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संस्कृत की संस्कृति को तराश रहा है यह युवक...

क्या आपने भी 90 के दशक में हिट फिल्म 'आशिकी' का 'धीरे-धीरे से मेरी जिंदगी में आना...' गुनगुनाया है? इन दिनों इसका संस्कृत वर्जन भी हिट हो रहा है और इसके गायक के बारे में जानकर तो आप हैरान हो जाएंगे...

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Sanskrit Scholar
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हम आज इंटरनेट के चरम दौर में जी रहे हैं. आज सभी के पास स्मार्ट फोन हैं और उनमें चलने वाले व्हाट्सएप और फेसबुक हैं. आज कोई भी चीज या बात एक झटके से हिट और वायरल हो जाती है. लोग पुरानी-पुरानी चीजों को कुछ इस तरह साझा कर रहे हैं, जैसे उन्हें कोई अजूबा चीज मिल गई हो.

ऐसा हो सकता है 90 के दशक में आने वाली हिन्दी फिल्म 'आशिकी' का 'धीरे धीरे से मेरी जिंदगी में आना...' संस्कृत वर्जन आपने सुना हो और यदि नहीं सुना है तो सुन लीजिए. दिल गार्डन-गार्डन हो जाएगा. लोग आज इस गाने को अपनी मोबाइल रिंग टोन बना रहे हैं. इस मशहूर गाने को संस्कृत भाषा के रिसर्च स्कॉलर पंकज झा ने गाया है.

शनै: शनै: मम हृदये आगच्छ सुनें...
वैसे यह गाना उस दौर के सारे आशिकों की जुबान पर हुआ करता था लेकिन इस बीच इस गाने को हनी सिंह ने भी गाया जो खासा हिट रहा. वहीं इस गाने को संस्कृत के रिसर्च स्कॉलर ने गाया है जो झारखंड प्रदेश के देवघर के रहने वाले हैं. इस गाने को ढेरों हिट्स मिल रहे हैं.

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पंकज को नहीं था फेमस होने का अंदाजा...
पंकज ने शुरुआत में इस गाने को सिर्फ अपने कुछ साथियों के साथ व्हाट्सएप पर साझा किया. उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि गाने को लोग इस कदर पसंद करने लगेंगे. उन्हें लगता था कि संस्कृत तो बोलचाल की भाषा है नहीं, फिर लोग भी इसे बस यूं ही लेंगे.

घर पर हमेशा से रहा संस्कृत का माहौल...
पंकज झारखंड राज्य में देवघर के रहने वाले हैं. देवघर में मशहूर ज्योतिर्लिंग स्थापित है. यहां सावन माह में पूरे देश से लोग जल चढ़ाने आते हैं. उनके पिता इसी मंदिर के पुजारी हैं और वे हमेशा से ही संस्कृत के नजदीक रहे हैं. इसके अलावा वे संस्कृत को आगे बढ़ाने के लिए व्हाट्सएप पर भी खासे सक्रिय हैं.

सफलता के बावजूद हैं चिंतित...
आज भले ही पंकज का गाया एक संस्कृत गाना लोगों की जुबान पर चढ़ गया हो. फेसबुक और व्हाट्सएप पर वायरल हो रहा हो लेकिन पंकज इन सारी सफलताओं के बावजूद चिंतित हैं. वे कहते हैं कि संस्कृत को भले ही देवी-देवताओं की भाषा होने का गौरव प्राप्त हो लेकिन उसे अंग्रेजी की तुलना में रत्ती भर भाव नहीं मिलता. पंकज का मानना है कि संस्कृत की अवहेलना खुद की अवहेलना है.

पंकज इस बात से वाकिफ हैं कि संस्कृत आज बाजार की भाषा नहीं है. इसी वजह से उसकी मार्केटिंग नहीं हो पाती. पंकज आगे और भी गानों को संस्कृत में गाने की इच्छा रखते हैं. वे दूसरों को भी संस्कृत अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे है. अब हम तो ईश्वर से सिर्फ यही प्रार्थना करेंगे कि पंकज अपने इस मिशन में सफल हो जाएं और संस्कृत की गूंज चारों और सुनाई दे.

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