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नोटबंदी का सीधा असर शिक्षण संस्थानों पर, नहीं ले सकेंगे अतिरिक्त शुल्क...

केन्द्र सरकार के कालेधन पर रोक लगाने का असर बड़े शिक्षण संस्थानों पर. मैनेजमेंट कोटे के तहत अतिरिक्त शुल्क लेने में हो सकती हैं भारी दिक्कतें...

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केन्द्र सरकार द्वारा कालेधन पर रोक लगाने के क्रम में की गई नोटबंदी का असर शिक्षण संस्थानों पर भी पड़ा है. उन्हें अब उम्मीदवारों से अतिरिक्त शुल्क लेने में दिक्कतें आएगी.

हमारे एजुकेशन सिस्टम में कैपिटेशन फीस (अतिरिक्त शुल्क) नर्सरी दाखिले और प्रोफेशनल उच्च शिक्षा में अधिक प्रचलित है. वेलिंगकर इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट की डीन माधवी लोखंडे कहती हैं कि ऐसा पहली बार होने जा रहा है कि इस तौर-तरीके पर ऐसा भारी असर पड़ेगा.

उनका मानना है कि सरकार के इस कदम की वजह से मेधावी छात्रों को सहूलियत हो सकेगी. इस कदम का असर रियल इस्टेट बिजनेस पर सीधा-सीधा पड़ेगा. संस्थानों को अब मैनेजमेंट कोटे के तहत सीटें बेचने में दिक्कत आएगी.

वह आगे कहती हैं कि इस नोटबंदी का सबसे बड़ा असर देश में व्याप्त एक विचार पर पड़ा है कि 'आप पैसे से कुछ भी खरीद सकते हैं'. नोटबंदी ने इस पर सीधा हमला किया है.

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क्या कहते हैं शिक्षण संस्थानों के लोग?
केरल में प्रोफेशनल कॉलेज की श्रृंखला चलाने वाले राजु डेविस पेरेपादन कहते हैं कि नोटबंदी का सीधा असर इस सेक्टर पर पड़ेगा. वे कहते हैं कि अलग-अलग कोर्स और स्पेशलाइजेशन के हिसाब से सीटें 2 लाख से 2 करोड़ तक बेची जाती रही हैं.

वे आगे कहते हैं कि MBBS की एक सीट 40 लाख से 60 लाख तक बिकती है और MD (मास्टर्स ऑफ मेडिसिन) की एक सीट 2 करोड़ तक बिकती रही है. ठीक उसी तरह इंजीनियरिंग की सीटों का रेट 2 लाख से 10 लाख तक के बीच रहा है.
हालांकि, उनके अनुसार एजुकेशन सेक्टर में कार्यरत ऐसे कई लोग हैं जो इसे कुछ समय का असर मानते हैं. और इन तौर-तरीकों में विश्वास रखने वाले लोग कोई और रास्ता तलाश लेंगे. हो सकता है कि अतिरिक्त शुल्क अब सोने में अदा की जाए.

इसके अलावा देश से बाहर जाने वाले छात्रों की संख्या में भी कमी आएगी. नाम न छापने की शर्त पर दिल्ली में सलाहकार का काम करने वाले एक शख्स ने कहा कि सरकार के इस कदम से सामान्य आय वर्ग के परिवार के बजाय मोटी कमाई वाले लोग परेशान हैं.

फॉरेन एजुकेशन कंसल्टिंग फर्म फतेह एजुकेशन के चीफ एग्जीक्यूटिव सुनीत सिंह कोचर कहते हैं कि सरकार के इस कदम का सबसे बड़ा असर ब्रिटेन और अमरीका के शिक्षण बाजारों पर पड़ेगा. यह दोनों देश भारत की पसंदीदा जगहें हैं और वहां की फीस भी अपेक्षाकृत अधिक है. यदि ऐसा माहौल आगे के 6 माहों तक बना रहा तो दिक्कतें बढ़ सकती हैं.

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रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़े को मानें तो साल 2015-16 में शिक्षा से जुड़ा खर्च 1.98 बिलियन डॉलर था. देश से लगभग 2,50,000 स्टूडेंट्स एक समय में बाहर पढ़ने गए हैं. नई दिल्ली में स्थित कई दूतावास भी सरकार के इस कदम पर बराबर नजरें टिकाए हुए हैं. साल 2015-16 में भारत से अमेरिका जाने वाले स्टूडेंट्स की संख्या सबसे अधिक रही है. आयरलैंड जैसे देश भी सरकार पर इस वजह से नजरें टिकाए हैं.


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