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जानें मिसाल कायम करने वाले ब्लाइंड एथलीट अंकुर की कहानी

22 साल के अंकुर धामा रियो में होने वाले पैरा-ओलंपिक में भाग लेने वाले पहले ब्लाइंड एथलीट हैं. छह साल की उम्र में ही आंखों की रोशनी खो देने वाले अंकुर ने अपनी मेहनत से इस मुकाम को पाया है.

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अंकुर धामा
अंकुर धामा

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छह साल की उम्र में अपनी आंखों की रोशनी खो देने वाले अंकुर धामा के जज्बे को सभी सलाम करते हैं. आंखों की रोशनी खो जाने या शरीर के किसी भी अंग में अपंगता आ जाने से किसी का भी हौसला पस्त हो जाता है लेकिन अंकुर के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ. 30 साल के इतिहास में पहली बार अंकुर ब्राजील के रियो में होने वाले पैरा ओलंपिक में भाग लेने वाले पहले ब्लाइंड एथलीट हैं.

रियो में मेडल जीतने की है आशा:
अंकुर रियो पहुंच चुके हैं. अगर वो हीट्स में क्वालीफाई कर जाते हैं, तो 13 सितम्बर को वो हमें 1,500 मीटर फाइनल रेस में दिखाई देंगे. अंकुर ने सेंट स्टीफन्स कॉलेज से ग्रेजुएशन किया है. उनका पर्सनल बेस्ट 4:17 मिनट है, जो उन्होंने पिछले साल सोनीपत में बनाया था. अंकुर कहते हैं, 'यदि यह बहुत स्लो रेस होगी तो मैं शुरू से लीड करना चाहूंगा लेकिन अगर यह ज्यादा स्लो रेस नहीं होगी तो मैं अंतिम के 200 मीटर में अपनी रफ्तार तेज करूंगा.' हालांकि अंकुर और उनके कोच अंतिम रणनीति रियो में ही बनाएंगे.

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अंकुर के गाइड हैं विपिन:
रेस में अंकुर का साथ देने के लिए 20 साल के नागपुर यूनिवर्सिटी के छात्र विपिन कुमार रहेंगे. दोनों के हाथ को रस्सी से बांध दिया जाएगा. लेकिन विपिन को खुद से आगे बढ़ने या खींचने की अनुमति नहीं होगी. इसमें हाई लेवल के को-आर्डिनेशन की आवश्यकता होती है.

कोच को है अंकुर पर भरोसा:
अंकुर के कोच और द्रोणाचार्य अवार्ड विनर सत्यपाल सिंह कहते हैं, 'इसमें चार पैरों को दो पैरों की तरह और चार हाथों को दो की तरह काम करना होता है. थोड़ी सी भी गलती से चोट लगने का खतरा हो सकता है.' अंकुर कहते हैं, 'आप गाइड के बिना कुछ नहीं कर सकते.'

विपिन और अंकुर का साथ है पुराना:
विपिन और अंकुर की मुलाकात 2011 में हुई थी. विपिन मोदीनगर के पास के एक गांव के किसान परिवार से हैं. दोनों ने आज तक कितने रेस साथ किए हैं, यह तो दोनों में से किसी को नहीं पता. विपिन कहते हैं, 'गाइड होने के नाते मुझे रनर से 10 सेकंड फास्ट होना पड़ता है.'

छह साल की उम्र में आंखों की रोशनी खो दी अंकुर ने:
अंकुर छह साल की उम्र में यूपी के बागपत में थे. उसी समय उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी. उनके परिवार को पता चल गया कि कोई भी सर्जरी उनकी आंखों को ठीक नहीं कर सकती. उसके बाद अंकुर को दिल्ली के लोदी रोड के जेपीएम सीनियर सेकेंड्री स्कूल फॉर ब्लाइंड में भेजा गया. स्कूल में ही अंकुर को स्पोर्ट्स से लगाव हो गया और वहां से वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी खेलने जाने लगे.

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2014 में उन्होंने एशियन पैरा गेम्स में एक सिल्वर और दो बॉन्ज मेडल जीते हैं. मार्च में उन्होंने दुबई के एशिया-ओसेनिया चैंपियनशिप के पैरा- ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया. 22 साल के अंकुर आज दिल्ली यूनिवर्सिटी में एमए की पढ़ाई कर रहे हैं.

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