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अमेरिका जाकर ये काम करने लगी रितू, अब बनी करोड़ों की मालिक

हम बात कर रहे हैं रितु नारायण की, जिन्होंने ZUM नाम की राइड एंड केयर कंपनी खोली है, जो कामकाजी अमेरिकी महिलाओं के स्कूली बच्चों को सुरक्षित और सस्ती परिवहन सेवा की सुविधा देती है.

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रितू नारायण (फोटो- ट्विटर प्रोफाइल)
रितू नारायण (फोटो- ट्विटर प्रोफाइल)

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आपने कई ऐसी कहानियां सुनी होंगी, जिसमें कहा जाता है कि विदेश से आए एनआरआई ने भारत में व्यापार किया या कोई सामाजिक कार्य किया. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी लड़की की कहानी बता रहे हैं, जिसने भारत से अमेरिका जाकर अपना व्यापार खड़ा कर लिया. हम बात कर रहे हैं रितु नारायण की, जिन्होंने ZUM नाम की राइड एंड केयर कंपनी खोली है, जो कामकाजी अमेरिकी महिलाओं के स्कूली बच्चों को सुरक्षित और सस्ती परिवहन सेवा की सुविधा देती है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आज उनका बिजनेस करीब सौ करोड़ का है.

इस छात्र परिवहन सेवा की एक और विशेषता यह है कि इसमें कंपनी की ज्यादातर वर्कर महिलाएं हैं. रितु नारायण इस समय बच्चों के लिए ऑन-डिमांड सवारी और देखभाल करने वाली कंपनी ZUM की संस्थापक सीईओ हैं. फोर्ब्स मैगजीन के अनुसार नारायण बचपन से एस्ट्रोनॉट बनना चाहती थीं और वो 300 उम्मीदवारों की इंजीनियरिंग क्लास में 6 लड़कियों में से एक थीं. उसके बाद वो यूएस चली गईं और वो परिवार में पहली इंजीनियर थीं.

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कैसे आया दिमाग में आइडिया

उन्होंने बताया कि वो नौकरी कर रही थी और उनकी बहन स्कूल में पढ़ रही थी. उस वक्त मेरे लिए सबसे मुश्किल होता था कि मैं बहन का स्कूल छोड़ने के लिए किस पर भरोसा करूं. उसके बाद उनके दिमाग में आया कि बच्चों को ले जाने के लिए ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए. उन्होंने सोचा कि अमेरिका में 63 मिलियन परिवार हैं और अरबों महिलाएं बच्चों को स्कूल छोड़ने में टाइम खराब करती है.

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उसके बाद रितु ने अपने तकनीकी अनुभवों का फायदा उठाते हुए सिलिकॉन वैली में स्कूली बच्चों के लिए एक तेज़ तकनीक करियर प्रबंधन वाली ZUM कंपनी बनाई. गौरतलब है कि रितु दिल्ली से कम्प्यूटर साइंस में स्नातक होने के साथ ही ईबे, याहू, ओरेकल और आईबीएम जैसी कंपनियों में लगभग 15 साल तक काम कर चुकी हैं. जब उन्होंने बहुत छोटे स्तर पर वर्ष 2016 में ZUM की पिकअप एंड ड्रॉप सेवा शुरू की, अनेक स्कूल भी उनके संपर्क में आते गए और वहां के प्रबंधन को भी ZUM की सुविधा कारगर और फायदे की भी लगी. इस तरह स्कूल भी अपने बच्चों के परिवहन के लिए उनकी कंपनी से जुड़ते चले गए.

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