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करिश्माई कारोबारी: सात समंदर पार तक स्वाद का सफर

छोटे से शहर बीकानेर से भुजिया के साथ शुरू हुआ स्वाद का सफर देश की सीमाएं लांघकर विश्व भर में लोगों को भारतीय स्वाद के अनोखेपन का जायका दे रहा.

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अपने दफ्तर में शिवरतन अग्रवाल
अपने दफ्तर में शिवरतन अग्रवाल

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शिवरतन अग्रवाल (63 वर्ष) चेयरमैन, बीकाजी भुजिया
कवि अशोक वाजपेयी ने कहा था कि बीकानेर की आधी आबादी भुजिया बनाने में व्यस्त है तो आधी आबादी इसे खाने में. यह बात सच हो या नहीं, पर हां, इतना जरूर है कि कुल भुजिया उत्पादन के आधे से ज्यादा हिस्से पर बीकानेर के बीकाजी ग्रुप का ही आधिपत्य है. बीकाजी ग्रुप के चेयरमैन शिवरतन अग्रवाल ने अपने इस परंपरागत व्यवसाय को एक ग्लोबल पहचान दिलाई है. बीकानेरी भुजिया के तीखेपन और रसगुल्लों की मिठास के अलहदा स्वाद को सात समंदर पार खाने के शौकीनों तक पहुंचाने और उसे एक खास पहचान दिलाने का काम श्रेय बीकाजी फूड्स को ही जाता है.

हालांकि बीकाजी ग्रुप का यह सफर अपने आप में सफलता और उपलद्ब्रिध का लंबा सफर है, लेकिन यह इतना आसान भी नहीं था. भुजिया का नाम आते ही एक बड़ी-सी काले रंग की कड़ाही और लाख सफाई के बावजूद आसपास भिनभिनाती हुई मक्खियों वाली किसी हलवाई की दुकान की तस्वीर उभरती है. लेकिन बीकाजी ने इस छवि को तोड़ा है. यूं कहें कि फूड चेन को दिखने में भी आकर्षक बनाने की शुरुआत की है.

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जीवन में कुछ अलग और बेहतर करने का सपना संजोए महज 8वीं पास शिवरतन अग्रवाल के मन में एक ऐसी भुजिया फैक्ट्री लगाने का ख्याल आया, जो महज एक भुजिया फैक्ट्री न हो, बल्कि उसे एक वैश्विक पहचान मिले.

पुश्तों से भुजिया का ही कारोबार कर रहे शिवरतन के पिता को शुरू में तो यकीन ही नहीं हुआ कि भुजिया बनाने की कोई फैक्ट्री भी हो सकती है. 1987 में बीकानेर में भुजिया फैक्ट्री की शुरुआत हुई. दो बैंकों ने भुजिया के नाम पर कर्ज देने से इनकार कर दिया था. जैसे-तैसे एक बैंक कर्ज देने के लिए राजी हुआ.

1993 में पारिवारिक व्यवसाय के बंटवारे के बाद बीकाजी ब्रांड का उदय हुआ. शिवरतन अग्रवाल कहते है, ''कोयले से डीजल की भट्टी पर लोगों से काम करवाना मुश्किल था. शुरू-शुरू में तो खुद डीजल की भट्टी जलाना सीखा और काम करने वालों को सिखाया. काफी दिक्कतें भी आईं.''

फैक्ट्री लगाने से पहले भी दिमाग में यही ख्याल रहता था कि ऐसे किन देसी उपकरणों का सहारा लिया जाए, जिससे समय भी बचे, काम करने वाले को आसानी हो और अधिक मात्रा में भुजिया-पापड़ आदि का उत्पादन किया जा सके. शिवरतन अपने एक दोस्त मक्खन अग्रवाल के साथ पापड़-भुजिया के निर्माण में काम आने वाली सामग्री बेसन इत्यादि लेकर भटकते ताकि डेमो देकर कुछ उपयोगी उपकरण तैयार करवाए जा सकें.

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ऐसे उपकरणों की तलाश में उन्होंने पंजाब के राजपुरा जैसे छोटे शहर भी खंगाल डाले. वे लोहे के उपकरण बनाने वाले कारीगरों से कुछ ऐसा बनाने को कहते, जिससे यह काम जल्दी हो सके. कई बार सफलता मिलती, कई बार नहीं भी मिलती. लेकिन अब यह सब बीते समय की बात हो गई है. बीकाजी फूड कंपनी आज 1,400 करोड़ रु. की कंपनी है, जिसका सालाना टर्नओवर 500 करोड़ रु. का है. अब भुजिया, पापड़ और रसगुल्लों के अलावा बीकाजी की पानी पूरी तक शानदार पैकिंग में उपलब्ध है. बीकाजी के यहां कुल 80 फूड आइटम बनते हैं.

