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इंडिया टुडे-नीलसन सर्वे: जानिए कौन-कौन से हैं देश के बेस्ट कॉलेज?

इंडिया टुडे-नीलसन सर्वेक्षण बताता है कि चार बड़े महानगरों के कॉलेजों का अब भी रैंकिंग में दबदबा बरकरार लेकिन छोटे शहरों में नए कोर्स और कॉलेजों के उभरने से बदलाव की उम्मीद.

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India Today Best Colleges survey 2016
India Today Best Colleges survey 2016

हाल के समय में देश में कॉलेज और विश्वविद्यालय कैंपस अक्सर अपने शैक्षणिक दायरों से बाहर की गतिविधियों के लिए चर्चा में रहे हैं. विचारों और विचारधाराओं के टकराव ने कई कैंपसों में हिंसक रूप भी ले लिया है. लेकिन यह शायद राजनैतिक ताकत का संतुलन एक तरफ झुकने की एक स्वाभाविक-सी प्रक्रिया है.

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लेकिन इस बदलाव ने शैक्षणिक उत्कृष्टता की तलाश को प्रभावित नहीं किया है. देश के सर्वश्रेष्ठ कॉलेजों के बारे में इंडिया टुडे ग्रुप के इस साल के सर्वेक्षण के नतीजे इस बात के गवाह हैं. तमाम विषयों की टॉप टेन सूची में कई संस्थानों के स्थायी रूप से अपनी जगह बना लेने से यह बात साफ है कि उत्कृष्टता स्वभाव का हिस्सा बन जाती है. हां, बेशक इसमें कुछ हल्के-फुल्के बदलाव तो आते ही रहते हैं.

उदाहरण के तौर पर दिल्ली में महिलाओं के लेडी श्रीराम कॉलेज ने ह्यूमेनिटीज से जुड़े विषयों में अपनी सर्वोच्चता फिर से हासिल कर ली है. प्रतिष्ठित संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में हाल के सफल उम्मीदवारों में अव्वल स्थान हासिल करने वाले इस कॉलेज के पास जश्न मनाने की एक और वजह भी है. यह शिक्षा में स्नातक (बीएड) की डिग्री देने वाले कॉलेजों में भी सबसे ऊपर है. इस सर्वे में यह कोर्स पहली बार शामिल किया गया है.

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पिछले तीन साल में उभरकर सामने आने वाली कामयाबी की एक और कहानी बेंगलूरू की क्राइस्ट यूनिवर्सिटी और दिल्ली के हंसराज कॉलेज के सधे कदमों से निरंतर ऊपर की ओर जाने की है. बेंगलूरू के इस डीम्ड निजी विश्वविद्यालय ने स्नातक की तीन शैक्षणिक धाराओं- कला, विज्ञान और कॉमर्स, तीनों में तीसरा स्थान हासिल किया है. इसके अलावा बीबीए और बीसीए के पाठ्यक्रमों में वह नंबर वन पर रहा है.

वहीं हंसराज कॉलेज, जहां से कभी बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरुख खान पढ़ाई कर चुके हैं, विज्ञान में पांचवें और आर्ट्स में छठे स्थान पर रहा है. दोनों में ही उसने पिछले साल के नौंवे स्थान से छलांग लगाई है. कॉमर्स में भी उसने एक पायदान ऊपर चढ़कर इस साल सूची में पांचवां स्थान हासिल किया है. इन अलहदा कहानियों को किनारे कर दें तो सर्वे की मुख्य पटकथा लगभग वैसी की वैसी ही रही है. सर्वे में विभिन्न शैक्षणिक धाराओं में सम्मानजनक स्थान हासिल करने वाले ज्यादातर कॉलेज चार महानगरों के भीतर सिमटे हुए हैं. हालांकि इससे देश में उच्च शिक्षा में गैर-बराबरी बढ़ने का चिंताजनक और खतरनाक संकेत भी उजागर होता है.

सबसे चिंताजनक निष्कर्ष तो यह है कि पूर्वी भारत के सबसे बड़े शहर कोलकाता का एक भी कॉलेज देश में आर्ट्स के शीर्ष 50 कॉलेजों में शुमार नहीं सका. हालांकि उसके तीन कॉलेज विज्ञान और कॉमर्स धाराओं में टॉप 50 में जगह बनाने में कामयाब रहे हैं, लेकिन पूर्वी भारत के तीन अन्य बड़े शहरों-गुवाहाटी, भुवनेश्वर और पटना का कोई भी कॉलेज तीनों मुख्य धाराओं में से किसी में भी टॉप 50 में जगह बनाने में कामयाब नहीं हो पाया है.

