आज शंकरदयाल शर्मा की जयंती है. वह भारत के 9वें राष्ट्रपति थे. उनका जन्म 19 अगस्त 1918 को भोपाल में हुआ था. शंकरदयाल शर्मा मध्य प्रदेश के पहले ऐसे व्यक्ति रहे, जो अपनी विद्वता, सुदीर्घ राजनीतिक समझबूझ, समर्पण और देश-प्रेम के बल पर भारत के राष्ट्रपति बने. उन्होंने 'भारत के स्वतंत्रता संग्राम' में मुख्य रूप से भाग लिया था. साल 1992 में भारत के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति का कार्यभार ग्रहण किया था.
शिक्षा
डॉ शंकरदयाल शर्मा ने अपनी शुरुआती शिक्षा स्थानीय 'दिगंबर जैन स्कूल' में हासिल की थी. उन्होंने 'सेंट जोंस कॉलेज', आगरा और बाद में इलाहाबाद विश्वविद्यालय और लखनऊ विश्वविद्यालय से एल एल.बी. की डिग्री हासिल की. उसके बाद उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए. वहां कानून की शिक्षा ग्रहण की और पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की.
कैसा था राजनीतिक जीवन
अध्यापन के दौरान डॉ. शर्मा पर देश की तत्कालीन परिस्थियों का काफी प्रभाव पड़ा. जब संपूर्ण राष्ट्र स्वाधीनता प्राप्ति की दिशा में प्रयासरत था तो भला वह कैसे पीछे रह सकते थे. साल 1942 में महात्मा गांधी के आह्वान पर जब 'भारत छोड़ो' आंदोलन के तहत समस्त भारतवर्ष उठ खड़ा हुआ तो वह भी इसके सिपाही बने. तब इन्हें भोपाल की अदालत ने कैद की सजा सुनाई. इन्हें दूसरी बार कारावास तब हुआ, जब 1948 में 'भोपाल स्टेट' का भारतीय गणतंत्र में विलय हेतु आंदोलन किया गया.
बता दें, शंकरदयाल शर्मा ने कई ग्रंथों की रचना की, और कुछ पत्रिकाओं के संपादक भी रहे. अपने राजनीतिक जीवन में वे आंध्र प्रदेश, पंजाब तथा महाराष्ट्र के राज्यपाल के पद पर रहे थे.
निधन
अपने जीवन के अंतिम पांच सालों में शंकरदयाल शर्मा लगातार गिरते स्वास्थ्य से काफ़ी परेशान रहने लगे थे. 26 दिसंबर, 1999 को दिल का दौरा पड़ने के कारण उनका निधन हो गया था.
जब संसद में रो पड़े थे राष्ट्रपति
बता दें, शंकरदयाल शर्मा बहुत गंभीर व्यक्तित्व वाले इंसान थे. काम के प्रति वह बेहद संजीदा थे. इसके अलावा वह संसद के नियम-कानून का सख्ती से पालन करते और उनका सम्मान करते थे. उनके बारे में कहा जाता है कि एक बार राज्यसभा में एक मौके पर वे इसलिए रो पड़े थे, क्योंकि राज्यसभा के सदस्यों ने किसी राजनीतिक मुद्दे पर सदन को जाम कर दिया था.