राइट टू एजुकेशन के तहत हर बच्चे का मौलिक अधिकार है लोकतंत्र में चुनी हुई सरकारों का यह कर्तव्य है कि वह हर बच्चे को शिक्षा मुहैया कराएं. देश के दूरदराज के इलाकों की तो बात ही कुछ और है अगर देश की राजधानी में ही बच्चों के पास में पढ़ाई करने के लिए पूरे साधन मुहैया ना हो तो इस स्थिति में क्या कहिएगा.
अपनी क्लास रूम में घर के कपड़ों में बैठकर पढ़ते हुए ये बच्चे दरअसल सरकारी लेटलतीफी के मारे हैं. राइट टू एजुकेशन एक्ट कहता है कि चुनी हुई सरकारों का कर्तव्य है कि वह अपने स्कूल में हर बच्चे को पढ़ाई के लिए स्टेशनरी के सामान और वर्दी मुहैया कराएंगे मगर साउथ दिल्ली म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में अभी तक बच्चों को यूनिफॉर्म के लिए 500 रुपये और पढ़ाई के लिए पर्याप्त सामग्री नहीं दी गई है.
दिल्ली शहर की सबसे संपन्न मानी जाने वाली साउथ दिल्ली म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के स्कूलों में तकरीबन 2,40,000 बच्चे पढ़ाई करते हैं. ऐसे में अभी तक बच्चों को इस सत्र में ना ही यूनिफार्म के पैसे मिले हैं और न ही स्टेशनरी का सामान मिला है, अभी तक सिर्फ चार नोट बुक ही मिली हैं जो पूरे साल के लिए बिल्कुल भी पर्याप्त नहीं हैं.
शिक्षा के अधिकार के तहत सरकारों का फर्ज है कि वो गरीब मां बाप के बच्चों को भी पढ़ाई करने के लिए पूरी सामग्री मुहैया कराए ऐसे में अब तक यूनिफार्म के 500 रुपये नहीं मिलना और पूरी तरह पढ़ाई की सामग्री ना मिलने से गरीब मां बाप की जेब पर काफी बोझ पड़ रहा है, ऐसे में स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन शैलेंद्र मोंटी कहते हैं कि हम लोगों ने अगले सत्र के लिए तो दिसंबर में ही पूरी सामग्री जारी करने का निर्देश कर दिया है लेकिन यह जो इस सत्र में अब तक चूक हुई है चेयरमैन साहब इस बात को टाल जाते हैं.