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चार महानगरों में भी ज्यादातर धाराओं में दिल्ली ही अव्वल है. राष्ट्रीय राजधानी के संस्थान सात धाराओं- आर्ट्स, विज्ञान, कॉमर्स, मेडिसिन, फैशन, बीएड और होटल मैनेजमेंट में अव्वल हैं. आर्ट्स, साइंस और कॉमर्स के टॉप 50 कॉलेजों में से क्रमशः 15, 13 और 10 दिल्ली में हैं. उच्च शिक्षा पर वर्ष 2014-15 की अखिल भारतीय सर्वेक्षण रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली में सिर्फ 188 कॉलेज हैं, यानी 18-23 के आयु वर्ग में प्रत्येक एक लाख की आबादी पर सिर्फ नौ, जो 27 के राष्ट्रीय औसत से बहुत कम है. इससे दाखिला चाहने वालों के बीच हर साल प्रवेश के लिए होने वाली गलाकाट प्रतिस्पर्धा की वजह स्पष्ट हो जाती है. इसीलिए लगातार साल-दर-साल आसमान छूती कट-ऑफ लिस्ट से इस साल भी कोई निजात मिलने के आसार नहीं दिखते.

पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में स्थिति ठीक उलट है. इस विशाल राज्य में देश में सबसे ज्यादा, 5,922 कॉलेज हैं. इसके बावजूद कला, विज्ञान व कॉमर्स में शीर्ष 50 कॉलेजों में राज्य के सिर्फ तीन कॉलेजों को स्थान मिल पाया है. हालांकि तकनीकी शिक्षा के मामले में यह अनुपात थोड़ा बेहतर है, जहां टॉप 25 में राज्य के चार इंजीनियरिंग कॉलेजों, तीन मेडिकल कॉलेजों और दो लॉ कॉलेजों को स्थान मिला है. महाराष्ट्र इस आंकड़े में बेहतर स्थिति में है. कुल 4,714 कॉलेजों के साथ राज्य देश में कॉलेजों की संख्या के मामले में दूसरे स्थान पर है. राजधानी मुंबई के नेतृत्व में, जिसके कई कॉलेज तमाम धाराओं में टॉप 10 में शामिल हैं—राज्य के 15 कॉलेज कला, विज्ञान और कॉमर्स स्ट्रीम में टॉप 50 में शामिल हैं. इसके अलावा उसके छह कॉलेज लॉ में और पांच मेडिसिन के मामले में टॉप 25 कॉलेजों में शामिल हैं.

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 अच्छी पढ़ाई वाले कॉलेजों का असमान वितरण, जिसमें बड़े महानगर ही शिक्षा के केंद्र के रूप में स्थापित हो रहे हैं, देश में 18-23 आयु वर्ग के 14.4 करोड़ युवाओं के लिए कोई अच्छी खबर नहीं है. फिक्की के अनुसार, 2030 तक 10 खरब डॉलर के आकार को छूकर भारत के दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन जाने का अनुमान है. इसके लिए 2030 तक देश को लगभग 25 करोड़ की सकल श्रमशक्ति की जरूरत होगी. उधर तेजी से वृद्ध होते विकसित देशों की आबादी में बुजुर्गों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. लिहाजा, उनको भी 2030 तक लगभग 5.6 करोड़ दक्ष कामगारों के अभाव का सामना करना पड़ेगा. ऐसे में भारत अकेले दम पर 4.7 करोड़ दक्ष श्रमशक्ति उपलब्ध कराने की स्थिति में होगा. यह एक ऐसा अवसर है, जिसे हमारा देश गंवाने की नहीं सोच सकता. लेकिन इस संभावना का दोहन करने के लिए देश में उच्च शिक्षा को भौगोलिक दृष्टि से और विस्तृत करना होगा और उसे अधिक समावेशी होना होगा.

तमाम धाराओं में उभरते कॉलेजों की फेहरिस्त पर निगाह डालने से इस दिशा में उम्मीद की किरण नजर भी आती है. विस्तार की प्रक्रिया धीरे-धीरे घर करने लगी है. रांची, जयपुर, आगरा, भोपाल, जोधपुर, शिमला और गंगटोक जैसे छोटे शहरों के कॉलेज प्रमुख इंजीनियरिंग कॉलेजों की फेहरिस्त में शामिल हो रहे हैं. पारंपरिक रूप से शीर्ष पर रहने वाले कॉलेजों को जल्द ही नई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. यह प्रतिस्पर्धा जितनी तेज व तीक्ष्ण होगी, छात्रों के लिए यह उतना ही बेहतर होगा.

