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कभी बहन ने पढ़ाई के लिए गिरवी रखे थे गहने, आज हैं मिलेनियर...

सरथ बाबू के सफलता की कहानी दूसरे सफल लोगों से एकदम अलग है. कभी पढ़ाई करने के लिए भी पैसे नहीं थे. मां को महज 30 रुपये महीने के मिलते थे. झुग्गी-झोपड़ियों से निकल कर आईआईएम अहमदाबाद पहुंचना और आज एक मिलेनियर होना कोई मजाक तो है नहीं...

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Sarath Babu
Sarath Babu

वैसे तो हमारे देश में कई स्मार्ट सिटीज बसाए जा रहे हैं. उत्तर के समतल मैदान से लेकर पहाड़ो तक. जाहिर है कि उनकी बसावटों के बाद उन्हें सस्ता लेबर मुहैया कराने के लिए झुग्गी-झोपड़ी भी बसाए जाएंगे. जहां लेबर क्लास के लोग रहेंगे. बिना किसी सुख-सुविधा के वे वहां जिंदगी बिताने को मजबूर होंगे. न पीने को साफ पानी और न ही खाने को दो जून की रोटी लेकिन सरथ बाबू की जिंदगी इन्हीं झुग्गी-झोपड़ियों में बीतती है और आज बहुतों के लिए प्रेरणास्त्रोत है.

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झुग्गी-झोपड़ियों से आईआईएम का सफर...
सरथ शुरुआत से ही इस बात को जान गए थे कि इन झुग्गियों से बाहर आने पर दुनिया बहुत खूबसूरत है. वे पूरे लगन से पढ़ाई में जुटे रहे. बिट्स-पिलानी और फिर आईआईएम-अहमदाबाद मे दाखिला लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त की. उन्हें वहां लाखों की नौकरी भी मिली लेकिन उन्होंने नौकरी ठुकरा दी. वे चेन्नई के मडिपक्कम इलाके में अपने परिवार के साथ झुग्गियों में गुजर-बसर कर रहे थे. उनकी मां एक सरकारी स्कूल में मिड डे मील बनाने का काम करती थीं. इसके एवज में उन्हें सिर्फ 30 रुपये महीने के मिलते थे.

अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए की बुक-बांइडिंग...
दसवीं तक तो सरथ किसी-किसी तरह पढ़ाई करते रहे क्योंकि सरकारी स्कूलों में ज्यादा फीस नहीं लगती थी लेकिन दसवीं के बाद उन्हें कॉलेज में दाखिला लेना था और उसके लिए उनके पास पर्याप्त पैसे नहीं थे. गर्मी की छुट्टियों में उन्होंने बुक बाइंडिंग का काम शुरू किया. उनके काम को देखते हुए उन्हें ढेर सारे ऑर्डर मिले और इससे मिलने वाले पैसे से उन्होंने आगे की पढ़ाई की.

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बिट्स पिलानी में दाखिले के लिए बहन ने गहने गिरवी रखे...
सरथ इतने समय में इस बात को तो भलीभांति समझ ही गए थे कि एक बेहतरीन संस्थान उनकी जिंदगी में किस प्रकार बदलाव ला सकता है. उन्होंने बिट्स पिलानी का एंट्रेंस निकाल तो लिया मगर उनके पास इसकी फीस (42,000) भरने के पैसे नहीं थे. तब उनकी शादीशुदा बहन ने अपने गहने गिरवी रख कर पहले सेमेस्टर की फीस अदा की.

नौकरी ठुकरा कर उद्यमी बनने का फैसला लिया...
सरथ बिट्स पिलानी से पढ़ाई करने के बाद चेन्नई की एक कंपनी में मोटी तनख्वाह पर नौकरी करने लगे. हालांकि वह एमबीए करने को इच्छुक थे और जल्द ही नौकरी छोड़ कर कैट की तैयारी करने लगे. शुरुआती दो अटेम्पट में वे असफल रहे लेकिन तीसरी बार में वे आईआईएम अहमदाबाद के लिए चयनित हो गए.

आईआईएम में भी वे मेस कमेटी का हिस्सा रहे और उससे से सीख लेते हुए आगे बढ़ते रहे. उन्हें वहां से बाहर निकलते-निकलते कई नौकरियां मिल रही थीं लेकिन उन्होंने फूड किंग केटरिंग सर्विसस प्राइवेट लिमिटेड नाम से अपनी फूड कंपनी खोली. धीरे-धीरे सरथ ने भारत में कई जगह फूड किंग केटरिंग नाम से अपने रेस्तरां खोले. महज एक लाख रुपये से शुरू किया गया उनका कारोबार आज करोड़ों का हो गया है.

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समाज सेवा भी करने लगे है...
सफल कारोबारी बनने के बाद सरथ ने समाज-सेवा शुरू की. उन्होंने 2010 में हंगर फ्री इंडिया फाउंडेशन की स्थापना की. इस संस्था का मकसद अगले बीस सालों में भारत को 'भुखमरी मुक्त' बनाना है. सरथ अपनी ओर से गरीबों और जरूरतमंदों की हर मुमकिन मदद भी कर रहे हैं.

अब हम तो इसी बात से खुश हैं कि सरथ जैसा इंसान आज भी अपने संघर्ष और जड़ों को नहीं भूला है.

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