झारखंड सरकार ने जेपीएससी-2016 की पीटी के रिजल्ट पर विवाद को निबटाने के लिए नियमावली में संशोधन किया है. अब अनारक्षित वर्ग के अंतिम सफल उम्मीदवार के बराबर या उससे अधिक नंबर पानेवाले आरक्षित वर्ग के आवेदक मुख्य परीक्षा में शामिल हो सकेंगे. हालांकि अनारक्षित वर्ग में अभी भी कुल रिक्तियों के मुकाबले 15 गुना परीक्षाफल प्रकाशित होगा. यह मापदंड दिव्यांगों को मिले प्राप्तांक को छोड़ कर होगा. यह संशोधन एसएससी समेत भविष्य में होने वाली सभी ऐसी परीक्षाओं के लिए प्रभावी होगा, जिसमें पीटी का प्रावधान है.
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क्या था आरोप
इस बार जेपीएससी सिविल सेवा पीटी परीक्षा 2016 के रिजल्ट में आरक्षण नियमों के उल्लंघन किये जाने का आरोप था. जिसके बाद छात्र सड़कों पर उतर आए थे. और आयोग कार्यालय के समक्ष नाराज छात्रों का विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था. छात्रों का कहना था कि आयोग ने इस बार की परीक्षा में आरक्षित कोटियों का कट-ऑफ मार्क्स सामान्य वर्ग से अधिक रखा है, जिसकी वजह से कम मार्क्स होने के बावजूद सामान्य वर्ग के उम्मीदवार सफल रहे हैं. वहीं अधिक मार्क्स लाने के बाबजूद आरक्षित कोटि के उम्मीदवार असफल घोषित किये गए हैं. छात्र, आयोग से कट ऑफ मार्क्स और कैटेगरी वाइज रिजल्ट जारी करने की मांग कर रहे थे.
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क्या कहना था JPSC का
इस विवाद में जेपीएससी ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि परीक्षाफल के प्रकाशन में पूर्ण पारदर्शिता बरती गयी है. जहां तक आरक्षण का प्रश्न है, प्रारंभिक परीक्षा में आरक्षण का प्रावधान नहीं है क्योंकि इसके अंक मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू में मिले अंको में नहीं जोड़े जाते हैं. आरक्षण मुख्य परीक्षा और उसके बाद के मूल्यांकनों में मिलता है. गौरतलब है कि इस बार की परीक्षा में करीब 80 हजार छात्र शामिल हुए थे, जिनमें से 5,138 छात्रों को सफल घोषित किया गया है. आयोग ने सफल छात्रों की संख्या निर्धारित रिक्त 326 पदों के मुकाबले 15 गुणा से कहीं अधिक होने का दावा किया है.
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पहले भी विवादों में रही है JPSC की कार्यशैली
जेपीएससी और विवादों का चोली-दामन का रिश्ता रहा है. अब तक आयोग द्वारा लिए गए लगभग सभी परीक्षाओं में अनियमितता की शिकायतें दर्ज हुई हैं. आयोग द्वारा लिए गए पहले के तीन सिविल सेवा परीक्षाओं सहित कई और परीक्षाओ की जांच फिलहाल सीबीआई कर रही है. इन मामलों में जेपीएससी के तत्कालीन अध्यक्ष और कई सदस्यों को अनियमितता बरतने के आरोप में जेल की हवा खानी पड़ी है. ऐसे में ताजा विवाद एक बार फिर से आयोग की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है.