रिसोर्सेस की कमी का हवाला देते हुए देश के 7 पुराने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बॉम्बे, दिल्ली, गुवाहाटी, खड़गपुर, कानपुर, मद्रास और रुड़की ने फैसला किया है कि वे चार वर्षीय बैचलर प्रोग्राम (बी.टेक) में सीटें नहीं बढ़ाएंगे. उन्हें सरकार की ओर से बीते 23 अगस्त को संपन्न हुए आईआईटी काउंसिल में ऐसे पेशकश हुई थी.
इस समय देश में 23 आईआईटी मौजूद हैं. यूपीए सरकार के कार्यकाल में दूसरी पीढ़ी के आईआईटी जिन्हें हैदराबाद, मंडी, रोपार और पटना जैसे शहरों में बसाया गया है. साथ ही जम्मू के आईआईटी अपने यहां ऐसे स्टूडेंट्स को अगले सत्र से दाखिला देंगे.
सूत्रों ने एक प्रमुख अंग्रेजी अखबार से बातचीत में कहा कि हैदराबाद आईआईटी में 40 सीटें, आईआईटी मंडी में 50 सीटें, आईआईटी पटना में 25, आईआईटी रोपार में 125 तो वहीं आईआईटी जम्मू में 30 सीटें बढ़ाई जाएंगी.
पुराने आईआईटी संस्थानों में साल 2008 के दौरान ओबीसी रिजर्वेशन (27 फीसदी) की वजह से एकदम से सीटें बढ़ानी पड़ी थीं. यह सीटें पहले 4000 थीं जिन्हें बढ़ाकर 6500 करना पड़ा था.
इस पूरे मसले पर मंत्रालय ने तमाम आईआईटी संस्थानों के निदेशकों से फीडबैक मांगे थे. इसे लेकर पुराने संस्थान बिल्कुल ही अनमने हैं. वे इन्फ्रास्ट्रक्चर का हवाला देकर ऐसी मांगों को ठुकरा रहे हैं. 23 आईआईटी में से 20 अपना फीडबैक भेज चुके हैं. पांच संस्थान इसे लेकर तैयार हैं. हालांकि सात पुराने आईआईटी मास्टर्स और डॉक्टरेट जैसे प्रोग्राम में स्टूडेंट्स को एडमिशन देने के लिए राजी हैं.
फैकल्टी की कम संख्या और स्टूडेंट्स को दिए जाने वाले हॉस्टल्स का न होना इस प्रपोजल के नकारे जाने के केन्द्र में है. वे कहते हैं कि रातोंरात न तो हॉस्टल्स बनाए जा सकते हैं और न ही फैकल्टी हायर की जा सकती है. ऐसे में एडमिशन को कहीं और शिफ्ट करना ही एक मात्र उपाय है.