इंडिया टुडे माइंड रॉक्स 2019 के सेशन ब्रेकिंग द फ्रंटियर्स: वुमेन ऑन ए मिशन (Breaking the Frontiers: Women on a Mission) में सिमरन शेख के संघर्ष की दास्तां ने सभी को झकझोर कर रख दिया. सिमरन एक ऐसी पहचान जो लड़के की पहचान में पैदा हुआ, इसी पहचान से अपने भीतर के वजूद तक पहुंचने के सफर ने उन्हें एक पूरे समाज की आवाज बना दिया. आइए जानें, कौन हैं सिमरने शेख, कैसे विदेशों तक बनीं थर्ड जेंडर की आवाज.
सेशन मॉडरेटर विक्रांत गुप्ता के सवाल, सिमरन शेख कौन है? पर सिमरन ने कहा कि सिमरन एक व्यक्ति है जिनको आपने लाल बत्तियों पर देखा है, रात को छोटे कपड़े पहने हाईवे पर भी देखा होगा, सिमरन ऐसी भी व्यक्ति है जो इंडिया को देश के बाहर रिप्रजेंट करती है. सिमरन ऐसी भी व्यक्ति है जो जेंडर नॉर्म्स को न फॉलो करते हुए तय सीमाओं से परे भी जा सकती है.
उन्होंने आगे कहा कि मैं आज यहां इसलिए हूं क्योंकि यहां मैं थर्ड जेंडर (दिल्ली वाली भाषा में किन्नर समाज) को रिप्रजेंट करने आई हूं. मैं इस समाज से हूं, मैंने उनके लिए काम किया है, आज भी मैं उनके लिए काम कर रही हूं.
जब पिता ने कही ये बात, सिमरन ने छोड़ दिया घर
सिमरन बताती हैं कि मेरी यात्रा एक 'नॉर्मल' आम इंसान की तरह शुरू हुई. वो कहती हैं कि वैसे मेरी डिक्शनरी में नॉर्मल की वो परिभाषा है ही नहीं जो हमारे समाज ने बनाई है. वो बताती हैं कि मेरा जन्म एक पारसी लड़के के तौर पर पारसी कॉलोनी मुंबई में हुआ था. अचानक 14 साल की उम्र में जिंदगी ने मोड़ ले लिया. जब मैंने अपने पिता से कहा कि मैं लड़के की बॉडी से अपनी पहचान नहीं जोड़ पाता हूं.
उन्हें लगा कि मेरे बेटे को क्रिकेट, बास्केट बॉल वगैरह खेलना चाहिए ताकि इंट्रोवर्ट होकर ऐसा न सोचे. लेकिन मुझे क्रिकेट पसंद नहीं था. मुझे किताबें पढ़ना, किचन में काम करना मुझे पसंद था. मैंने उनसे कहा कि मुझे कंफर्टेबल नहीं है, तो उन्होंने कहा कि लड़का पैदा हुआ है तो लड़का ही होना पड़ेगा, इस पर मैंने कहा कि मुझे घर से चला जाना चाहिए. पिता ने कहा कि जाओ दरवाजा खुला है.
सिस्टम है खराब, 98 प्रतिशत बचपन में ट्रांसजेडर छोड़ देते हैं घर
कसूर किसका था, आज सही करना चाहे तो किसे सही करेंगे सिमरन या मां बाप? इस सवाल पर वो कहती हैं कि मैं सिस्टम को सही करूंगी. इसी सिस्टम में माता पिता आते हैं. मां बाप कोई सिस्टम से बाहर नहीं होते, वो भी सिस्टम के अंदर होते हैं. ये सिस्टम ही है कि 98 ट्रांसजेंडर बच्चे या तो घर से बाहर फेंक दिए जाते हैं या भाग जाते हैं. इसके पीछे मां बाप नहीं बल्कि सिस्टम का दोष होता है.
आज जहां हूं, बहुत खुश हूं
वो कहती हैं कि आज जहां हूं वहां जिंदगी का हर लम्हा जी रही हूं. स्ट्रगल का कोई इंडीकेटर नहीं होता. सबकी लाइफ में स्ट्रगल होता है, लेकिन वो मीजरेबल नहीं होता. जब स्ट्रगल से उठकर किसी की लाइफ इजी करते हो, वो योगदान होता है.