देश में शिक्षा के स्तर में अभी काफी सुधार होना है और इसके लिए सरकार के साथ कई सामाजिक संगठन भी काम कर रहे हैं. लेकिन महाराष्ट्र के कोल्हापुर में एक महिला खुद के स्तर पर ही स्कूल चलाती है और गरीब बच्चों को पढ़ाती है. कोल्हापुर की सुशीला एक दो साल से नहीं बल्कि 27 सालों से बच्चों को पढ़ा रही हैं और लोग उन्हें शिक्षा का प्रतीक मानते हैं.
द बेटर इंडिया के अनुसार सुशीला ने आज से लगभग 27 साल पहले देखा था कि उनके लक्ष्मीनगर गांव में छोटे बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई स्कूल ही नहीं है, इस वजह से वहां के बच्चे पढ़ नहीं पा रहे थे. उसके बाद उन्होंने आंगड़वाड़ी खोली और बच्चों का पढ़ाया और उनकी लगातार मेहनत से बच्चों की संख्या बढ़ने लगी.
जय ने किया IPCC में टॉप, पिता चलाते हैं स्टेशनरी की दुकान
बाद में सरकार ने इसे सरकारी स्कूल में बदल दिया. कई बार बच्चों के घरवाले खाने पीने की चीजें सुशीला को दे आते थे, लेकिन उन्होंने कभी पैसे की मांग नहीं की. उन्होंने बाबूराव कोली से शादी की है जो कि एक खेतिहर मजदूर हैं. यह बाबूराव की दूसरी शादी थी. उनकी पहली पत्नी गुजर गई थीं और उनके दो बच्चे भी थे.
समर्पण मैती बने 'मिस्टर गे इंडिया', ऐसी है उनकी सफलता की कहानी
बच्चों की वजह से उनकी शादी नहीं हो रही थी, लेकिन सुशीला ने बच्चों को रखने की जिद की. बाबूराव भी कहते हैं कि सुशीला से शादी करके उनकी जिंदगी बदल गई. सुशीला बड़े गर्व के साथ कहती हैं कि शिक्षा ही समाज में बदलाव ला सकती है.