भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के तौर पर देश भर में मनाया जाता है. इस मौके पर स्कूलों में शिक्षकों के सम्मान के साथ तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. शिक्षक दिवस की औपचारिकताओं से अलग आपको ऐसे युवक की कहानी बताते हैं जो खुद अभावों का सामना करते हुए भी शिक्षा को सही मायने दे रहा है.
मिथुन ने दिखाया है कि अगर आप में कुछ सार्थक करने का जज़्बा हो तो रास्ता खुद-ब-खुद बन जाता है. गरीबी, संसाधनों की कमी फिर कुछ भी आपके लिए बाधा नहीं बनती. मिथुन अमृतसर के देहाती क्षेत्र नंगली में करीब डेढ़ सौ बच्चों को पढ़ाता है. ये बच्चे गरीब परिवारों से हैं और उनके माता-पिता बच्चों की ट्यूशन का खर्चा उठाने में असमर्थ है. मिथुन खुद ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के साथ दिन-रात मेहनत करता है. खुद जो कमाता है, उसी से बच्चों को पेन, पेंसिल, किताब, कॉपी, ड्राइंगशीट लाकर देता है.
मिथुन के पिता रिक्शा चलाते हैं और मां घरों में काम करती है. मिथुन का परिवार मूल रूप से बिहार का रहने वाला है. मिथुन जब चार साल का था तो उसके माता-पिता नंगली आ गए थे. 8 साल की उम्र से मिथुन ने एक ढाबे पर काम करना शुरू कर दिया. मिथुन जब अपनी उम्र के बच्चों को स्कूल जाते देखता तो उसकी भी पढ़ने की बहुत इच्छा होती. लेकिन पैसे की किल्लत की वजह से उसके माता-पिता के लिए ऐसा करना संभव नहीं था. फिर एक दिन मिथुन ने कांच के टूटे गिलास से अपना हाथ काट लिया. मजबूरन मिथुन के माता-पिता को उसे स्कूल भेजना पड़ा. मिथुन ने काम करने के साथ साथ ही बारहवीं की परीक्षा पास की.
मिथुन का कहना है कि वो नहीं चाहता कि जिस तरह उसे पढ़ने के लिए दिक्कतों का सामना करना पड़ा, वैसे दूसरे किसी बच्चे को करना पड़े. मिथुन ने पहले आस-पास की झुग्गियों के आठ बच्चो को पढाने के साथ शुरुआत की. खर्च बचाने के लिए मिथुन रेत बिछा कर उसी पर इबारतें लिख कर बच्चों को पढ़ाता था. बच्चों की पढ़ाई पर मिथुन को इतनी मेहनत करते देख आस-पास के लोगों ने भी उसका हौसला बढ़ाया. बच्चों की संख्या बढ़ने लगी तो कुछ समाज सेवक भी मिथुन के लिए आगे आए. बच्चों को पढ़ाने के लिए चार कमरों की भी व्यवस्था हो गई. मिथुन इस स्कूल में रोज शाम को 4 से 6 बजे तक बच्चों को पढ़ाता है. इसके अलावा दो-तीन और टीचर्स को भी बच्चों को पढ़ाने के लिए रखा गया है. जो भी मदद मिलती है उसी से बच्चों की पढ़ाई के सामान और अन्य टीचर्स के मेहनताने की व्यवस्था की जाती है. पढ़ाई के लिए किसी भी बच्चे से कोई पैसा नहीं लिया जाता.
एम-रीयल नाम से चलाए जा रहे इस स्कूल को पूरे क्षेत्र में मिसाल माना जा रहा है. मिथुन का कहना है कि वो ऐसा कोई सपना ना देखता है और ना ही बच्चों को दिखाता है कि वो पढ़ लिख कर डॉक्टर-इंजीनियर बन जाएंगे. उसका बच्चों को पढ़ाने का सिर्फ एक ही मकसद है कि वो अच्छे इनसान बने और गरीबी की वजह से इधर-उधर ना भटकें. साथ ही वो जो भी पढ़ें उस पढ़ाई का स्तर ऊंचा हो. सरकारी प्राइमरी स्कूलों की तरह नहीं कि पढ़ाई के नाम पर बस खाना-पूर्ति कर दी जाए.
मिथुन को उसकी निस्वार्थ सेवा के लिए प्रशासन के स्तर पर कई पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं. हालांकि मिथुन का कहना है कि वो बच्चों की पढ़ाई के लिए प्रशासन से इतनी ही अपील करना चाहता है कि सरकारी प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाई का माध्यम अंग्रेज़ी किया जाए. मिथुन के मुताबिक बच्चों को पंजाबी भाषा भी पढ़ाई जाए लेकिन माध्यम अंग्रेज़ी करना बहुत ज़रूरी है.
मिथुन जिन बच्चों को पढ़ाता है वो बच्चे अपने टीचर जी की तारीफ करते नहीं थकते. मिथुन के पिता दीनदयाल घर का खर्च चलाने के लिए अब भी रिक्शा चलाते हैं. लेकिन साथ ही कहते हैं कि मिथुन गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए जो कुछ कर रहा है, उससे उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है.
शिक्षक दिवस पर मिथुन के जज़्बे को सलाम...