किसी काम के लिए दूसरे का मुंह ताकने से बेहतर है कि खुद जिम्मा उठाओ और जुट जाओ. जानिए ऐसी ही शख्सियतों की दास्तां, जिन्होंने खुद करने की ठानी और अपने मुकाम को हासिल करके दिखाया. महात्मा गांधी ने भी कहा था कि दुनिया में बदलाव देखना चाहते हो, तो इसकी शुरुआत खुद से करो.
जादव पायेंग:
1979 में वन विभाग ने एक परियोजना की शुरुआत की, जिसका काम असम में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे 1360 एकड़ के इलाके में वन क्षेत्र की वृद्धि करना था. पांच साल की समय सीमा वाली ये परियोजना 2 साल पहले ही बंद हो गई. इससे जुड़े सभी मज़दूर वापस चले गए लेकिन जादव पायेंग ने अकेले कुछ ऐसा कर दिखाया कि सरकार और पूरे देश ने उनका लोहा माना. दशकों की मेहनत के बाद जादव ने पौधारोपण कर पूरे इलाके को वन आरक्षित क्षेत्र में तब्दील कर दिया. आज इस इलाके में टाइगर, गैंडे, हिरण, और पक्षियों की कई किस्में रहती हैं. उनकी इस मेहनत के लिए सरकार ने उन्हें पद्म श्री से पुरस्कृत किया.
चेवांग नॉरफेल:
लद्दाख के इस सिविल इंजीनियर ने वो कर दिखाया जिसे सोचना भी असंभव सा लगता है. प्रकृति प्रेमी चेवांग ने अपनी मेहनत के बूते 12 कृत्रिम ग्लेशियर तैयार किए. चेवांग ने निर्माण के जरिए नदी की धारा को धीमे किया और उसके रुख को घाटी की ओर से दूर कर दिया. चेवांग ने वैज्ञानिक सिद्धांत लागू कर पानी को बर्फ के रूप में तब्दील कर, उसे ग्लेशियर बना दिया. ग्लेशियर जमीं के अंदर के पानी के स्तर को बढ़ाता है और सिंचाई में मदद करता है. चेवांग का बनाया नया ग्लेशियर फुकत्से गांव के पास मौजूद है. इसकी लंबाई 1000 फीट और चौड़ाई 150 फीट है. इस ग्लेशियर की मदद से 700 लोगों के गांव को पानी मिलता है. 2015 में चेवांग को सरकार ने पद्म श्री से सम्मानित किया.
नारायणन कृष्णन:
2002 में यूरोप में शेफ की अच्छी नौकरी करने वाले नारायणन कृष्णन ने गरीब, बेघर और मानसिक परेशान लोगों की मदद करने की ठानी. उन्होंने नौकरी छोड़कर अपने गृहक्षेत्र मदुरै में काम करना शुरु किया. वो बीते 12 सालों से ऐसे असहाय और बेसहारा लोगों को नाश्ता, खाना और रात का खाना परोसते हैं. नारायणन ऐसे लोगों की साफ-सफाई का ध्यान रखते हैं और खुद उनके बाल, दाढ़ी काटते हैं. CNN ने 2010 में उन्हें दुनिया के टॉप 10 हीरो में से एक चुना.
गंगाधर तिलक कटनम:
सड़कों पर मौजूद गड्ढों के कारण हैदराबाद में रोज़ाना दुर्घटनाएं देखने वाले, 66 वर्षीय रेलवे से रिटायर इंजीनियर ने खुद ही इनको भरने की ठानी. बीते 15 सालों में अपनी जेब से हैदराबाद की सड़कों पर मौजूद 1125 गड्ढों को भरने वाले गंगाधर तिलक कटनम, पूरे देश के लिए एक नज़ीर हैं. उनकी इस लगन को देखते हुए GHMC (ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन) ने उन्हें गड्ढे भरने के लिए सामग्री देनी शुरू की, ताकि वो आसानी से हैदराबाद के लोगों की यात्रा को बेहतर बना सकें.
दशरथ मांझी :
साल 1960 से 1982 के बीच दिन-रात बिहार के गहलौर गांव के दशरथ मांझी के दिलो-दिमाग में एक ही चीज़ ने कब्ज़ा कर रखा था. पहाड़ से अपनी पत्नी की मौत का बदला लेना. और 22 साल जारी रहे जुनून ने अपना नतीजा दिखाया और पहाड़ भी मांझी से हार मान गया. दो दशक तक पहाड़ की छाती पर हथौड़े से वार कर उन्होंने 360 फुट लंबा, 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता निकाल दिया. उनकी मेहनत से अतरी और वज़ीरगंज ब्लॉक का फासला 80 किलोमीटर से घटकर 13 किलोमीटर रह गया.
डॉक्टर प्रकाश आम्टे:
मैगसेसे पुरस्कार विजेता बाबा आम्टे के बेटे डॉक्टर प्रकाश आम्टे ने अपनी पत्नी डॉक्टर मंदाकिनी आम्टे के साथ मिलकर लोगों की मदद करने की ठानी. महाराष्ट्र और उसके आसपास के राज्यों में उन्होंने लोक बिरादरी प्रकल्प संगठन की स्थापना की. इसके ज़रिए उन्होंने ग्रामीण भारत में इमरजेंसी डॉक्टरी, स्कूल और पशु आश्रय की सुविधा शुरू की. इस काम के लिए उन्हें भी साल 2008 में परोपकारी काम के लिए "कम्युनिटी लीडरशिप" मैगसेसे पुरस्कार मिला.
सौजन्य: NEWSFLICKS