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स्कूल ड्रॉप आउट स्टू़डेंट्स को लेकर MHRD ने की समीक्षा बैठक

एक तरफ जहां देश भर में बच्चों को शिक्षित करने के लिए राइट टू एजुकेशन जैसे स्कीम लाए जा रहे हैं तो वहीं भारी संख्या में बच्चे स्कूल भी छोड़ रहे हैं. इसी के मद्देनजर MHRD मिनिस्ट्री ने एक बैठक की है. इसमें वे वंचित तबके के पढ़ाई के लिए विशेष कदम उठाने की बात कह रहे हैं.

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देश में स्कूल ना जाने वाले बच्चो की सही संख्या का पता लगाने और उन्हें स्कूल तक पहुंचाने के लिए मानव संसाधन मंत्रालय ने बैठक की है.

नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन आफ चाइल्ड राइट्स और मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से इस मुद्दे पर बैठक की गई. इसमें देशभर से 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के एजुकेशन सचिव, शिक्षा अधिकारियों के अलावा नेशनल एडवाइजरी बोर्ड आफ एजुकेशन के सदस्य, मानव संसाधन मंत्रालय, लेबर मंत्रालय के अधिकारियों ने भी भाग लिया.

समीक्षा के बाद सर्वसम्मति से राइट टू एजुकेशन एक्ट की दोबारा समीक्षा करने के लिए प्रस्ताव पारित किया गया. आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो ने कहा कि उनके सामने सबसे बडी चुनौती सही आंकड़ो का पता लगाना है कि वास्तव मे कितने बच्चे स्कूलों से बाहर है और कितने ड्रॉप आउट हैं क्योंकि इससे संबंधित जितने भी आंकड़े हैं वो अलग-अलग संख्या बता रहे हैं.

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आंकड़ो की मानें तो इस समय देश में 6-13 साल के बच्चों की संख्या 20.41 करोड़ है और इनमें से लगभग 60.41 लाख यानी 2.97 फीसदी बच्चे स्कूलों से बाहर बताए जा रहे है, हालांकि पिछले सालों के मुकाबले ये आंकड़े कुछ कम हुए हैं.

ईस्ट जोन मे सबसे अधिक 4.02 फीसदी और साउथ जोन मे सबसे कम 0.97 फीसदी बच्चे स्कूलों के बाहर हैं. उड़ीसा मे सबसे अधिक 6.10 फीसदी बच्चे स्कूलों के बाहर हैं. लड़कों के मुकाबले लडकियां स्कूलों मे कम भेजी जा रही हैं. कुल स्कूल ना जाने वाले बच्चों मे लड़कों की संख्या 2.77 फीसदी है जबकि लडकियों का प्रतिशत    3.23 है. यही नहीं स्कूल ना जाने वाले आंकड़ो मे किसी ना किसी तरह की विकलांगता का शिकार बच्चो की संख्या बहुत अधिक है.

इन समीक्षा बैठकों में स्कूल ना जाने वाले बच्चों का पता लगाने के कुछ पैरामीटर्स भी तय किए गए. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मध्यप्रदेश मे मदरसों मे पढ़ने वालों को स्कूल मे शामिल किया जाता है जबकि यूपी में ऐसा नहीं है. इसलिए जरूरी है कि देशभर में स्कूल ना जाने वाले बच्चों का पता लगाया जाए.

इस बैठक मे बुद्धिजीवियों ने समान तरीके अपनाने के साथ कुछ और सिफारिशों को राइट टू एजुकेशन मे शामिल करने पर जोर दिया. स्कूलों के भीतर छोटी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चो की संख्या का पता लगाया जाए, और 3-4 साल के बाद फिर से जायजा लिया जाए. इससे पता चलेगा कि कितने बच्चे स्कूल छोड़ चुके हैं. 'स्कूल चलें अभियान' का प्रचार करते समय या कोई सर्वे कराते समय बाल गृहों मे रहने वाले वाले बच्चों के अलावा रेलवे स्टेशन्स, ट्रैफिक सिग्नल पर घूम रहे बच्चों को भी शामिल किया जाए. स्कूलों मे जो मैनेजमेंट कमेटी है उनमें सीनियर लोगो को शामिल किया जाए और उनकी सेवाएं भी ली जाएं.

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समीक्षा मे उपस्थित सभी बुद्धिजीवियों की इन सिफारिशों पर एक राय बनी और इन्हें जल्द से जल्द एक्ट मे शामिल करने की मांग की गई. आयोग ने इन तमाम सिफारिशों को एक्ट मे शामिल करने के लिए केब को लिखित रूप मे प्रस्ताव भेजा है.

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