' जिंदगी में सफलता-विफलता स्वाभाविक है, जो विफलता को एक अवसर मानता है, वो सफलता का शिलान्यास भी करता है.' यह बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात में स्टूडेंट्स से कही थी. आज इस बात को साबित कर दिखाया है महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के ऑफिस में काम करने वाले एक चपरासी ने.
50 साल के अविनाश चोगले सुर्खियों में हैं. 28 साल से दसवीं की परीक्षा देते आ रहे अविनाश इस बार पास हो गए हैं और उनकी इस हिम्मत और लगन के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने उन्हें बधाई दी है.
अविनाश के लिए यह काफी खुशी का पल था, लेकिन इसके पीछे 28 साल का संघर्ष भी जुड़ा है. अविनाश ने बताया कि जब वो क्लास में जाते तो बहुत से स्टूडेंट्स उन्हें किसी बच्चे का पैरेंट्स समझ लेते. एक बार हद तो तब हो गई जब 1994 में एक टीचर ने कॉलर पकड़ उन्हें एग्जाम रूम से बाहर निकाल दिया, लेकिन हकीकत का पता चलने के बाद उन्हें एग्जाम देने दिया गया.
चौगले पिछले तीन दशकों से फीस के तौर पर 12,000 रुपये खर्च कर चुके हैं. अविनाश ने सबसे पहले एग्जाम फीस 150 रुपये भरी इसके बाद यह बढ़कर 550 रुपये हो गई. अब उन्हें आशा है कि उनका प्रमोशन होगा और वह क्लर्क बनकर अपने मां-बाप का सपना पूरा करेंगे.
अविनाश ज्यादातर मैथ्स में फेल होते थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. इस बार अविनाश ने मैथ्स में 38 मार्क्स हासिल किए हैं. उन्होंने मंत्रालय में चतुर्थ श्रेणी के तौर पर 1990 में काम करना शुरू किया. अविनाश चोगले ने पहली बार 10वीं की परीक्षा साल 1987 में दी थी, तब चोगले 4 विषयों में फेल हो गए थे.