क्या आपको लगता है कि एजुकेशन सिस्टम में मोबाइल का इस्तेमाल होना चाहिए?
बिल्कुल एजुकेशन सिस्टम में मोबाइल का इस्तेमाल बेहद जरूरी है. आज स्टूडेंट्स अपने करीब 10-12 घंटे मोबाइल पर बिताते हैं तो उन्हें समझाने के लिए इससे अच्छा प्लेटफॉर्म और क्या हो सकता है. जब हम सोशल लाइफ में इसका इस्तेमाल कर रहे हैं तो पढ़ाई लिखाई में इसका इस्तेमाल करने से क्या परेशानी है.
क्या आपको नहीं लगता कि क्लास में मोबाइल के इस्तेमाल के नेगेटिव प्रभाव ज्यादा होंगे?
कोई भी टेक्नोलॉजी जब पहली बार आती है तो उसके कुछ नुकसान तो होते ही हैं. शायद शुरुआत में सरकार अगर ऐसा फैसला लेती है तो कुछ नकारात्मक असर तो झेलना पड़ सकता है. लेकिन धीरे-धीरे बदलाव जरूर आएगा और स्टूडेंट्स को इससे काफी फायदा होगा.
एजुकेशन सिस्टम में शिक्षक का रोल कैसा होना चाहिए?
आज के समय में टीचर का रोल सिर्फ मार्गदर्शक का रह गया है. सूचना इतनी तेजी से प्रसारित होती है कि स्टूडेंट्स की-वर्ड के जरिए सभी जानकारी हासिल कर लेते हैं. अब टीचर का काम सिर्फ सूचना देना ही नहीं बल्कि उन्हें उस सूचना से कनेक्ट करना रह गया है.
दूसरे देश एजुकेशन सिस्टम में कितनी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हैं उन्होंने इस एजुकेशन फोरम में इस विषय को लेकर और क्या सुझाव दिए ?
विदेशों के एजुकेशन सिस्टम में तो काफी हद तक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होता है. वहां पूरा कैंपस वाई-फाई होता है. स्टूडेंट्स कई नई टेक्नोलॉजी के जरिए पढ़ाई करते हैं. लेकिन इस मामले में भारत अभी भी काफी पीछे है. यहां भी कई जगह टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन वो बहुत कम लेवल पर है. भारत में इस तरह के बदलाव जल्दी देखने को मिल सकते हैं.
कुल मिलाकर फोरम में आपका अनुभव कैसा रहा?
फोरम में एशिया पैसेफिक के दर्जन भर देशों के 100 से ज्यादा ऐसे लोगों ने हिस्सा लिया जो अपनी सीमाओं में बड़े बदलाव को अंजाम दे रहे हैं, उसके अगुवा हैं. जिसमें ट्रांसफोर्मिंग एजुकेशन फोर द फ्यूचर, कनेक्टिंग लर्निंग समेत कई विषयों पर चर्चा की गई. फोरम में 78 फीसदी भारतीय टीचर्स ने एजुकेशन सिस्टम
में मोबाइल के इस्तेमाल के आइडिया का सपोर्ट किया. 83 फीसदी टीचर्स का तो
यह भी मानना है कि डिजिटल सुविधा से स्टूडेंट्स का कॉन्सेपट और भी अच्छे
तरह से क्लियर होगा. वहीं 27 पर्सेंट टीचर्स का मानना है कि सरकार की
नीतियां मोबाइल टेक्नोलॉजी देने के लिए अनुकूल नहीं हैं.