डूसू का दंगल तैयार हैं कैंपेनिंग के रंग कैंपस में हर जगह नजर आ रहे हैं. लेकिन छात्र चुनाव में गाइडलाइन्स का ध्यान रखना भी उतना ही ज़रूरी हैं जितना की केंपैनिंग करना. हर छात्र चुनावों से पहले कॉलेजों में जाकर छात्रों तक पहुचने की हरसंभव कोशिश में लगा हुआ हैं.
लेकिन गाइडलाइन्स और NGT की पहली ही शर्त हैं पेपरलेस कैंपेनिंग . लेकिन कैंपस में हर जगह इस गाइडलाइन का धड़ल्ले से उलंघन हो रहा हैं. जगह-जगह दीवारों पर पोल्स पर चिपके पर्चे और पोस्टर इस बात का सबूत हैं. लेकिन छात्र दलों का कहना हैं कि उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं हैं अमृता धवन NSUI राष्ट्रीय अध्यक्ष का कहना हैं कि अगर प्रशासन पेपर लेस प्रचार चाहती हैं तो उन्हें भी हमें छात्रों तक पहुचने के दूसरे विकल्प देने चाहिए जैसे हर कॉलेज में आधा घंटा इंटरेक्शन का टाइम और वॉल ऑफ डेमोक्रेसी जैसी सहूलियत दे ताकी हम छात्रों तक पहुच सके.
इसके अलावा गाइडलाइन के मुताबिक गाडियों पर पोस्टर चिपकाकर कैंपेनिंग करना भी मना हैं लेकिन गाडियों पर भी संभावित उम्मीदवारों के नाम चिपकाकर केंपैनिंग चालू हैं. छात्र राजनीति में दल ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया के जरिये कैंपेनिंग कर सकते हैं ताकी चुनाव प्रचारों को पेपरलेस बनाया जा सके लेकिन इस बात पर छात्र दलों की दलील हैं कि 50 कॉलेज के बच्चों तक पहुचना आसान नहीं हैं और इसीलिए वो लोग पेपर का इस्तेमाल करने पर मजबूर हैं.
सभी दलों ने पेपरलेस राजनीति के लिए रणनीति तो बनाई है लेकिन जमीनी तौर पर इसका कोई असर नज़र नही आ रहा हैं. जहां अभी भी पेपर की बर्बादी और कचरा कैंपस में साफ दिखाई दे रहा हैं.