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कबीर के ऐसे दोहे जो जिंदगी का फलसफा सिखाते हैं

पीएम मोदी ने कहा- 'कबीर विचार बनकर आए और व्यवहार बनकर अमर हो गए'. पढ़ें- कबीर के चर्चित दोहे...

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मगहर में पीएम मोदी
मगहर में पीएम मोदी

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिले में स्थित सूफी संत कबीर दास के 620वें प्राकट्य दिवस के मौके पर मगहर पहुंचे. यहां पहुंचकर सबसे पहले उन्होंने संत कबीर दास की समाधि पर पहुंचे और फूल चढ़ाए और उनकी समाधि पर चादर चढ़ाकर नमन किया. इसी के साथ पीएंम मोदी ने यहां ‘संत कबीर अकादमी‘ की आधारशिला रखी.

पीएम मोदी ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा- 'कबीर विचार बनकर आए और व्यवहार बनकर अमर हो गए' आइए इसी मौके पर जानते हैं कबीर के उन दोहे के बारे में जो हमेशा से ही चर्चित हैं और रहेंगे.

ये हैं कबीर के चर्चित दोहे और उनकी व्याख्या

1- दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय

जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय

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व्याख्या: हम सभी परेशानियों में फंसने के बाद ही ईश्वर को याद करते हैं. सुख में कोई याद नहीं करता. जो यदि सुख में याद किया जाएगा तो फिर परेशानी क्यों आएगी.

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2- बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय

जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोय

व्याख्या: जब मैं पूरी दुनिया में खराब और बुरे लोगों को देखने निकला तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला. और जो मैंने खुद के भीतर खोजने की कोशिश की तो मुझसे बुरा कोई नहीं मिला.

3- बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर

पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर

व्याख्या: इस दोहे के माध्यम से कबीर कहना चाहते हैं कि सिर्फ बड़ा होने से कुछ नहीं होता. बड़ा होने के लिए विनम्रता जरूरी गुण है. जिस प्रकार खजूर का पेड़ इतना ऊंचा होने के बावजूद न पंथी को छाया दे सकता है और न ही उसके फल ही आसानी से तोड़े जा सकते हैं.

4- काल करे सो आज कर, आज करे सो अब

पल में परलय होएगी, बहुरी करोगे कब

व्याख्या: कल का काम आज ही खत्म करें और आज का काम अभी ही खत्म करें. ऐसा न हो कि प्रलय आ जाए और सब-कुछ खत्म हो जाए और तुम कुछ न कर पाओ.

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5- ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोए

अपना तन शीतल करे, औरन को सुख होए

व्याख्या: हमेशा ऐसी बोली और भाषा बोलिए कि उससे आपका अहम न बोले. आप खुद भी सुकून से रहें और दूसरे भी सुखी रहें.

6- धीरे-धीरे रे मन, धीरे सब-कुछ होए

माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए

व्याख्या: दुनिया में सारी चीजें अपनी रफ्तार से घटती हैं, हड़बड़ाहट से कुछ नहीं होता. माली पूरे साल पौधे को सींचता है और समय आने पर ही फल फलते हैं.

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7- साईं इतनी दीजिए, जा में कुटुंब समाए

मैं भी भूखा न रहूं, साधू न भूखा जाए

व्याख्या: यहां कबीर ईश्वर से सिर्फ उतना ही मांगते हैं जिसमें पूरा परिवार का खर्च चल जाए. न कम और न ज्यादा. कि वे भी भूखे न रहें और दरवाजे पर आया कोई साधू-संत भी भूखा न लौटे.

8- जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग

तेरा साईं तुझ में है, तू जाग सके तो जाग

व्याख्या: जिस तरह तिल में तेल होने और चकमक में आग होने के बाद दिखलाई नहीं पड़ता. ठीक उसी तरह ईश्वर को खुद के भीतर खोजने की जरूरत है. बाहर खोजने पर सिर्फ निराशा हाथ लगेगी.

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9- पोथि पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोए

ढाई आखर प्रेम के, पढ़ा सो पंडित होए

व्याख्या: कबीर कहते हैं कि किताबें पढ़ कर दुनिया में कोई भी ज्ञानी नहीं बना है. बल्कि जो प्रेम को जान गया है वही दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञानी है.

10- चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए

वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए

व्याख्या: चिंता रूपी चोर सबसे खतरनाक होता है, जो कलेजे में दर्द उठाता है. इस दर्द की दवा किसी भी चिकित्सक के पास नहीं होती.

11- माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर

आशा, तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर

व्याख्या: इच्छाएं कभी नहीं मरतीं और दिल कभी नहीं भरता, सिर्फ शरीर का ही अंत होता है. उम्मीद और किसी चीज की चाहत हमेशा जीवित रहते हैं.

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