कर्नाटक विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत ना मिलने से प्रदेश में सरकार बनने का मामला फंस गया है. अब सरकार को लेकर अहम फैसला राज्यपाल को करना है और राज्यपाल के पास कई विकल्प हैं, जिसके आधार पर प्रदेश में सरकार बनाई जाएगी. ऐसे में जानते हैं कि राज्यपाल के पास क्या- क्या अधिकार होते हैं...
- बता दें किसी भी प्रदेश का एक ही राज्यपाल होता है, लेकिन एक शख्स दो राज्यों का राज्यपाल नियुक्त हो सकता है. राज्यपाल संसद या विधानसभा का सदस्य नहीं हो सकता और उन्हें कई शक्तियां दी जाती है. जिसके अनुसार उसे गिरफ्तार करने के लिए भी अलग प्रावधान होता है.
- राज्यपाल की शक्तियां कार्यकारी, विधान, न्यायिक और आपातकाल के आधार पर विभाजित किया गया है. राज्यपाल मुख्यमंत्री समेत कई उच्च पद पर नियुक्ति करता है. राज्यपाल की स्थिति उसी तरह होती है, जिस तरह देश में राष्ट्रपति की होती है.
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- राज्यपाल सुनिश्चित करता है कि वार्षिक वित्तीय विवरण(राज्य वजट) को राज्य विधानमंडल के सामने रखा जाए. धन विधेयकों को राज्यपाल की पूर्व अनुमति के बाद ही विधानसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है. उसकी सहमति के बिना किसी अनुदान की मांग नहीं की जा सकती. पंचायतों एवं नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति की हर पांच साल में समीक्षा के लिए वह वित्त आयोग का गठन करता है.
- राज्यपाल किसी दोषी की सजा में बदलाव या फैसले पर रोक लगा सकता है. राज्यपाल अपने विवेक के आधार पर कुछ स्थितियों में बिना मंत्रियों की सलाह के काम करता है.
- साथ ही राज्यपाल को विधानसभा में संदेश भेजने, संबोधन देने संबंधित वो सभी अधिकार होते हैं, जो कि एक राष्ट्रपति को संसद के लिए होते हैं.
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- किसी भी विधानसभा में पास हुए बिल राज्यपाल की सहमति के बिना कानून नहीं बन सकते हैं. हालांकि मनी बिल के अलावा राज्यपाल सभी बिल को वापस भेज सकता है.
- जब कोई भी पार्टी को विधानसभा में बहुमत हासिल नहीं होता है तो राज्यपाल मुख्यमंत्री चुनने के लिए विशेषाधिकार का इस्तेमाल करता है. वहीं आपातकाल के वक्त वह राष्ट्रपति के बिहाफ पर राष्ट्रपति कानून लागू करता है.