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कलाम के नाम खत: जा रहे हो तो आने का वादा करो...

एक दिन सबको जाना होता है सो आपको भी जाना पड़ा. इस पर क्या रोना-गाना, क्या गिले-शिकवे करना.

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A. P. J. Abdul Kalam
A. P. J. Abdul Kalam

कलाम साहेब,

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प्रणाम!

एक दिन सबको जाना होता है सो आपको भी जाना पड़ा. इस पर क्या रोना-गाना, क्या गिले-शिकवे करना. आप जरूर चाहते रहे होंगे कि कुछ और दिन यहां रहें ताकि गुलाम मानसिकता वाले इस देश के नक्काल मध्यवर्ग को जितना संभव हो झकझोर सकें. लेकिन जो आपने किया वह कोई कम तो नहीं?

आज इस देश का युवा अगर जोश से भरा है, आशा से लबरेज है, इस और उस नकली-असली विचारधारा का शिकार हुए बगैर बड़े-बड़े सपने देख रहा है, अपने मन की बात बेझिझक कह रहा है, उपभोक्ता से ज्यादा नागरिक बन रहा है और समाज तथा सरकार बनाने तक नये-नये प्रयोग कर रहा है, तो इस सब में आपका बड़ा रोल है क्योंकि आप उनके रोल मॉडल जो बन गए थे , हैं और रहेंगे.

अभी किसी ने लिखा कि सोनिया जी ने आपको दोबारा राष्ट्रपति बनने दिया होता तो कितना अच्छा होता! यह तो एकदम से मुंहपुरांव है यानी उसका मन रखने की बात जिसका मन ही देश का , जनता-जनार्दन का मन हो गया था और जिससे राष्ट्रपति का पद गरिमा पाता था. एक मोसल्लम हिन्दुस्तानी मन जिसमें एक तरफ सबको स्वीकारने की क्षमता हो जैसा वैदिक ऋषि दीर्घतमा कह गए:

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एकोसद्विप्रा बहुधा वदन्ति ( एक ही सत्य को भिन्न-भिन्न सत्यार्थी भिन्न-भिन्न तरह से समझते-कहते हैं)...

तो दूसरी तरफ सबको किनारे कर अपना मार्ग बनाने की क्षमता हो जैसा बुद्ध ने महाप्रयाण से पहले अपने प्रिय शिष्य आनंद से कहा था:
अप्प दीपो भव (अपना दीपक खुद बनो).

जबसे आपके चोला-त्याग की खबर मिली है तभी से मेरा मन एकदम से बउआ रहा है किसी बावले की तरह. अगर ऐसा नहीं होता तो इतनी बेतुकी बातें मैं इस फेसबुकिया पोस्टकार्ड पर लिखने की भला हिम्मत कर पाता?
कल रात से ही घरवालों ने मुझे बरबराते सुना है:

कलाम कक्का , ये बताओ जब ऊपर चले ही गए हो तो पहले खुसरो और मीर के सिरहाने जाओगे या रामानंद, शंकराचार्य और चाणक्य के? महात्मा बुद्ध को पता नहीं चला होगा ऐसी बात नहीं भले ही वे काफी समय से चीन-जापान की यात्रा पर हैं. अकबर और शेरशाह तो शहंशाह ठहरे, भले ही कुछ बोले नहीं लेकिन आप उनसे जल्दी नहीं मिलें तो उन्हें भी अच्छा नहीं लगेगा.

आपकी अपनी कुछ प्रोफेशनल विवशता भी होगी कि इतने व्यस्त कार्यक्रम में कहीं आर्यभट्ट, भास्कराचार्य, वराहमिहीर, चरक, सुश्रुत जैसे समानधर्मा से भी दुआ-सलाम करने में एकदम विलंब न हो .

एक परेशानी तो यह भी है कि आप मीठी ईद के कुछ ही समय बाद वहां पधारे हैं तो सब सेवइयां भी मांगेंगे. खैर इससे तो आप निपट लेंगे किसी को '2020' तो किसी को 'अग्नि की उड़ान' की कापी देकर.

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अब जब देर-सबेर सबसे आपकी मुलाकात होनी तय है तो सबसे एक सवाल जरूर करियेगा कि इधर चन्द्रगुप्त, समुद्रगुप्त, शेरशाह, अकबर, राजा रंजीत सिंह, सुभाष बोस, पटेल और जमशेद जी टाटा जैसों की बड़ी डिमांड है और सप्लाई नहीं के बराबर है, ऐसा क्यो? इस कारण सब जगह चाइनीज़ माल की तरह फेक यानी नक्कालों का बोलबाला है.

मेरे हिसाब से इस काम में सबसे ज्यादा मददगार साबित होंगे चाणक्य, शंकराचार्य और खुसरो क्योंकि ये सब घोर भारत-व्याकुल आत्माएं हैं और देशहित में कुछ भी करने से नहीं हिचकेंगीं.

और अंत में, हो सके तो इधर जल्दी आ जाना.  कक्का तेरी बड़ी जरूरत है. एक कव्वाली याद आ रही है:

आ गए हो तो जाने की जिद ना करो
जा रहे हो तो आने का वादा करो...

ढ़ेर सारी शुभकामनाओं के साथ,

सादर,
चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह.

(www.drcpsingh.blogspot.in से साभार)

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