गणित एकाग्रता और जिज्ञासा का विषय है. बतौर गणितज्ञ दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) के वाइस चांसलर दिनेश सिंह बेहद मामूली-से लेकर गंभीर मामलों पर भी करीबी निगाह रखते हैं. मसलन, वे आपको बता सकते हैं कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढऩे वाली कोई लड़की चलते समय अपने पुरुष मित्र के मुकाबले फोन पर ज्यादा बातें करती है. लेकिन इसी के साथ-साथ वे यह भी जानते हैं कि छात्रों को क्लासरूम में बिठाकर विमान बनाने की थ्योरी पढ़ाने से बेहतर है कि उन्हें किसी विमान की डिजाइन बनाने वाली टीम में शामिल होने का मौका दिया जाए.
दिनेश सिंह कहते हैं, “जो वे पढ़ रहे हैं, उसकी व्यावहारिक उपयोगिता समझाइए और असल दुनिया का एहसास कराइए तो उनका दिमाग खुलेगा और उन्हें अपने भीतर की आवाज सुनाई देगी. यही तो शिक्षा का लक्ष्य है.” इन्हीं छोटे-छोटे अनुभवों से दिनेश सिंह ने डीयू को शिक्षा के क्षेत्र में न सिर्फ नए प्रयोगों का केंद्र बना दिया है, बल्कि पिछले तीन साल से लगातार उसे इंडिया टुडे ग्रुप-नीलसन के बेस्ट यूनिवर्सिटी के सर्वेक्षण में पहले स्थान पर भी बनाए रखा है.
यकीनन इस यूनिवर्सिटी की प्रतिष्ठा देश भर से बेहतरीन प्रतिभाओं को अपनी ओर आकर्षित करती है. यूनिवर्सिटी के विभिन्न कोर्सों में दाखिले के लिए लगी भारी भीड़ को देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है. फिर, क्लस्टर इनोवेशन सेंटर (सीआइसी) में 11 असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती के लिए 400 उम्मीदवारों की फेहरिस्त भी इस तथ्य पर रोशनी डालती है कि क्यों इस विश्वविद्यालय में काबिल शिक्षकों का कभी कोई संकट नहीं होता. फिर भी दिनेश सिंह को अपने कार्यकाल के पहले ही साल में एक बड़ा झटका झेलना पड़ा, जब उनके बुलावे पर कैंपस में आई एक आला बहुराष्ट्रीय कंपनी ने उन्हें बताया कि उनके अधिकांश छात्र नौकरी देने के योग्य नहीं हैं.
इसी के बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी में कई इनोवेशन प्रोग्राम की शुरुआत की. इसका बुनियादी मकसद यह है कि छात्र अपने ज्ञान को व्यावहारिकता में उतारना सीखें. उन्हें हुनरमंद बनाया जाए और उनमें कौशल का विकास हो. कौशल विकास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी प्रिय विषय है. 2012 से अंडरग्रेजुएट छात्रों को खास क्षेत्रों में शोध करने और ऐसे नतीजे निकालने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, जिससे समाज को कोई लाभ हो सके. यूनिवर्सिटी के एक दस्तावेज में कॉलेजों में इनोवेशन प्रोजेक्ट प्रोग्राम का मकसद कुछ यूं जाहिर किया गया हैः “अध्यापक अक्सर कहते हैं कि उन्हें शोध के लिए मौके की तलाश है, जबकि छात्र विभिन्न विषयों की जानकारी हासिल करना चाहते हैं, सीखना चाहते हैं. अनुशासित पाठ्यक्रम और तयशुदा लेक्चर में शिक्षकों और छात्रों को नए ढंग सीखने का मौका ही नहीं मिल पाता.”
इस यूनिवर्सिटी में हर अध्यापक को नई परियोजना शुरू करने के लिए 5 लाख रु. प्रारंभिक अनुदान मिलता है. इसके अलावा विज्ञान के अध्यापकों को हर साल 3 लाख रु. और आर्ट्स वालों को 1.5 लाख रु. दिए जाते हैं. इसके नतीजे चौंकाने वाले रहे हैं. आइआइटी बॉम्बे से प्रशिक्षण लेने के बाद छात्रों ने सीआइसी में एक 3डी प्रिंटर का डिजाइन बनाया, जिसकी कीमत महज 20,000 रु. है, जबकि बाजार में उपलब्ध अन्य मॉडल 1 लाख रु. से अधिक के हैं.
दिल्ली यूनिवर्सिटी को 2014 में प्रमोशन ऑफ यूनिवर्सिटी रिसर्च ऐंड साइंटिफिक एक्सेलेंस (पीयूआरएसई) अनुदान के तहत 40.8 करोड़ रु. मिले, जो 14 चुने गए संस्थानों में सबसे अधिक था. सरकार का विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग शोध और विकास में योगदान के लिए पीयूआरएसई अनुदान देता है. इस साल फरवरी में राष्ट्रपति ने जैव-रसायन विभाग के दो प्रोफेसरों विजय के. चौधरी और अमिता गुप्ता को टीबी की सबसे तेज जांच प्रक्रिया विकसित करने के लिए बेस्ट इनोवेशन अवॉर्ड से नवाजा. यह किट अब बाजार में उपलब्ध है और इसकी अच्छी बिक्री हो रही है.
