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सौरभ मुखर्जी: कभी दुकानों की सफाई तक की थी, आज हैं देश के शीर्ष पूंजी सलाहकार

15 वर्ष की उम्र से ही सौरभ मुखर्जी ने स्कूल जाने के साथ दुकानों की सफाई तक का काम किया. आज हैं शीर्ष पूंजी सलाहकार.

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यह 1991 की बात है. सौरभ मुखर्जी 14 साल के थे और अपना होमवर्क निबटा रहे थे. उनके पिता काम से लौटकर घर आए और परिवार को बताया, ''हम इंग्लैंड रहने जा रहे हैं. '' कुछ मिनटों की आश्चर्य भरी चुप्पी के बाद उनकी मां ने जानना चाहा कि इंग्लैंड के लिए निकलने में कितना समय है? वे तो मानसिक रूप से तैयार हो चुके थे. अपनी भावनाओं पर काबू पाते हुए मुखर्जी परिवार सूटकेसों में अपनी दुनिया समेट हवाई अड्डे की ओर निकल पड़ा. सौरभ के लिए किसी भी स्थिति से निबटने का गुर सीखने की प्रक्रिया शायद यहीं से शुरू हो चुकी थी.

इंग्लैंड में 18 साल के होते-होते वे चार अलग-अलग तरह की नौकरियां कर चुके थे. उन्होंने हॉकर से लेकर बाथरूम फिटिंग पहुंचाने, दुकानों में सफाई से लेकर सट्टेबाजी की दुकान तक में काम किया. ''पढ़ाई से ज्यादा इन नौकरियों में मैंने काम की बातें सीखीं, मसलन नौकरी के इंटरव्यू में खुद को ढंग से पेश करना, समय का बेहतर प्रबंधन और सबसे महत्वपूर्ण, जिंदगी में कभी हार न मानना. '' नौकरी की तलाश के दिनों में उन्हें मिले कई अस्वीकृति पत्रों में सबसे यादगार था हिल्टन होटल का. इसमें उन्हें यह कहते हुए मना कर दिया गया था कि उनके पास होटल के कमरों की सफाई के अनुभव की कमी है.

जब वे लंदन की एक इक्विटी रिसर्च फर्म क्लियर कैपिटल के सह-संस्थापक बने, तो उनके शुरुआती ग्राहकों में से एक थे—डेविड रॉस. वे एडिनबरा के जाने-माने स्मॉल कैप फंड प्रबंधन घराने एबरफोर्थ पार्टनर्स में भागीदार थे. रॉस के स्कॉटिश लहजे को समझने के लिए उन्हें बेहद चौकन्ना रहना पड़ता था. फिर भी उन्होंने रॉस से सीखा कि प्रबंधन टीमों का आकलन कैसे किया जाए. सौरभ ने 2007 के एक्सटेल यूके स्मॉल-मिडकैप सर्वे में कैपिटल क्लियर को टॉप-3 रैंक दिलवाया.
सौरभ मुखर्जी की बचपन की तस्वीर
(बचपन के दिनों में सौरभ मुखर्जी)

2008 में उन्होंने क्लियर कैपिटल को बेच दिया और अपने पहले बच्चे के जन्म के तुरंत बाद पत्नी के साथ भारत आ गए. उन्होंने धीरे-धीरे यहां की बारीकियां सीखीं और भारतीय शेयर बाजार के इर्द-गिर्द जगह बनाई. जनवरी, 2011 में, जब इन्फोसिस के शेयर का भाव बाजार में 3,200 रु. था, एम्बिट कैपिटल ने आम धारणा के उलट जाकर यह सिफारिश की कि निवेशक इन्फोसिस के शेयर बेच डालें. सौरभ का तर्क था कि मजबूत प्रबंधन के बावजूद, आइटी का यह महारथी न तो उभरते हुए तकनीकी विकास के अनुरूप स्वयं को ढाल रहा है और न ही उसको अपना रहा है. इससे उन्होंने ग्राहकों को नुक्सान से बचा लिया. हाल में आई उनकी किताब गुरूज ऑफ कैओस: मॉडर्न इंडियाज मनी मास्टर्स काफी सराही गई है.

वे कहते हैं, ''जीवन ने मेरे प्रति उदारता बरती है, मेरी भी जिम्मेदारी है कि मैं उन तमाम लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरूं, जिन्होंने बड़ा होने में मेरी मदद की है. ''

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