जेएनयू छात्रसंघ चुनाव की प्रक्रिया दिल्ली विश्वविद्यालय से बिल्कुल अलग होती है. जहां डीयू में प्रचार के दौरान जमकर हो हल्ला होता है, कैंपस पोस्टर-बैनर से पट जाते हैं वही जेएनयू में छात्र संगठन किसी एक दिन मशाल जुलूस निकाल कर बड़ी रैली करते हैं. तो वही हॉस्टल, मेस और ढाबा प्रचार के तरीके अपनाते है और सबसे दिलचस्प होती है जेएनयू की प्रेसिडेंशियल डिबेट. जो की 7 सितम्बर को रात 9 बजे आयोजित होगी.
चीफ इलेक्शन कमिश्नर इशिता मन्ना ने लगाई रोक
लेकिन इस साल जेएनयू में छात्रसंघ चुनाव से पहले होने वाला ओपिनियन पोल नहीं होगा. दरअसल चुनाव में मतदाताओं के मूड को भांपने के लिए एक छात्र के द्वारा ओपिनियन पोल कराए जाने पर चीफ इलेक्शन कमिश्नर इशिता मन्ना ने रोक लगा दी है. इशिता मन्ना के मुताबिक कैंपस में जारी चुनाव प्रक्रिया के दौरान ओपिनियन पोल चुनाव के नतीजों को प्रभावित कर सकता है. हालांकि इससे इतर चुनाव समिति ने नौ सितंबर को मतदान के दौरान एग्जिट पोल की व्यवस्था से इंकार नहीं किया है.
चीफ इलेक्शन कमिश्नर इशिता मन्ना ने बताया कि उन्हें अंकित हंस नाम के छात्र की तरफ से ओपिनियन पोल कराए जाने की जानकारी मिली थी. कैंपस में चुनाव के दौरान इस कार्रवाई को लेकर कोई मंजूरी नहीं ली गई थी इसलिए इस गतिविधि पर रोक लगा दी गई .
इशिता ने बताया इस छात्र के आवेदन पर विचार करने के बाद हमने निर्णय दिया है कि कोई भी ओपिनियन पोल आचार संहिता लागू होने और उम्मीदवारों के नामों की घोषणा से पूर्व होता है तो वह उचित है और उसका असर चुनाव में मतदाताओं को प्रभावित नहीं करता है. लेकिन जब आचार संहिता लागू है और प्रचार अभियान जारी है तो इसकी मंजूरी उचित नहीं है.