भारतीय छात्र विदेशी शिक्षा पर हर वर्ष 6 से 7 अरब डॉलर (377 से 439 अरब रुपये) खर्च करते हैं. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस और एसोचैम के सर्वे के अनुसार देश में हायर एजूकेशन संस्थानों की कमी के चलते विदेश जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ रही है.
ऐसे होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारे देश के संस्थान अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में काफी पीछे हैं, इनमें रिसर्च के लिए संसाधन मौजूद नहीं हैं.
हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूट्स को केंद्र और राज्य सरकारों से मिलने वाले फंड का करीब 90 परसेंट सैलरी और बुनियादी सुविधाएं देने में ही खर्च हो जाता है. लिहाजा शिक्षा से जुड़ी बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं हो पाती है.
सर्वे के अनुसार शिक्षण संस्थानों में पुराने कॅरिकुलम, शिक्षकों की कमी, राजनीति जैसे कारणों के चलते अब मध्यवर्गीय परिवारों के भारतीय छात्र भी विदेश जाना पसंद करते हैं.