2010 और 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स में राइफल शूटिंग में सिल्वर मेडल, स्पेन 2013 में हुए ISSF वर्ल्ड कप में तीसरा स्थान. गुजरात की पहली ऐसी महिला खिलाड़ी, जिसका चयन खिलाड़ी कोटे से पुलिस इंस्पेक्टर के रूप में किया गया. महज 26 वर्ष की उम्र में इतनी उपलब्धियां दर्ज कराने वाली इस खिलाड़ी का नाम है लज्जा गोस्वामी.
इस महिला शूटर ने कई अंतर्राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पदक जीतकर भारत का नाम दुनिया में रोशन किया है. उनकी जीत से प्रेरणा लेते हुए महिलाएं इस खेल में आज ज्यादा से ज्यादा हिस्सा ले रही हैं. अगर बात उनके इस सफर की करें तो यह हर कदम पर बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है. शूटिंग सीखना दूसरे खेलों की अपेक्षा ज्यादा मंहगा है. अगर आप एक अमीर परिवार से नहीं आते हैं तो इस खेल में आर्थिक परेशानियां हमेशा साथ लगी रहती हैं और इसका सामना लज्जा ने अपने खेल के शुरुआती दौर में लगातार किया.
लज्जा के पिताजी पुलिस में थे और उनके पास हमेशा रिवॉल्वर रहती थी. इसी को देखकर लज्जा में शूटिंग के प्रति दिलचस्पी पैदा हुई. लेकिन शूटिंग में काफी पैसे खर्च होने के कारण परिवार से भी कोई सहायता नहीं मिलने की उम्मीद नहीं थी. ऐसे में उन्हें एक नई उम्मीद किरण मित्तल चैंपियनशिप ट्रस्ट के रूप में मिली, जहां उनके सपनों को निखार और उड़ान दोनों मिले.
परेशानियों ने उन्हें ज्यादा से ज्यादा मेहनत करना सिखा दिया था. एक इंटरव्यू उन्होंने कहा था कि एक समय उनके करियर में ऐसा भी आया था, जब रुपये के अभाव में वह प्रैक्टिस भी नहीं कर पा रहीं थी. एक दिन में 300 से 400 राउंड बुलेट प्रैक्टिस में खर्च होते हैं, प्रत्येक बुलेट की कीमत करीब 12 रुपये होती है. जिससे प्रैक्टिस करना काफी मंहगा हो जाता है. यही नहीं, आर्थिक अभाव में एक बार वह एक चैंपियनशिप में दूसरे की राइफल मांगकर ले गई थीं.
उनका मानना है 'ऐसे खेल में जिसमें लोग कम दिलचस्पी लेते हैं, उसे खेलना आसान नहीं होता. लेकिन मुझे इस खेल से काफी प्रेम था इसलिए मैंने इसे नहीं छोड़ा.' ओलंपिक खेल से भले ही पदक जीतकर आने वाले खिलाड़ियों को सरकार से काफी आर्थिक मदद मिलती हो लेकिन उससे पहले की स्थिति खिलाड़ियों के लिए भारत में अच्छी नहीं है. लज्जा अपने शूटिंग टारगेट को पूरा करके आईपीएस ऑफिसर बनना चाहती हैं. वह बताती हैं कि किरण बेदी उनकी प्रेरणा स्रोत हैं.