुमार मुखर्जी चाहते थे कि बेटा इंजीनियर बने. लेकिन उन्हें तो फैशन डिजाइनिंग पढऩी थी. खुद एक गवर्नमेंट आर्ट कॉलेज में काम करने वाली मां संध्या मुखर्जी को भी यह बात समझ में नहीं आई कि लड़का कपड़े डिजाइन करना सीखकर क्या करेगा? लेकिन सब्यसाची के इरादे पक्के थे. जब पिता ने फॉर्म खरीदने के पैसे नहीं दिए तो एक दिन उन्होंने अपनी सारी किताबें बेच दीं. उन पैसों से नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन डिजाइनिंग का फॉर्म खरीदा और सेलेक्शन हो गया.

1999 में निफ्ट से ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने कोलकाता में अपनी पहली वर्कशॉप खोली.

2001 में सब्यसाची को फेमिना ब्रिटिश काउंसिल का मोस्ट 'आउटस्टैंडिंग यंग डिजाइनर अवॉर्ड' मिला. उसके बाद इंडियन फैशन वीक से लेकर न्यूयॉर्क फैशन वीक तक पूरी दुनिया में उनके बनाए कपड़ों ने धूम मचाई. आज सब्यसाची अपने आप में बड़ा ब्रांड है. बॉलीवुड से लेकर बिजनेस की दुनिया की बड़ी हस्तियां उनके कपड़े पहनती हैं. ब्लैक फिल्म से लेकर रावण, गुजारिश, पा  और इंग्लिश-विंग्लिश की कॉस्ट्यूम सब्यसाची की ही कल्पना है.

कपड़े बनाना उनके लिए सपने बुनने की तरह है. उनका कहना है कि कपड़ों के साथ हमारा एक रिश्ता होता है. वह आपकी पहचान से जुड़ा है. लोग मेरे कपड़े पसंद करते हैं क्योंकि मैं कपड़ों के साथ उन रिश्तों और सपनों को बुनता हूं. लेकिन उनके दर्शन का एक दूसरा पहलू भी है. ''कपड़ा पहचान जरूर है, लेकिन वह मनुष्य की आत्मा और बुद्घि की पहचान से बड़ा नहीं है. महंगे, डिजाइनर कपड़ों में गहरे डूबने का मतलब है, आप भीतर से डूब रहे हैं. कोई तो कमजोरी है, जिसे छिपाने का यह सारा तामझाम है. ''

बतौर डिजाइनर सब्यसाची के चहुंओर नाम, शोहरत, पैसे और भव्यता का यह सारा तामझाम खड़ा है, लेकिन उनकी आंखें इस चमक के पार देख सकती हैं. अपने शोरूम और स्टूडियो में देर रात तक काम करने के बावजूद वे वहां संन्यासी की तरह रहते हैं.

110 करोड़ रु. के टर्नओवर वाले ब्रांड के मालिक सब्यसाची के पास अपना कोई घर नहीं है. कोलकाता में किराए का घर है. मुंबई में होटल में रहते हैं. वे कहते हैं, ''मुझे चीजें सहेजने का शौक नहीं है. यह काम भी मैंने पैसों के लिए नहीं किया. मुझे इस काम से प्यार है. '' उनके कमरे में अपना कहने को कुछ किताबें हैं. टैगोर, टेनीसन, कीट्स की कविताएं और पीली रौशनी वाला एक टेबल लैंप. खिड़की पर एक सुंदर, रंगीन परदा और खिड़की का रुख ऐसा कि कमरे में धूप आ सके. उनके काम और जिंदगी में खूब धूप फैली है.

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