पांच साल तक बड़ी कंपनी में नौकरी और मोटी सैलरी पाने के बाद विनोद कुमार
ने सोचा कि ऐसी जिंदगी का क्या मतलब है जिसमें आप न चैन से सो पाएं और न
ही घर का खाना खा पाएं. डेडलाइन और टारगेट के बीच वह अपनी जिंदगी में काफी घुटन महसूस कर रहे थे.
और फिर काफी सोचने-समझने के बाद उन्होंने नौकरी से ब्रेक लेने का फैसला किया. लगभग साल भर वह भारत के विभिन्न हिस्सों में घूमते रहे, जो उनके लिए काफी अच्छा साबित हुआ. उन्होंने महसूस किया कि अब वक्त अपनी जड़ों से जुड़ने का है और उन्होंने कृषि से जुड़ने का फैसला किया. विनोद का कहना है कि जब वह देश के ग्रामीण इलाकों में घूम रहे थे, तब उन्होंने पाया कि देश के किसान फर्टिलाइजर का खर्चा नहीं उठा पाने के कारण उतनी ही सब्जियां या अनाज उगा पाते हैं, जितने में उनका परिवार खा सके.
विनोद ने घूमने के बाद नौकरी छोड़ दी और वापस अपने जिले कांचीपुरम आ गए. एक साल तक काफी संघर्ष करने के बाद फिलहाल उनके पास अभी छह एकड़ जमीन है, जिसमें वह मक्का, जौ और कई सब्जियां बिना किसी रासायनिक खाद का प्रयोग किए हुए उगाते हैं. खेती की पुरानी अच्छी विधियों को सीखने के लिए विनोद को लगा कि इसमें विदेशी तरीकों का भी सहारा लेना चाहिए. इसे सोचते हुए ही उन्होंने अपने एक दोस्त के साथ श्रीलंका, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, म्यांमार, बांग्लादेश और भूटान जाने का फैसला किया. उनका मानना है कि इन देशों में अभी भी परंपरागत तरीके से खेती की जाती है, जिसका फायदा उन्हें मिलेगा. वह जान सकेंगे कि परंपरागत रूप से खेती करने के बावजूद कैसे बड़े पैमाने पर फसल उगाई जा सकती है.
विनोद देश के ऑर्गेनिक साइंटिस्ट जी नाम्मलवार और कृषिविद् सुभाष पालेकर से काफी प्रभावित हैं. विनोद बेहतर खेती के लिए खाद के रूप में गाय का गोबर व नीम तेल और बतौर पेस्टिसाइड गाय के मूत्र का प्रयोग कर रहे हैं. कृषि के क्षेत्र में गरीब किसानों को जोड़ने के लिए वह एनजीओ और एक्सपर्ट की मदद भी ले रहे हैं. जल्दी ही ऑर्गेनिक फार्मिंग पर वह एक किताब भी लिखने वाले हैं. इसके अलावा किसानों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम भी अपने फार्म में शुरू करने वाले हैं.