एक महिला का जीवन काफी कठिनाईयों से भरा है. आज भी समाज में विधवाओं को वो दर्जा नहीं मिल पाता जिसकी वह हकदार हैं. आम औरतों के तरह वह समाज में चैन नहीं रह पाती. जैसे मानों पति के मृत्यू का सारा कसूर उनका ही हो. पर ऐसा कब तक चलता. किसी ना किसी को तो आवाज उठानी ही थी. विधवा महिलाओं के लिए मसीहा बन कर आए ईश्वर चंद्र विद्यासागर की तमाम कोशिशों के बाद विधवा-पुनर्विवाह कानून बना. महिलाओं को दूसरा जीवन देने वाले ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने 29 जुलाई 1891 में दुनिया को अलविदा कह दिया. भले ही आज वह हमारे बीच ना हो पर हर हर विधवा महिला की मुस्कान कोे देखकर उन्हें याद किया जा सकता है.
जानतें हैं उनकी जिंदगी के अहम पहलू के बारें में
1. ईश्वर चंद्र विद्यासागर के बचपन का नाम ईश्वर चन्द्र बन्दोपाध्याय था. वे बंगाल के पुनर्जागरण के स्तम्भों में से एक थे.
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2. इनका जन्म पश्चिम बंगाल में हुआ था, करमाटांड़ इनकी कर्मभूमी थी.
3. वे उच्चकोटि के विद्वान थे. उनकी विद्वता के कारण ही उन्हें विद्दासागर की उपाधि दी गई थी.
4. वे नारी शिक्षा के समर्थक थे. उनके प्रयास से ही कलकत्ता में अन्य स्थानों में बहुत अधिक बालिका विद्यालयों की स्थापना हुई.
5. उस समय हिन्दु समाज में विधवाओं की स्थिति बहुत ही सोचनीय थी. उन्होनें विधवा पुनर्विवाह के लिए लोगमत तैयार किया. उन्हीं के प्रयासों से साल 1856 में विधवा-पुनर्विवाह कानून पारित हुआ. उन्होंने अपने इकलौते पुत्र का विवाह एक विधवा से ही किया.
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6. विधवा पुनर्विवाह शुरू करने के साथ ही उन्होंने बाल विवाह का भी विरोध किया . साथ ही सती प्रथा के खिलाफ आवाज उठाकर नारी सम्मान की परंपरा शुरू की.
7. वे एक फिलॉसफर, एकेडेमिक, लेखक, ट्रांसलेटर, प्रकाशक , उद्यमी, सुधारक और समाजसेवी थे.
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8. उन्होंने बंगाली अल्फाबेट को दुबारा आकार दिया. बंगाली टॉपोग्राफी में सुधार किया.
9. ईश्वर चंद्र विद्यासागर सुधारक के रूप में राजा राममोहन राय का उत्तराधिकारी माना जाता हैं.