प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 अप्रैल 2017 को लंदन में 'भारत की बात सबके साथ' कार्यक्रम के जरिए दुनिया को संबोधित किया. इस दौरान कवि और लेखन प्रसून जोशी ने उनका दो घंटे 20 मिनट तक इंटरव्यू लिया.
आप कह सकते हैं वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सबसे लंबा इंटरव्यू लेने वाले कवि और लेखक बन चुके हैं. जानते हैं उनके करियर के बारे में कैसे अल्मोड़ा से वह उस मुकाम तक पहुंचे, जहां उन्हें नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू लेने का मौका मिला.
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जानते हैं उनके करियर के बारे में
- प्रसून जोशी का जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा में 16 सितंबर 1971 में हुआ था. उनके पिता पीसीएस अधिकारी थे. उनके माता-पिता को म्यूजिक में बहुत रुचि थी. 17 साल की उम्र में प्रसून ने लिखना शुरू कर दिया था. उन्होंने पहले एमबीए की पढ़ाई की फिर एक कंपनी से जुड़ गए. वहां उन्होंने दस साल काम किया.
चुने गए सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष
साल 2017 में सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) के अध्यक्ष पद से पहलाज निहलानी को हटाकर लेखक और गीतकार प्रसून जोशी को नया अध्यक्ष बना दिया गया था. सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष होने के साथ प्रसून McCann World के सीईओ भी हैं. McCann World ने मेक इन इंडिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विदेशी कैंपेन और जिंगल्स को डिजाइन किया है.
ऐसे हुई करियर की शुरुआत
- उनके पिता पीसीएस अफसर थे. मां क्लासिकल सिंगर. ऐसे में उन्हें एक ऐसा वातावरण मिला जहां वह अपने मन से उस क्षेत्र में करियर बना सकते थे जहां वह चाहते थे. उनकी मां को गाना पसंद था लेकिन और उन्हें लिखना. बता दे, मात्र 17 साल की उम्र में उनकी पहली किताब 'मैं और वो' पब्लिश हुई थी.
लंदन में PM मोदी के लिए गीतकार प्रसून जोशी ने सुनाई कविता
इस कंपनी से हुई शुरुआत
प्रसून ने फिजिक्स में पोस्ट ग्रेजुएशन की और एमबीए की पढ़ाई की. पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने अपने करियर की शुरुआत दिल्ली की ऐड कंपनी O&M (Ogilvy and Mather) से जुड़े. उन्होंने 10 साल तक यहां पर नौकरी की. इसके बाद वो अन्तर्राष्ट्रीय विज्ञापन कंपनी 'मैकऐन इरिक्सन' में कार्यकारी अध्यक्ष भी रहे. उनके कुछ विज्ञापनों के पंचलाइन ने उन्हें काफी नाम दिलाया.
एडवरटाइमेंट की दुनिया में छाई उनकी लिखी पंचलाइन
- प्रसून जोशी को कलम के जादूगर और ऐड गुरू भी कहा जाने लगा.
- ठंडा मतलब कोका कोला
- क्लोरमिंट क्यों खाते हैं? दोबारा मत पूछना
- ठंडे का तड़का... यारा का टशन
- अतिथि देवो भव:
- उम्मीदों वाली धूप, सनसाइन वाली आशा. रोने के बहाने कम हैं, हंसने के ज़्यादा.
आपको बता दें, वे जितना एड लिखने में सहज हैं वे उसी सरलता से फिल्मों के लिए गीत भी लिखते हैं.राजकुमार संतोषी की फिल्म 'लज्जा' ने उन्हें फिल्मों में एंट्री दिलवा दी. उसके बाद से वो लगातार फिल्मों से जुड़े हैं. उन्होंने 'मौला', 'कैसे मुझे तू मिल गई', 'तू बिन बताए', 'खलबली है खलबली', 'सांसों को सांसों' में जैसे मशहूर गाने लिखे हैं, तारे जमीन पर, क्या इतना बुरा हूं मैं मां जैसे मशहूर गाने लिखे हैं.
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प्रसून भले ही बाजार के लिए लिखते हों लेकिन उनके द्वारा लिखी गई कविताओं सिर्फ और सिर्फ आमजन की संवेदना होती है. चाहे वह लड़कियों-महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव पर लिखा हो या फिर मुंबई आतंकी हमले के बाद लिखी गई उनकी कविता. बता दें, पेशावर के स्कूल में होने वाले आतंकी हमले के बाद लिखी गई उनकी पंक्तियां पूरी दुनिया में काफी सराही गईं थी.
इन अवार्ड से हुए सम्मानित
2002: विज्ञापन जगत का ABBY अवॉर्ड
2003: कान्स लॉयन अवॉर्ड
2005: 'सांसों को सांसों' गाने के लिए स्क्रीन अवॉर्ड
2007: चांद सिफारिश गाने के लिए फ़िल्मफेयर अवॉर्ड
2008: 'मां' गाने के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार और फिल्मफेयर
2013: फ़िल्म 'चिटगॉन्ग' के गीत 'बोलो ना' के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार
2014: फ़िल्म 'भाग मिल्खा भाग' के गाने 'ज़िंदा है तो प्याला पूरा भर ले' के लिए फिल्मफेयर
2015: फ़िल्म 'भाग मिल्खा भाग' के लिए बेस्ट स्टोरी अवॉर्ड
2015: पद्मश्री पुरस्कार