शिवरतन 63 साल की उम्र में आज भी रोज फैक्ट्री जाते हैं. भुजिया बनाने वाले से लेकर पैकिंग करने वाले कर्मचारी तक हर किसी पर उनकी नजर रहती है. वे सबको निजी तौर पर जानते हैं और ज्यादातर कर्मियों को उनके नाम से पुकारते हैं. पिता दिवंगत मूलचंद और मां चुकी देवी के चार बेटों में से एक शिवरतन का सारा ध्यान इसी बात पर रहता है कि किस स्वाद या नई तकनीक का उपयोग किया जाए, जिससे जायके की दुनिया में उनकी बादशाहत बरकरार रहे. इस काम में उनकी पत्नी सुशीला भी काफी मदद करती हैं. बेटे दीपक अग्रवाल कंपनी के एमडी हैं. दीपक अपने पिता को परफेक्ट फादर मानते हैं. वे कहते हैं, ''पिता बहुत अनुभवी और व्यावहारिक हैं. वे ऑन द स्पॉट फैसले लेने में यकीन रखते हैं. बीकानेर से उनका विशेष लगाव है. हम 170 करोड़ रु. के नए प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं.'' यह सच है कि किताबी शिक्षा में भले ही वे पिछड़ गए हों, लेकिन व्यावहारिक ज्ञान और समझदारी के बल पर ही उन्होंने खुद को इस मुकाम तक पहुंचाया है.

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2010 में जिओग्राफिकल इंडिकेशन बीकानेर के नाम हुआ था. कभी बोरियों में भर के ले जाए जाने वाली भुजिया को पहले कार्टन में पैक करके भेजा जाना शुरू हुआ. आज ऑटोमेशन पैकिंग के चलते बीकाजी के चमचाते पैकेट्स परंपरागत फूड को आकर्षक बना रहे हैं. आज अमेरिका, यूरोप और खाड़ी के तकरीबन 24 देशों में बीकाजी के उत्पादों का निर्यात किया जा रहा है. अन्य उपलद्ब्रिधयों के साथ-साथ प्रति दिन 50 टन भुजिया के उत्पादन का रिकॉर्ड भी बीकाजी के खाते में ही दर्ज है. शिवरतन अग्रवाल के पुत्र दीपक अग्रवाल भी अब पिता के कारोबार में अपना हाथ बंटा रहे हैं. 2014 में कंपनी ने एक नई शृंखला रेडी टू ईट और रेडी टू कुक लॉन्च की है, जिसमें परंपरागत भारतीय नाश्ते पर फोकस किया गया है.

बीकाजी ग्रुप ने अपने रीटेल आउटलेट भी खोले हैं, जहां उनके सभी उत्पाद उपलब्ध हैं. अब तक मुंबई समेत देश भर के कुल 25 शहरों में ये आउटलेट खोले जा चुके हैं भविष्य के लिए भी कंपनी की काफी महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं. शिवरतन बताते हैं कि जल्द ही वे लंदन में बीकाजी का आउटलेट खोलने जा रहे हैं. जिन देशों में अभी बीकाजी के आउटलेट नहीं खुले हैं, वहां भी संभावनाएं तलाशी जा रही हैं. उनकी कोशिश है कि कंपनी आगामी वर्षों में अपना आइपीओ भी लेकर लाए.

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बीकानेर जैसे छोटे शहर में बीकाजी ग्रुप के सहयोग से कार्डियक हॉस्पिटल बनाया गया है. इसके अलावा कंपनी ने फरवरी, 2015 में तत्कालीन जिला कलेक्टर आरती डोगरा के साथ मिलकर एक एमओयू पर भी साइन किए हैं, जिसके तहत सरकारी विद्यालयों में शौचालय बनाने का काम बीकाजी ग्रुप के सहयोग से किया जा रहा है. बीकानेर तीसरी आंख की जद में रहे, इसके लिए शहर भर में सीसीटीवी कैमरे लगाए जा रहे हैं, जिसके लिए बीकाजी आर्थिक मदद मुहैया करवा रहा है. इसके अलावा, महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय की कुलपति चंद्रकला पडिय़ा से भी उनकी बात चल रही है. दीपक कहते हैं, ''करीब 20 करोड़ रु. की लागत से बनने वाली एक अत्याधुनिक लैब की स्थापना में हम सहयोग देने के लिए तैयार हैं, जहां फूड आइटम की जांच हो सकेगी.''

कुल मिलाकर यह कहना कतई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह इस कारोबारी की मेहनत, जुनून और करिश्मा ही है कि उन्होंने भुजिया जैसे निहायत परंपरागत बीकानेरी उत्पाद को वैश्विक बना दिया.

शिवरतन की ईश्वर में गहरी आस्था है, लेकिन उनके लिए काम ही पहली पूजा है. वे कहते हैं, ''मैं रोज मंदिर तो नहीं जा पाता, लेकिन मैं भैरो का उपासक हूं. हफ्ते में एक बार मंदिर जाता हूं. मेरे लिए ईश्वर की उपासना का अर्थ जरूरतमंद लोगों की मदद करना भी है.''

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बीकानेर में कुछ लोग शिवरतन को भुजिया का बादशाह कहकर बुलाते हैं तो कुछ मस्तमौला स्वभाव के कारण आज भी उन्हें उनके बचपन के नाम फन्ना बाबू से ही पुकारते हैं. भुजिया के बादशाह ने शहर के लिए भामाशाह की भूमिका भी अदा की है.

शिवरतन सतत लगन, मेहनत और कभी हार न मानने के जज्बे को ही अपनी सफलता का मंत्र मानते हैं. वे कहते हैं, ''सफलता के लिए यह कतई जरूरी नहीं है कि व्यवसाय महानगर में ही किया जाए. मैं बीकानेर में भुजिया बनाकर पूरी दुनिया में बेच रहा हूं. बस अपने काम के प्रति समर्पण होना चाहिए.''

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