ओडिशा के सरकारी स्कूलों में साइंस, मैथ और इंग्लिश की एक्स्ट्रा क्लास लगेगी. ये कवायद सरकारी स्कूलों में रिजल्ट सुधारने के लिए की जा रही है.
ओडिशा सरकार ने मंगलवार को इसकी घोषणा करते हुए कहा कि बच्चों में इन विषयों पर मजबूत पकड़ बनाने के लिए ये प्रयास किए जा रहे हैं. सरकार की तरफ से कहा गया कि वर्तमान में 45 मिनट की क्लास होती है. अब इन तीन विषयों की क्लास 90 मिनट की होगी. ये शिक्षण समय ओडिशा के सभी राजकीय स्कूलों में लागू होगा.
राज्य के शिक्षा मंत्री समीर रंजन दास ने प्रेसवार्ता में बताया कि इन विषयों में छात्रों के प्रदर्शन की समीक्षा के बाद ये निर्णय लिया गया है. उन्होंने कहा कि अंग्रेजी, विज्ञान और गणित जैसे विषयों में बच्चों का प्रदर्शन थोड़ा कमजोर है. इसीलिए इन विषयों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए हमने इन विषयों के शिक्षण समय को दोगुना करने का निर्णय लिया है.
इसका मतलब है कि अब इस तरह से स्कूलों में पढ़ाने की समय सारिणी तैयार होगी कि अन्य विषयों को 45 मिनट का शिक्षण समय (दैनिक) मिलेगा, वहीं इन तीन विषयों को डेढ़ घंटे का समय मिलेगा.
समीर दास ने कहा कि अब छात्र इन विषयों पर अधिक समय बिताएंगे. इन शिक्षकों के साथ अधिक बातचीत करेंगे और अपने बेसिक को क्लीयर कर लेंगे.
वहीं शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम से बहुत वांछित परिणाम नहीं हो सकते हैं. समय को दोगुना करने से कोई ऐसा असर नहीं पड़ने वाला, जब तक कि बच्चों का उसमें इंटरेस्ट न हो.
यूनिसेफ के एक पूर्व शिक्षा विशेषज्ञ विनय पट्टनायक ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि स्टूडेंट के दृष्टिकोण से इन विषयों के पाठ को रोचक और एक्टिविटी बेस्ड होना चाहिए. शिक्षक की तैयारी बच्चों के सीखाने की दिशा में सक्षम होने की जरूरत है.
अन्य विशेषज्ञों ने ग्रामीण ओडिशा में बच्चों के सीखने के परिणामों पर एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) 2018 की ओर इशारा किया. जिसमें पढ़ने और गणित कौशल में कई असमानताएं दिखाई गईं. उदाहरण के लिए, रायगढ़ में, कक्षा VI-VIII में केवल 5.4 फीसदी बच्चे डिविजन के सवाल कर सकते थे, जबकि सिर्फ 40 फीसदी से अधिक कक्षा II-लेवल का पाठ पढ़ सकते थे. पुरी में 48.8% डिविजन यानी विभाजन के सवाल कर सकते थे, जबकि 80% से अधिक स्टूडेंट्स एक ही पाठ पढ़ सकते थे.
एजुकेशन रिपोर्ट 2018 के आंकड़ों के अनुसार राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में मैथ्स या साइंस पढ़ाने के लिए अच्छे टीचर्स की कमी है. RTE फोरम के कन्वीनर अनिल प्रधान ने कहा कि राज्य के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की अनुपस्थिति और अच्छे क्लासरूम की कमी को दूर करने पर फोकस करें तो रिजल्ट में खुद सुधार दिखाई देगा.
उन्होंने कहा कि पहले कमजोर स्टूडेंट ट्यूशन अथवा कोचिंग लेते थे लेकिन आजकल कई मेधावी स्टूडेंट स्कूलों में डमी एडमिशन लेकर महंगी कोचिंग ले रहे हैं. इससे शिक्षा का व्यवसायीकरण बढ़ रहा है. केंद्र सरकार इसे नियंत्रित करने के लिए नेशनल एजुकेशन रेगुलेटरी अथॉरिटी गठित करे. जिससे स्कूलों में ही प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करवाने जैसे सुझाव माने जाएं. सरकार की अनदेखी से सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर गिर रहा है.