दस साल की बढ़त कानून के बाकी संस्थानों से आने वाले कई दशकों के लिए आगे कर देगी. देश के प्रमुख विधि संस्थान नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआइयू) के कर्ताधर्ता इसी मूल मंत्र के सहारे कुछ आला कानूनी शख्सियतों को आकार दे रहे हैं.
एनएलएसआइयू अपनी तरह का ऐसा पहला संस्थान है जिसकी स्थापना 1987 में बेंगलूरू में कानून की पढ़ाई में सुधार और कानूनी शोध के लिए विविध अंशधारियों ने मिलकर की. करीब तीन दशक में ही यह लॉ के विभिन्न क्षेत्रों में सफल करियर बनाने के आकांक्षी छात्रों का सबसे पसंदीदा संस्थान बन गया. एनएलएसआइयू के वाइस चांसलर प्रोफेसर आर. वेंकट राव कहते हैं, “इस संस्थान के संस्थापकों और उनके दूरदर्शी नजरिए को यह श्रेय जाता है कि आज यह निर्विवाद रूप से देश का आला विधि संस्थान है. हम हमेशा ही देश के विभिन्न हिस्सों के बड़े संस्थानों से दस साल आगे हैं.”
आज, एनएलएसआइयू के ग्रेजुएट दुनिया भर में काम करते हुए मिल सकते हैं. कई रॉड्स, आइएनएलएकेएस और दूसरी स्कॉलरशिप्स के आधार पर ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज, वारविक, हार्वर्ड, येल, कोलंबिया, मिशिगन और यॉर्क जैसी दुनिया की जाने-मानी यूनिवर्सिटी में उच्चतर शिक्षा पा रहे हैं. कई दूसरे देश भर में निचली अदालतों से लेकर हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत कर रहे हैं. कुछ ने अपनी स्वतंत्र वकालत शुरू की है तो कई इस इंस्टीट्यूट के पूर्व छात्रों के साथ मिलकर कर रहे हैं. कुछ देश और विदेश के कॉर्पोरेट लॉ फर्मों में काम कर रहे हैं. वाइस चांसलर राव कहते हैं, “कुछ ग्रेजुएट देशी और अंतरराष्ट्रीय एनजीओ के साथ काम कर रहे हैं तो कुछ संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं, विश्व बैंक और आइएमएफ से जुड़ गए हैं तो कई अकादमिक जगत में चले गए हैं. कुछ इसी यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे हैं तो कई एनएएलएसएआर (हैदराबाद), एनयूजेएस (कोलकाता), कैंब्रिज, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, ईस्ट एंगलिया, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर जैसे इंस्टीट्यूट में पढ़ा रहे हैं.” कई न्यायपालिका में हैं तो कुछ प्रशासनिक सेवा में चले गए हैं.इसमें कोई आश्चर्य इसलिए नहीं है क्योंकि एनएलएसआइयू में विभिन्न विषयों के रिकॉर्ड पीठ बने हुए हैं. मानवाधिकार, बिजनेस लॉ, डब्ल्यूटीओ, वैकल्पिक विवाद समाधान, सार्वजनिक कानून तथा नीति, किशोर न्याय वगैरह. छात्र इन तमाम विकल्पों में से अपनी दिलचस्पी का चुन सकते हैं. एनएलएसआइयू देश के उन चुनिंदा इंस्टीट्यूट्स में भी है, जिससे नया कानून बनाते समय या पुराने कानून में संशोधन करते समय केंद्र और राज्य सरकारें सलाह लेती हैं. इसलिए हमारे छात्रों को उपभोक्ता संरक्षण कानून को मजबूत बनाने और विवादास्पद रियल एस्टेट विधेयक पर काम करने और अपनी सिफारिशें देने का मौका मिल जाता है.
राव कहते हैं, “हम छात्रों को इन सभी गतिविधियों में शामिल करते हैं. इस तरह वे डिग्री हासिल करने के पहले ही ऐसे नियम बनाने में अहम भूमिका निभा चुके होते हैं जो आगे देश में लागू होगा. कई बार तो कैबिनेट मंत्रियों ने संसद में विपक्ष के सवालों के जवाब के लिए हमसे संपर्क किया. कानून के छात्रों को ऐसे अनुभव विरले ही मिलते हैं.”
एनएलएसआइयू को हाल में केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय से उपभोक्ता हितों की रक्षा के लिए ऑनलाइन मध्यस्थता केंद्र (ऑनलाइन मीडिएशन सेंटर) बनाने के लिए एक करोड़ रु. का अनुदान मिला. अगले कुछ महीनों में शुरू होने वाला यह देश में अपनी तरह का इकलौता सेंटर होगा. इसको बनाने में छात्रों की अहम भूमिका होगी. एनएलएसआइयू में देश में अपनी तरह का इकलौता साइबर लॉ लैब भी है. इंस्टीट्यूट में एडवांस्ड सेंटर फॉर साइबर लॉ ऐंड साइबर फॉरेंसिन्न्स के अंग के रूप में स्थापित यह लैब सीबीआइ समेत आला सरकारी अधिकारियों को नए मामलों के लिए प्रशिक्षित करेगी. एनएलएसआइयू में साइबर लैब सेंटर के संचालक और असिस्टेंट प्रोफेसर नागरत्न ए. कहते हैं, “छात्र साइबर लॉ के नए रुझानों में दिलचस्पी ले रहे हैं क्योंकि भारत तेजी से डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है.”