हौसला बुंलद हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं है और ऐसी ही मिसाल कायम ही सुनीता चौधरी ने जो उत्तर भारत की पहली महिला ऑटो रिक्शा चालक हैं. सुनीता को साल 2017 में भारत की 100 शिखर महिलाओं में से एक होने का गौरव हासिल हुआ था, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रपति भवन में सम्मानित किया गया. आज महिला दिवस पर जानें उनकेसंघर्ष की कहानी, जिसकी वजह से वह चर्चा का विषय बन गई हैं.
ऐसे शुरू हुआ सफर
उत्तर प्रदेश एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखने वाली सुनिता का संघर्ष किसी कहानी से कम नहीं है. साल 1991 में सुनिता का बाल विवाह करवा दिया गया. शादी के बाद अक्सर ससुराल वाले दहेज के नाम पर मारा-पीटा करते थे और मेंटली टॉर्चर करते थे.
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कम उम्र होने की वजह से वह अपनी आपबीती किसी से शेयर नहीं कर पाती थीं. एक दिन ससुराल वाले के टॉर्चर से परेशान होकर वह घर छोड़कर भाग गई. जिसके बाद नई जिंदगी शुरू करने के बारे में सोचा.
आज सुनीता करीब 40 साल की हैं. इस उम्र में आज भी रोज सुबह सफेद सूट- सलवार और भूरे रंग के जूते पहन कर दिल्ली की सड़कों ऑटो रिक्शा चलाती हैं. सुनीता ने घर छोड़ दिया और दिल्ली आ गई. दिल्ली आकर वह कुछ अलग करना चाहती थी ताकि पैसों की कमी पूरी हो जाए. पहले उन्होंने पैसे कमाने के लिए कई जगह पर काम किया लेकिन वहां से पैसे कम मिलते थे.
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जिसके बाद उन्होंने ऐसे काम के बारे में सोचा जिससे उनकी आर्थिक स्थिति सुधर जाए.फिर एक दिन उन्हें ऑटो रिक्शा चलाने का ख्याल आया. उन्होंने साल 2004 में ऑटो रिक्शा चलाना शुरू कर दिया, लेकिन ये इतना आसान नहीं जितना लगता था. उस दौरान उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था.
ड्राइविंग लाइसेंस के लिए करनी पड़ी मेहनत
सुनीता को सबसे ज्यादा मेहनत उन्हें लाइसेंस के लिए करनी पड़ी. काफी मेहनत के बाद उन्हें लाइसेंस मिला जिसके बाद उन्होंने ऑटो रिक्शा चलाने की ट्रेंनिग लेनी शुरू की. सुनीता कहती हैं 'समाज के थपेड़े इंसान को जीना सीखा देती हैं.'
पुरुष प्रधान समाज में दिल्ली जैसे बड़ शहर में एक महिला के लिए ऑटो रिक्शा चलाना मुश्किल तो था, लेकिन नामुमकीन नहीं था. पहले वह किराये का ऑटो रिक्शा चलाती थी . आज वह खुद का ऑटो रिक्शा चलाती हैं. उन्होंने बताया कि ये बात लोगों के लिए हजम कर पाना मुश्किल था कि एक महिला ऑटो रिक्शा चालक हैं.
इंडियन एक्प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सुनीता ने लोकसभा चुनाव से पहले 2012 में उप-राष्ट्रपति के चुनाव के लिए चुनाव लड़ चुकी हैं. आज वह सुकून की जिंदगी जी रही हैं. उनका कहना है अगर महिलाएं मजबूत होंगी, तो समाज में बराबरी का महौल अपने आप पैदा हो जाएगा. ऑटो रिक्शा चलाकर वह प्रतिदिन 500 रुपये कमाती हैं. साथ ही वह बाल-विवाह और शारीरिक शोषण पर लोगों को जागरूक भी करती हैं.