मामला महज शोध और नवोन्मेष का ही नहीं है. यहां पढ़ाई में संपूर्णता पर भी जोर दिया जा रहा है. क्लासरूम के बाहर भी सीखने के लिए प्रेरित किया जाता है. ऐसा ही एक प्रयोग ज्ञानोदय एक्सप्रेस भी है यानी देश के विभिन्न हिस्सों का ट्रेन से भ्रमण. 2014 में ऐसी पांच ट्रेनें रवाना की गईं. इनमें से एक पूर्वोत्तर के सात राज्यों में गई थी. दिल्ली विश्वविद्यालय के 900 छात्रों ने इस ट्रेनों से देश भर की यात्रा की. इसी तरह लंदन के किंग्स कॉलेज के और एडिनबरा यूनिवर्सिटी के 100 छात्र लुधियाना की यात्रा पर गए. भूगोल विभाग की प्रोफेसर अनु कपूर कहती हैं, “इन यात्राओं से जानकारी ही नहीं बढ़ती, बल्कि कैंपस में कॉस्मोपॉलिटन माहौल भी तैयार होता है. पूर्वोत्तर की यात्रा से लौटे छात्र उस जगह के बारे में नया नजरिया लेकर आए हैं.”
छात्रों की सुविधा दिल्ली यूनिवर्सिटी के एजेंडे में सबसे ऊपर है. ज्यादातर क्लासरूम में वाइ-फाइ की सुविधा है. अब अगला लक्ष्य पूरे विश्वविद्यालय परिसर में मुफ्त वाइ-फाइ मुहैया कराना है. लड़कियों की सुरक्षा के लिए कैंपस के हर कोने में सीसीटीवी कैमरे लगाने पर विचार हो रहा है. दिनेश सिंह कहते हैं, “मुझे उम्मीद है कि एकाध महीने में पूरा कैंपस सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में होगा.” वे डीयू को खेल का केंद्र भी बनाना चाहते हैं. इस साल लड़कों की हॉकी टीम को महीने भर की ट्रेनिंग के लिए एडिनबरा यूनिवर्सिटी भेजा गया. 2013 में लड़कियों की फुटबॉल टीम को ट्रेनिंग और नए अनुभवों के लिए न्यूजीलैंड भेजा गया था.
यहां शारीरिक विकलांगता के शिकार छात्रों पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है. इस तरह के छात्रों की संख्या कुल रेजीडेंट छात्रों की 5 फीसदी है. उन्हें लैपटॉप भी दिए गए हैं और यूनिवर्सिटी बसों में उन्हें मुफ्त यात्रा की छूट है. इस साल इन छात्रों को दक्षिण कोरिया और ब्रिटेन की यात्रा पर भेजा गया ताकि वे जान सकें कि वहां विकलांग छात्रों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है.
दिनेश सिंह अक्तूबर में रिटायर हो रहे हैं. रिटायरमेंट के चार महीने पहले उनकी बेचैनी बढ़ रही है. उन्हें लगता है कि बहुत काम अधूरे पड़े हैं और समय कम है. वे विभिन्न विषयों के अध्यापकों के बीच आपसी संवाद की कमी से बहुत नाखुश हैं. वे कहते हैं, “गणित और सांख्यिकी विभाग एकदम अगल-बगल हैं. फिर भी दोनों विभागों के प्रोफेसरों में बातचीत तक नहीं होती. भारत में भौतिक विज्ञानी, रसायनशास्त्र वालों से बात नहीं करते, बॉटनी वाले बॉयो-टेक्नोलॉजी वालों से बात नहीं करते. अगर हमें वाकई ज्ञान का केंद्र बनना है तो यह सीखना होगा कि हम अपने ज्ञान को वास्तविक संसार के लिए कैसे उपयोगी बनाएं.”
सबसे अलग
यूनिवर्सिटी ने क्लस्टर इनोवेशन सेंटर शुरू किया है, ताकि व्यावहारिक दिक्कतों को दूर करने वाले शोध को मदद दी जा सके और छात्रों के ज्ञान का उपयोग हो सके.
फख्र की बात
सीआइसी के छात्रों ने एक 3डी प्रिंटर का डिजाइन तैयार किया, जिसकी कीमत बाजार में उपलब्ध दूसरे मॉडलों की तुलना में एक-चौथाई कम है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी ने 2014 में पीयूआरएसई से 40.8 करोड़ रु. का अनुदान हासिल किया, जो चुने गए 14 संस्थानों में सबसे अधिक था.
जैव-विज्ञान विभाग के दो प्रोफेसरों को तेजी से टीबी की जांच विधि ईजाद करने के लिए राष्ट्रपति ने बेस्ट इनोवेशन अवॉर्ड दिया.