दिल्ली के तुगलकाबाद में संत गुरु रविदास मंदिर तोड़े जाने के खिलाफ दिल्ली में बुधवार को दलित समाज के लोगों ने विशाल प्रदर्शन किया. जिसके बाद नीले गमछों, नीले झंडों और नीले बैनर-पोस्टर लेकर हजारों की संख्या में लोग दिल्ली के रामलीला मैदान में पहुंचे और रविदास मंदिर तोड़े जाने का विरोध करने लगे. हाथों में लाठी लिए ये लोग जय भीम और जय गुरु रविदास के नारे लगा रहे थे. वहीं सोशल मीडिया पर भी इस मामले को लेकर बवाल मचा हुआ है. आइए जानते हैं संत गुरु रविदास के बारे में.
संत गुरु रविदास 15वीं सदी के एक महान समाज सुधारक थे. उन्होंने भेदभाव से ऊपर उठकर समाज कल्याण की सीख दी. संत गुरु रविदास के जन्म से जुड़ी ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन कुछ साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर महान संत गुरु रविदास का जन्म सन 1377 के आसपास माना जाता है. हिन्दू धर्म महीने के अनुसार संत गुरु रविदास का जन्म माघ महीने के पूर्णिमा के दिन हुआ था. उन्हें संत रैदास के नाम से भी जाना जाता है.
गुरु रविदास का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था. उनके पिता संतोखदास जी जूते बनाने का काम करते थे. वहीं रैदास बचपन से साधु संतो के प्रभाव में रहने लगे थे. इसके चलते उनमें भक्ति की भावना बचपन से ही भर गई थी. लेकिन रविदास जी भक्ति के साथ अपने काम पर पूरा यकीन रखते थे. यही वजह थी कि वो पिता से मिला जूते बनाने का काम भी लगन से करने लगे.
रविदास जब भी किसी को मदद की जरूरत होती तो बिना पैसा लिए वे लोगों को जूते दान में दे देते थे. संत रविदास की खासियत ये थी कि वह बहुत दयालु थे. दूसरों की मदद करना उन्हें अच्छा लगता था. कहीं साधु-संत मिल जाएं तो वे उनकी सेवा करने से पीछे नहीं हटते थे. उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई. छुआछूत आदि का उन्होंने विरोध किया और पूरे जीवन इन कुरीतियों के खिलाफ ही काम करते रहे.
बिना आलोचना उठाते थे आवाज
उनके बारे में कहा जाता है कि संत रविदास समाज की कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाते थे. उन्होंने मध्यकाल में ब्राह्मणवाद को चुनौती दी थी. अपनी लेखनी से उन्होंने ये विचार समाज को दिया कि कोई भी व्यक्ति जन्म के आधार पर श्रेष्ठ नहीं होता है. उनकी पंक्तियां, 'रैदास बाभन मत पूजिए जो होवे गुन हीन, पूजिए चरन चंडाल के जो हो गुन परवीन' आज भी लोगों को सिखा रही हैं. समतामूलक सिद्धांत की जिस थ्योरी को उन्होंने उस जमाने में बताने की कोशिश की, देखा जाए तो आज भी उनकी इस अवधारणा पर आवाज उठ रही है.
दिए कर्म के सिद्धांत
रैदास ने सीधे-सीधे लिखा कि 'रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच, नर कूं नीच कर डारि है, ओछे करम की नीच' यानी कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने कर्म से नीच होता है. जो व्यक्ति गलत काम करता है वो नीच होता है. कोई भी व्यक्ति जन्म के हिसाब से कभी नीच नहीं होता. इसके अलावा उन्होंने जातिवाद पर भी चोट करने की कोशिश की.