सैन डिएगो की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के चांसलर प्रदीप खोसला ने सोनाली आचार्जी को बताया कि अपने काम से प्यार करना क्यों जरूरी है.
इंटरनेशनल ख्याति प्राप्त इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजीनियर प्रदीप खोसला ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी-खडग़पुर से 1980 में बी.टेक किया था. इसके बाद उन्होंने कुछ साल तक टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स और सीमेंस में काम किया. इसके बाद वे मास्टर्स और पीएचडी पूरा करने के लिए कार्नेगी मेलॉन यूनिवर्सिटी (सीएमयू) चले गए और कुछ समय बाद ही इसी यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर बन गए. 2004 में उन्हें कार्नेगी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी का डीन बनाया गया और इसके बाद यूनिवर्सिटी प्रोफेसर बने जो किसी यूनिवर्सिटी एकेडमिक का सर्वोच्च रैंक होता है
सीएमयू में अपने कार्यकाल के दौरान उन्हें कई दूसरी पोजिशन संभालने का भी मौका मिला जैसे कार्नेगी मेलॉन साइबर लैब के फाउंडिंग डायरेक्टर, इन्फॉर्मेशन नेटवर्किंग इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर और इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्प्लेक्स इंजीनियर्ड सिस्टम्स के फाउंडिंग डायरेक्टर.
2012 में खोसला को सैन डिएगो की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी का आठवां चांसलर नियुक्त किया गया. अपने रिसर्च वर्क के आधार पर उन्होंने तीन किताबें लिखीं और इसके अलावा 350 विभिन्न तरह के जर्नल में आर्टिकल लिखे और किताबों में योगदान किया. सेंसर बेस्ड मैनिपुलेटर कंट्रोल, रियल टाइम आर्किटेक्चर्स फॉर कंट्रोल, डिजाइन फॉर असेंबली, मेथडोलॉजीज फॉर मैनिपुलेटर डिजाइन और एप्लिकेशंस ऑफ रोबोटिक्स इन एसेम्बली ऐंड मैन्युफैक्ïचरिंग जैसे क्षेत्रों में रिसर्च में उनकी दिलचस्पी थी.
इन वर्षों में खोसला को कई अवार्ड मिले जिनमें एएसईई जॉर्ज वेस्टिंगहाउस अवॉर्ड फॉर एजुकेशन और एएसएमई कंप्यूटर्स इन इंजीनियरिंग लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड जैसे प्रतिष्ठित सम्मान शामिल हैं. आज वे न सिर्फ अकसर प्रमुख इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेते रहते हैं, बल्कि दुनिया की कई नॉट-फॉर-प्रॉफिट, फॉर प्रॉफिट और गवर्नमेंटल इंस्टीट्यूशंस के एडवाइजरी बोर्ड में भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्फोसिस साइंस प्राइज के ज्यूरी चेयर के रूप में उन्होंने उस समिति की अध्यक्षता की थी जिसने 2011 के इंजीनियरिंग ऐंड कंप्यूटर साइंस प्राइज के विजेता का फैसला किया था.