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अभिषेक वर्मा: छोटी उम्र में बड़ी कामयाबी

उनकी उम्र सिर्फ 15 साल है लेकिन अभिषेक वर्मा अभी से ऐसा प्रोडक्ट बनाने में लगे हैं जो जीवनरक्षक है. बता रही हैं अमृता मेनन

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अभिषेक वर्मा
अभिषेक वर्मा

अभिषेक वर्मा नई दिल्ली के महाराजा अग्रसेन पब्लिक स्कूल की 10वीं क्लास के स्टुडेंट हैं और उन्होंने अपने दोस्त दक्ष दुआ के साथ मिलकर इंटेल इंटरनेशनल साइंस ऐंड इंजीनियरिंग फेयर (आइएसईएफ)-2014 में एनिमल साइंसेज कैटेगरी में 3,000 डॉलर का पहला पुरस्कार जीता. इसके बाद 15 वर्षीय अभिषेक ने 8,000 डॉलर का साइंटिफिक विजिट टू चाइना अवार्ड भी जीता, यह अवार्ड उनके प्रोजेक्ट श्रूबस एलिप्टीकसः एन इफेक्टिव सॉल्यूशन अगेंस्ट जियारडायसिस्य को दिया गया है. उन्होंने ज्यूरी को दिखाया कि हिमालय में पाई जाने वाली पीली रैस्बेरी के जड़ों के सत्व से जियारडायसिस का इलाज संभव है. दस्त से जुड़ी यह बीमारी माइक्रोब की वजह से होती है, और इसकी वजह दूषित जल होता है. इस बीमारी का इलाज करने वाली कई दवाइयों के साइड इफेक्ट्स होते हैं जिसमें मतली और चक्कर आते हैं. इन स्टुडेंट्स के मुताबिक, नए सत्व से इन समस्याओं से बचा जा सकेगा.

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प्रेरणास्रोत
मेरी उम्र के बच्चे जहां अपनी टीनेज वर्ल्‍ड की मस्ती में मस्त रहते हैं, वहीं मुझे कुछ नया हासिल करने में खुशी मिलती है. मेरे पूरे सफर में मैंने अपनी बहन आकांक्षा से प्रेरणा ली है और उनकी ओर से मिलने वाले उत्साहवर्धक शब्दों की वजह से ही मैंने आइएसईएफ में हिस्सा लिया और बेस्ट ऑफ कैटेगरी प्राइज भी जीता.

मुश्किलें और मददगार
जिसने भी कामयाबी का स्वाद चखा है, वह जानता है कि सफर आसान नहीं होता. आपको कामयाबी की ओर ले जाने वाली राहें मुश्किलों भरी हैं और इसमें लडख़ड़ाने, गिरने और संभलने के बाद ही कामयाबी मिल सकती है. मेरे मामले में भी सब कुछ ऐसा ही था. जैसे ही मैंने रिसर्च शुरू की, मेरे साथी और मुझे फंडिंग की जरूरत महसूस हुई. हमें जल्द इस बात का एहसास हो गया कि भारत में रिसर्च वर्क के लिए फंडिंग खोजना आसान नहीं है, अगर आप स्टुडेंट हैं तो यह और भी मुश्किल हो जाता है. रिसर्च के दौरान हमें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा. जैसे, प्रोजेक्ट के लिए रिसोर्स ढूंढना, इजाजत लेना और फील्ड वर्क के लिए फंडिंग. मैंने कुछ साइंटिस्ट्स और रिसर्चर्स से अपने प्रोजेक्ट के लिए मदद मांगी लेकिन उन्हें लगा कि मैं और मेरा साथी बहुत छोटे हैं और इस तरह के बड़े प्रोजेक्ट को करने के लिए एलिजिबल नहीं हैं. भारत में रिसोर्स उपलब्ध कराने वाले बहुत कम हैं और स्टुडेंट्स को फंड मुहैया कराने वाली कंपनियां और संगठन नए विचारों के क्रेडिट खुद लेने में यकीन करते हैं. लेकिन में लकी रहा कि मुझे कुछ अच्छे लोग मिले. कई प्रोफेसर और रिसर्चरों ने मदद दी, गाइड किया और प्रोजेक्ट के लिए अपनी लैब भी दी. स्कूल ने भी हमारी यथासंभव मदद की. इन सभी मददगारों की वजह से ही हम प्राइज जीत सके.

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भविष्य की योजनाएं
मैं चाहता हूं कि मेरी मेडिसिन कॉमर्शियल इस्तेमाल में आ सके. मेरी इस दवा के मैमल्स पर इस्तेमाल के लिए इजाजत लेने के लिए अपील करने की योजना है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को फायदा मिले. यह जान कर बहुत अच्छा लगता है कि मैंने जो प्रोडक्ट ईजाद किया है वह और जीवन बचा सकता है. मैं स्कूल के बाद इंजीनियरिंग करना चाहता हूं और आइआइटी एग्जाम को क्रैक करने की हसरत है. जीत सिर्फ कड़ी मेहनत, प्रेरणा और टाइम मैनेजमेंट की वजह से ही मिलती है. अगर मैं ऐसा कर सकता हूं तो मेरी उम्र का कोई भी और बच्चा कर सकता है, सब कुछ टाइम मैनेजमेंट पर ही आधारित है. मेरा मानना है कि फन और प्ले मेरे जीवन का अहम हिस्सा हैं लेकिन फन और वर्क में सही संतुलन साध कर ही आप कामयाबी और एक्सीलेंस हासिल कर सकते हैं.

अभिषेक वर्मा, विजेता, एनिमल साइंस कैटगरी, इंटेल इंटरनेशनल साइंस ऐंड इंजीनियरिंग फेयर (आइएसईएफ)

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