मेंढक हमारी दुनिया में पाए जाने वाले ऐसे जीव हैं जो आगामी मौसम को सबसे पहले भांप जाते हैं. जल और थल में समान रूप से पाए जाने वाला यह जीव दिखने में जितना अजीब लगता है, वास्तविकता में भी वह उससे कहीं अधिक अचंभित करता है.
हमने अपने बचपन के दिनों में फाइटर टोड्स की कॉमिक्स भी पढ़ी हैं और पहली बारिश के बाद ताल-तलैयों की गहरी दरारों से बाहर निकल कर टर्र-टर्र करने वाले पीले मेंढकों को भी देखा है. यह चौपाया जीव मनुष्य की शारीरिक संरचना के इतने करीब है कि मेडिकल के तमाम स्टूडेंट्स को चीर-फाड़ मेंढकों पर ही सिखाई जाती है.
मुंह के बजाय चमड़े से पानी पीने वाले इस जीव के बारे में जानें कुछ बेहद दिलचस्प और रोचक तथ्य...
1. दुनिया में मेंढक की कुल 4,700 प्रजातियां हैं.
यह जीव अंटार्कटिका द्वीप के सिवाय दुनिया के सारे द्वीपों पर पाया जाता है.
2. हर साल जब मेंढक हाइबरनेशन (सीतनिद्रा) में जाता हैं तो उनके शरीर पर हड्डियों की नई लेयर बनती है.
इन्हें गिन कर इनकी उम्र का पता लगाया जा सकता है.
3. मेंढक अपनी लंबाई से 20 गुना अधिक लंबी छलांग मार सकते हैं, और तो और कुछ मेंढक उससे भी ऊंची छलांग मार सकते हैं.
4. मेंढक लगभग सारे रंगों में पाए जाते हैं.
जी हां, मेंढक काले-पीले, हरे-नीले से लेकर लाल रंग के भी होते हैं.
5. इन उभयचर प्रजातियों और सरिसृप प्रजाति के जीवों का अध्ययन करने वालों को Herpetologist कहते हैं और इस अध्ययन को Herpetology कहा जाता है.
यह नाम ग्रीक शब्द Herpeton से आता है जिसका अर्थ रेंगना होता है.
6. मेंढक के कानों को देख कर आप उनके लिंग का पता लगा सकते हैं.
मेंढक के कान को टिंपेनम (tympanum) कहते हैं जो उनकी आंखों के ठीक पीछे होता है. यदि tympanum आंख से बड़ा है तो मेंढक और यदि tympanum आंख से छोटा है तो मेंढकिया.
7. मेंढक भी अपनी केंचुली छोड़ते हैं, जिसे पर्णपतन भी कहा जाता है.
दुनिया के अधिकांश मेंढक सप्ताह में एक बार केंचुली छोड़ते हैं और कई मेंढक की प्रजातियां तो हर दिन ऐसा करती हैं. वे अपनी उतरी हुई केंचुली खा जाते हैं.
8. मेंढकों की टर्राहट का मकसद मेंढकियों को खुद की ओर ध्यान खींचना है.
हर मेंढक की प्रजातियों की टर्राहट अलग-अलग होती है. वे अपने गर्दन के पास गुब्बारे की तरह हवा भर लेते हैं और टर्राते हैं. उनकी आवाज मीलों दूर तक सुनी जा सकती हैं.
9. मेंढक के ऊपरी जबड़े में दांत होते हैं. वे इनकी मदद से अपने शिकार को धीरे-धीरे निगल जाते हैं.
10. मेंढक अपने मुंह से पानी नहीं पीते बल्कि अपने चमड़े के माध्यम से सोखते हैं.
मेंढक के चमड़े भेद्य होते हैं. इसका मतलब होता है कि द्रव्य और वाष्प उनके शरीर में आसानी से जा सकते हैं. इसका सबसे बड़ा नुकसान उन्हें जल या हवा में व्याप्त प्रदूषण की वजह से होता है.