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उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता शमशेर सिंह बिष्ट का निधन

राज्य आंदोलनकारी डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट का 71 वर्ष की आयु में शनिवार को निधन हो गया.

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शमशेर सिंह बिष्ट (फोटो- सोशल मीडिया)
शमशेर सिंह बिष्ट (फोटो- सोशल मीडिया)

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उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और राज्य आंदोलनकारी डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट का शनिवार तड़के चार बजे अपने अल्मोड़ा स्थित आवास पर निधन हो गया. वह 71 वर्ष के थे और पिछले कुछ समय से शुगर और गुर्दे की तकलीफ से परेशान थे. हाल ही में उनका एम्स में भी इलाज चला था, जिसके बाद वह अपने घर पर स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे.

शनिवार दोपहर को अल्मोड़ा में उनके पार्थिव शरीर को जनगीतों के साथ विदाई दी गई. उत्तराखंड जनसंघर्ष वाहिनी के अध्यक्ष रहे बिष्ट का जन्म 1947 में अल्मोड़ा में हुआ था. उनका राजनीतिक सफर 1972 में अल्मोड़ा कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष के तौर पर शुरू हुआ. उस समय छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के लिए पूरा सिनेमा हॉल बुक कर छात्रों को फिल्म दिखाते थे, तब शमशेर केवल 50 रुपये खर्च कर छात्रसंघ अध्यक्ष बन गए थे.

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इसके बाद वह विश्वविद्यालय आंदोलन से जुड़े और इसके बाद ही कुमाऊं और गढ़वाल विश्वविद्यालय अस्तित्व में सके थे. उस समय शमशेर सिंह बिष्ट ने देश के प्रतिष्ठित जवाहलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अध्यापन को छोड़कर पहाड़ में रहना और वहां के समाज को जागरूक करने का फैसला किया था. 1982 में वह देश के तमाम आंदोलनों और जन संगठनों के इंडियन पीपल्स फ्रंट (IPF) के संस्थापक सदस्य और उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष भी रहे. हालांकि, बाद में IPF के सक्रिय राजनीति में उतरने के फैसले के बाद वह इससे अलग हो गए थे. 

अपने जीवनकाल में शमशेर सिंह बिष्ट अंत तक जनांदोलनों में शामिल रहे. वह विश्वविद्यालय आंदोलन, नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन, चिपको आंदोलन और उत्तराखंड राज्य आंदोलन में अग्रिम पंक्ति में शामिल रहे. जल-जंगल-जमीन के अधिकारियों के लिए संघर्षरत रहे शमशेर सिंह आंदोलनों में शामिल होने की वजह से कई महीनों तक जेल में भी रहे.

पौड़ी में शराब माफिया के खिलाफ लिखने वाले युवा पत्रकार उमेश डोभाल की हत्या के बाद सड़क पर उतरकर आंदोलन करने वालों में शमशेर सिंह बिष्ट पहले सामाजिक कार्यकर्ता- पत्रकार थे. उस समय में पौड़ी से लेकर दिल्ली तक शराब माफिया मनमोहन सिंह नेगी के खिलाफ कोई बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. शमशेर और उनके साथियों के आंदोलन के बाद ही इस मामले की उच्च स्तरीय जांच संभव हो सकी थी.

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उन्होंने राज्य आंदोलन के लिए सर्वदलीय संघर्ष समिति के बैनर तले सभी राजनीतिक धाराओं को एक मंच पर लाने का भी काम किया था. हेमवंती नंदन बहुगुणा और केसी पंत जैसे कांग्रेसी नेताओं ने उन्हें कांग्रेस में लाने की काफी कोशिश की थी. उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश सिंह रावत और भाजपा नेता बच्ची सिंह रावत उनके विद्यार्थी जीवन में सहयोगी रहे थे. लेकिन शमशेर ने अपने इन सहपाठियों से अलग सक्रिय राजनीति के बदले समाजिक आंदोलनों की राह चुनी.

शमशेर सिंह बिष्ट कुमाऊं और गढ़वाल की एकता और इस पूरे हिमालयी क्षेत्र की सामाजिक-सांस्कृतिक धरोहर को समझने के लिए शुरू की गई अस्कोट-आराकोट यात्रा को शुरू करने वाले लोगों में शामिल रहे. यह यात्रा उन्होंने इतिहासकार और हिमालयी लोकसंस्कृति के विद्वान डॉ. शेखर पाठक के साथ 1974 में शुरू की थी. वह लंबे समय तक उत्तराखंड के पाक्षिक समाचारपत्र नैनीताल समाचार में भी लिखते रहे. उनकी चिंताओं में राज्य और समाज निर्माण, प्रकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, शिक्षा नीति, जल-जंगल-जमीन के अधिकार आदि शामिल रहे.

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