आजादी के बाद से पिछले 67 सालों में देश की आबादी साढे तीन गुना से अधिक बढ़ने के साथ साक्षरता दर 16 प्रतिशत से बढ़कर 74 प्रतिशत जरूर हुई है, लेकिन इस दौरान गांव देहात से लेकर छोटे-बड़े शहरों में सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की व्यवस्था चरमरा गई है. लिहाजा आज गांव के लोग भी जो थोड़ा खर्च उठा सकते हैं, वे सरकारी स्कूली की बजाए पब्लिक स्कूलों में बच्चों को भेजने को मजबूर हैं.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 2009 में स्कूली शिक्षा के दायरे से बाहर रहने वाले बच्चों की संख्या 81.5 लाख थी जो 2014 में 60.6 लाख रह गई. देश के कई प्रदेशों आज भी स्कूलों के लिए आधारभूत सुविधा की कमी से जूझ रहे हैं.
शिक्षाविद प्रो. एस श्रीनिवास ने कहा कि इस संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट का हाल का आदेश काफी प्रासंगिक है कि सरकारी वेतन ले रहे बड़े लोगों के बच्चे जब तक प्राथमिक शिक्षा के लिए सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़़ेंगे तब तक उनकी दशा में सुधार नहीं होगा. उन्होंने कहा कि आज से 40 साल पहले 95 फीसदी से अधिक बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ने जाया करते थे तब सरकारी स्कूलों की व्यवस्था ठोस थी लेकिन समय के साथ इसमें गिरावट आती गई और आज आजादी के करीब सात दशक बाद भी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की समस्या है. ऐसे में लोग बच्चों की शिक्षा के लिए भारी राशि खर्च करने को मजबूर हैं.
वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट 2014 के अनुसार, कक्षा तीन के 23.6 प्रतिशत छात्र कक्षा दो की किताब पढ़ पा रहे थे जबकि कक्षा पांच के 48.1 प्रतिशत छात्र कक्षा दो की किताब पढ़ सके. साल 2014 में कक्षा दो के 32 प्रतिशत छात्र अक्षर नहीं पहचान पाते थे.
एनसीईआरटी के पूर्व अध्यक्ष जे एस राजपूत ने कहा कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा के बारे में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया, वह आना ही था. सिर्फ शिक्षा के अधिकार का कानून बनाना पर्याप्त नहीं है. लोग अब वास्तव में सही माहौल में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की मांग कर रहे हैं. अब सरकार को देर नहीं करनी चाहिए, इस दिशा में पहल करनी चाहिए.
वर्ष 2013..14 में कक्षा एक से पांच तक छात्रों के स्कूल की पढ़ाई बीच में छोड़ने की दर 19.8 प्रतिशत थी जबकि एक से आठ के बच्चों में स्कूल की पढ़ाई छोड़ने की दर 36 प्रतिशत रही . संसद में एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि राज्यों में शिक्षकों के 4.7 लाख पद खाली हैं. इसके कारण छात्र शिक्षक मानक का पालन नहीं हो पा रहा है. एजुकेशन फोरम के अंबरीश सक्सेना ने कहा कि आजादी के बाद 67 सालों में गांव देहात से लेकर छोटे-बड़े शहरों में सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की व्यवस्था चरमरा गई है.
लिहाजा आज गांव के लोग जो थोड़ा खर्च उठा सकते हैं, वे सरकारी स्कूली की बजाए पब्लिक स्कूलों में बच्चों को भेजने को मजबूर हैं. 2013-14 में प्राथमिक स्तर पर 13 लाख बच्चे दाखिल थे जबकि उच्चतर प्राथमिक स्तर पर 6.57 करोड़ बच्चों का दाखिला था जबकि माध्यमिक स्तर पर दाखिल बच्चों की संख्या 3.70 करोड़ थी.
उच्च शिक्षा में दाखिल छात्रों की संख्या इस दौरान 2.96 करोड़ हो गई. शिक्षण संस्थाओं में पढ़ाई बीच में छोड़ने की प्रवृति आमतौर पर देखी गई है. सरकारी स्तर पर सर्व शिक्षा अभियान , 1987-88 में आपरेशन ब्लैकबोर्ड, शिक्षकों की शिक्षा, 2009 में शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने जैसी पहल की गई पर आज दूर देहातों में शिक्षा का सरकरी ढांचा भटकता दिख रहा है.
इनपुट: भाषा