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सर्वेक्षण का तरीका
भारत के बेस्ट कॉलेज का सर्वेक्षण इंडिया टुडे ग्रुप के लिए नीलसन कंपनी ने दिसंबर, 2015 से अप्रैल, 2016 के बीच किया, ताकि स्नातक  पाठ्यक्रम के 13 विषयों—आर्ट्स, साइंस, कॉमर्स, इंजीनियरिंग, मेडिसिन, लॉ, मास कम्युनिकेशन, फैशन टेक्नोलॉजी, फाइन आर्ट्स, बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन, कंप्यूटर एप्लिकेशन और शिक्षा में सर्वश्रेष्ठ कॉलेजों का चयन किया जा सके. शिक्षा में स्नातक पाठ्यक्रम यानी बीएड को इस साल पहली बार सर्वेक्षण में शामिल किया गया है.

आर्ट्स, साइंस व कॉमर्स स्ट्रीम के लिए 18 प्रमुख शहरों—अहमदाबाद, बेंगलूरू, चंडीगढ़, चेन्नै, दिल्ली, गुवाहाटी, हैदराबाद, जयपुर, कोच्चि, कोलकाता, लखनऊ, मुंबई, पुणे, भुवनेश्वर, इंदौर, कोयंबत्तूर, पटना और देहरादून में सर्वेक्षण किया गया. दस अन्य स्ट्रीम के लिए देशभर के कॉलेजों को शामिल किया गया. पहले चरण में सेकंडरी रिसर्च के जरिए 2850 कॉलेजों की सूची तैयार की गई. हर स्ट्रीम में फाइनल सूची तैयार करने के बाद हर शहर में वरिष्ठ फैकल्टी को एक प्रश्नावली भेजी गई. उन्हें पांच मानकों पर सौ अंकों को विभाजित करने के लिए कहा गया—कॉलेज की प्रतिष्ठा, शैक्षणिक गुणवत्ता, छात्र कल्याण, ढांचागत सुविधाएं और रोजगार की संभावनाएं. उनके व्यक्तिगत जवाबों को इकट्ठा करके इनमें से हरेक मानक का भार निर्धारित किया गया.

इसके बाद विशेषज्ञों को आर्ट्स, साइंस व कॉमर्स की स्ट्रीम में उनके शहरों के कॉलेजों और बाकी विषयों में उनके क्षेत्र (उत्तर, दक्षिण, पूर्व व पश्चिम) के कॉलेजों को रैंकिंग देने को कहा गया. किसी तरह के भेदभाव से बचने और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए विशेषज्ञों से कहा गया कि वे अपने कॉलेज की रेटिंग न करें. उसके बाद विशेषज्ञों के एक दूसरे पैनल को राष्ट्रीय परिदृश्य के अनुरूप कॉलेजों की रेटिंग उनकी स्ट्रीम के अनुसार करने को कहा गया. विशेषज्ञों के इन दो पैनलों द्वारा दी गई रेटिंग के अनुरूप किसी कॉलेज का समग्र अवधारणात्मक स्कोर निकाला गया. कुल 1434 विशषेज्ञों, जिनमें प्रिंसिपल, वाइस-प्रिंसिपल, विभागाध्यक्ष व डीन शामिल थे, की राय इस तरह से ली गई.

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अंतिम रैंकिंग निर्धारित करने के लिए आर्ट्स, साइंस व कॉमर्स स्ट्रीम में टॉप 50, इंजीनियरिंग, मेडिसिन और लॉ में टॉप 25 और बाकियों में टॉप 10 कॉलेजों से तथ्यात्मक आंकड़े मांगे गए. जिन कॉलेजों ने तथ्यात्मक आंकड़े देने से या सर्वेक्षण में शामिल होने से इनकार कर दिया, उन्हें अंतिम रैंकिंग में शामिल नहीं किया गया.

लॉ के अलावा अन्य स्ट्रीमों के लिए विश्वविद्यालयों के अंडरग्रेजुएट विभागों पर विचार नहीं किया गया. हालांकि डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा हासिल करने वाले एकल कॉलेजों को सर्वे में शामिल किया गया. धारणागत और तथ्यात्मक स्कोर को बराबर वजन दिया गया और अंतिम स्कोर हासिल करने के लिए उन्हें मिलाया गया. बीएड की रैंकिंग पूरी तरह धारणागत आंकड़ों पर ही आधारित है. इस सर्वेक्षण का मूल मकसद एक फेहरिस्त तैयार करना है जिससे देश में शिक्षा के स्तर और छात्रों की सहूलियत का पता चल सके. इस तरह छात्रों और उनके अभिभावकों को भी बेहतर कॉलेजों के चयन में मदद मिलेगी. साथ ही हर साल होने वाले इस सर्वेक्षण से विभिन्न शिक्षा संस्थानों में एक स्वस्थ स्पर्धा का वातावरण भी तैयार हुआ है. जाहिर है, इससे इसका भी पता चलता है कि शिक्षा के क्षेत्र में कैसी पहल की दरकार है.

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