उनके संगीत में एक अजीब सी कशिश है, जो श्रोताओं के दिलो-दिमाग को सुकून देती है. ए.आर. रहमान यानी अल्लाह रक्खा रहमान का जन्म छह जनवरी 1966 को तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में हुआ था. रहमान को संगीत अपने पिता से विरासत में मिला है. उनके पिता आर.के.शेखर मलयाली फिल्मों में शिक्षा देते थे.
छोटी उम्र में पिता का देेहांत
संगीतकार ने संगीत की शिक्षा मास्टर धनराज से प्राप्त की. रहमान जब नौ साल के थे, तभी उनके पिता का देहांत हो गया और पैसों की खातिर परिवार वालों को वाद्ययंत्र तक बेचने पड़े.
महज 11 साल की उम्र में रहमान अपने बचपन के दोस्त शिवमणि के साथ 'रहमान बैंड रुट्स' के लिए सिंथेसाइजर बजाने का काम करते थे. चेन्नई के बैंड 'नेमेसिस एवेन्यू' की स्थापना में भी रहमान का अहम योगदान रहा. रहमान पियानो, हारमोनयिम, गिटार भी बजा लेते थे.
पश्चिमी संगीत में भी ली तालीम
रहमान सिंथेसाइजर को कला और तकनीक का अद्भुत संगम मानते हैं. बैंड ग्रुप में ही काम करने के दौरान रहमान को लंदन के ट्रिनिटी कॉलेज से स्कॉलरशिप मिला और इस कॉलेज से उन्होंने पश्चिमी शास्त्रीय संगीत में तालीम हासिल की. सन् 1991 में रहमान ने अपना खुद का म्यूजिक रिकॉर्ड करना शुरू किया. सन् 1992 में उन्हें फिल्म निर्देशक मणि रत्नम ने 'रोजा' में संगीत देने का मौका दिया फिल्म का संगीत जबरदस्त हिट साबित हुआ और रातोंरात रहमान मशहूर हो गए. पहली ही फिल्म के लिए रहमान को फिल्मफेयर पुरस्कार मिला.
200 करोड़ से ज्यादा रिकॉर्डिंग्स बिकीं
रहमान के गानों की 200 करोड़ से भी अधिक रिकॉर्डिग बिक चुकी है. वह विश्व के 10 सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों में शुमार किए जाते हैं. वह उम्दा गायक भी हैं. देश की अजादी के 50वें सालगिरह पर 1997 में बनाया गया उनका अल्बम 'वंदे मातरम' बेहद कामयाब रहा. इस जोशीले गीत को सुनकर देशभक्ति मन में हिलोरें मारने लगती है. साल 2002 में जब बीबीसी वर्ल्ड सर्विस ने 7000 गानों में से अब तक के 10 सबसे मशहूर गानों को चुनने का सर्वेक्षण कराया तो 'वंदे मातरम' को दूसरा स्थान मिला. सबसे ज्यादा भाषाओं में इस गाने पर प्रस्तुति दिए जाने के कारण इसके नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड भी दर्ज है.
कुछ गानें जो छू गए दिल को
रहमान के गाए गीत 'दिल से', 'ख्वाजा मेरे ख्वाजा', 'जय हो' आदि भी खूब मशहूर हुए हैं. वर्ष 2010 में रहमान नोबेल पीस प्राइज कंसर्ट में भी प्रस्तुति दे चुके हैं. 'बॉम्बे', 'रंगीला', 'दिल से', 'ताल', 'जींस', 'पुकार', 'फिजा', 'लगान', 'स्वदेस', 'जोधा-अकबर', 'युवराज', 'स्लमडॉग मिलेनियर' और 'मोहेंजो दारो' जैसी कई फिल्मों में संगीत दिया है.
WHO से भी जुड़े
वर्ष 2004 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रहमान को टीबी की रोकथाम के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए सद्भावना दूत बनाया.
पारिवारिक हैं रहमान
रहमान एक अच्छे पति और पिता भी हैं. संगीतकार की शादी सायरा बानू से हुई है और उनके तीन बच्चे खतीजा, रहीमा और अमीन हैं.
मिले कई सम्मान
वर्ष 2000 में रहमान पद्मश्री से सम्मानित किए गए. फिल्म 'स्लम डॉग मिलेनियर' के लिए वह गोल्डन ग्लोब, ऑस्कर और ग्रैमी जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं. इस फिल्म का गीत 'जय हो' देश-विदेश में खूब मशहूर हुआ. रहमान ने कई संगीत कार्यक्रमों में इस गीत को गाया.
रहमान चार राष्ट्रीय पुरस्कार, 15 फिल्मफेयर पुरस्कार, दक्षिण बारतीय फिल्मों में बेहतरीन संगीत देने के लिए 13 साउथ फिल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं. फिल्म '127 आवर्स' के लिए रहमान बाफ्टा पुरस्कार से सम्मानित किए गए. नवंबर 2013 में कनाडाई प्रांत ओंटारियो के मार्खम में एक सड़क का नामकरण संगीतकार के सम्मान में 'अल्लाह रक्खा रहमान' कर दिया गया.
रहमान नित नई बुलंदियों को छू रहे हैं. उनके जन्मदिन पर हमारी यही कामना है कि वह सफलता का परचम ऐसे ही लहराते रहें. रहमान को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं.